________________
धर्मपरी०
॥ ८० ॥
बेमो यावे सोइ ॥ मा० ॥ ४ ॥ मा० ॥ ब्रह्माए बथाव्यं लिंग, हस्त धरी उंचो चढे ॥ मा० ॥ मा० ॥ लिंग वलगी चाल्यो कान, वेगे पाताले हरी जडे ॥ मा० ॥ ५ ॥ मा० ॥ जातां थियो घणो काल, लिंग अंत न पावीयो ॥ मा० ॥ मा० ॥ नारायण थाक्यो ताम, पाठो वली दर कने यवीयो ॥ मा० ॥ ६ ॥ मा० ॥ विष्णु कहे सुख ईश, लिंग पार में नवि लह्यो | मा० ॥ मा० ॥ दुःखी हुवो ब्रह्मा वाट, मुख फी को करीने रह्यो | मा० ॥ ७ ॥ मा० ॥ खसी पड्यं केवडी पत्र, लिंग उपरथी तले यदा ॥ मा० ॥ मा० पडतो काल्यो कहे ब्रह्म, कूमी साख देजो केवमी तदा ॥ सा० ॥ ८ ॥ मा० ॥ बेदु श्राव्या ईश्वर पास, ब्रह्मा कहे हुं ठेठे गयो ॥ मा० ॥ मा० ॥ लिंग उपरथी एह, केवमी श्राणी साचो जयो । मा० ॥ ए ॥ मा० ॥ कहे केवडी साची वात, ब्रह्मा श्रव्यो तुज लगे ॥ मा० ॥ मा० ॥ केवमी कहे सुण खाम, ब्रह्मा वचन नवि मगे ॥ मा० ॥ १० ॥ सा० ॥ ज्ञाने जोइ करी ईश, खोटुं जाणी श्रापी केवडी ॥ मा० ॥ मा० ॥ म चमीश माहरे लिंग, कांटा होजो तुज तेवडी ॥मा०॥११॥ मा० ॥ खोटा बोलो ब्रह्मा तुं जांग, सृष्टि न होशे तुज तणी ॥ मा० ॥ मा०॥ सत्यवादी गोविंद, सृष्टि सहुनो ए धणी ॥ मा० १२ ॥ मा० ॥ पवनवेन विचारी जोय, मालती वात एके नहीं || मा० ॥ मा० ॥ परीक्षा करी धरो चित्त, सुधुं समकित मन
रु ३
Go Il