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खंग ४
धर्मपरीकहो तुमे सार ॥ मा ॥ मोटा मूरख ने किसारे, बोलो तेह अधिकार ॥ मा॥ कौ
॥११॥ मनोवेग तव उचरेरे, सुणजो विप्र विचार ॥ मा०॥ मूरख कथा तुमने कहुं रे, श्रुतसागर तुमे पार ॥ मा० ॥ कौ ॥१२॥ सन्ना मांहीं मूरख नरेरे, को होशे हिजवर श्राज ॥ मा० ॥ तो खोटी कथा करे मुज तणीरे, नवि सरे अमारो काज ॥ मा० ॥ कौ ॥ १३ ॥ मूरख होय ते शुं करेरे, सुणजो कथानो समाज ॥ मा ॥ एक चित्ते भौनज धरीरे, हरख उपजे जेम बाज॥मा॥ कौ ॥१५॥चार नर मारग सांचर्यारे, मूरख मोटा वली तेह॥मा॥मुनिवर एक सामो मध्योरे, उत्तम चारित्र गेह ॥मा० ॥la कौ॥ १५ ॥ मौन धारी जोग श्रागलोरे,सुमति गुपतिव्रत धार॥मा॥ नगन मुजा परिसह सहेरे, जव्य जीव जवजल तार ॥ मा०॥ कौ ॥१६॥ एहवो मुनिवर दीठमोरे, तव मूरख चारे चंग॥मा०॥ वांद्यो मुनिवर नाव धरीरे, तव जतिवर बोल्यो रंग ॥ मा ॥ कौ ॥१७॥ धर्मवृद्धि तुमने होजोरे,वचन सुणी चारे ताम ॥मा०॥ मारग चाट्या मलपतारे, जोजन दोढ गया जाम॥माणाको॥१७॥ चोथा खंड तणी कहीरे,प्रथम ढाल रसाल ॥ मा॥रंगविजय शिष्य एम कहेरे, नेमविजय उजमाल ॥माण॥ कौ० ॥ १ ॥