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धर्मपरी
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बले अंग सार ॥ सा ॥ तेम शास्त्र तणो दोष कहामतां, सा कहेतां न पाप लगार ॥ सा॥॥तव वचन सुणीने एशुं रे, सा नय तजी बोल्यो झषिदेव ॥ सा ॥ हुँy तो वेद पुराणनारे, साप दोष सुणो कहुँ खेव ॥ सा० ॥ ए ॥ एक नगर मांहीं रहेरे, सा० नारी दोय श्रति सार ॥सा॥ एक नागी वीजी रथीरे, सा जोवनन्नर मनोहार ॥ सा ॥ १० ॥ बाल कुंवारी ते बेहुरे, साग बेहु सूती सेदेज मोकार ॥ सा ॥ते बेहु । नारी संजोगथीरे, सान्जायो सुत सुविचार ॥ सा ॥११॥नाम दीधुं तव तेहनोरे, सा नागीरथी पुत्र चंग ॥ सा॥ ए तो नारत पुराणमारे, सा० वखाण्यो मनने रंग॥सा॥ ॥ १२ ॥ जुर्म नारीना जोगथीरे, सा० जायो पुत्र सुविचार ॥ सा ॥ तो नारी नर संजो-IN गथीरे, साण हुँ जनम्यो तेम सार॥ सा ॥ १३॥ अवर दृष्टांत वली कहुँरे, सा सांजलो हिजवर राज ॥ सा॥ जेम संदेह मन लांजशेरे, सा० सरशे तमारां काज॥सा॥१४॥ गंधारी एक नारीएरे, सा० धृतराष्ट्र करे ए काज ॥ सा॥ एवो निश्चय कीधो तिहारे, सा सांजलो तुमे हिजराज ॥ सा ॥१५॥ तव नारी गंधारी सहीरे, सा रोमांचित हुश् जाम ॥ सा ॥ तव नारी तणे धरमें हुश्रे, सामाथे हुश् ते ताम ॥ सा ॥ १६ ॥ चोथे दिवसे नारीएरे, साग स्नान कर्यु तेणी वार॥ सा० ॥ पली वस्त्र विहुणी हतीरे, सा