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धर्मपरी०
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गुरुने आराध्यो हो विनय विवेक ॥ मा० ॥ २ ॥ एक दिन मुजने हो दीधुं काम ॥ मा० ॥ कमंगल नरी श्रावो हो गुणना ग्राम ॥ मा० ॥ मारग जरवा हो चाल्यो जाम ॥ मा० ॥ बोकरां रमतां हो दीगं ताम ॥ मा० ॥ ३ ॥ रमतां देखी हो जोवा रही यो ॥ मा० ॥ निशालीए जइने हो गुरुने कहीयो ॥ मा० ॥ जिनचरणदास हो करे बहु क्रीमा ॥ मा० ॥ गुरुजी कमंडल हो नहीं नरे व्रीडा ॥ मा०॥ ४ ॥ जति जोवाने हो नीकल्या जाम ॥ मा० ॥ बात्र एक यावी हो कहे मुज ताम ॥ मा० ॥ नासी जाए हो गुरु आव्या एह ॥ मा० ॥ रुट्या रीस करशे हो जारे तुज देह ॥ मा० ॥ ५ ॥ जयजीत नावगे हो तव हुं जाम ॥ मा० ॥ कर धरी कमंगल हो बीजे गाम ॥ मा०॥ जातां जातां हो श्राव्युं एक गाम ॥ मा० ॥ हस्ती पुंठे हो लाग्यो ताम ॥ मा० ॥ ६ ॥ पूर्वे कीधां हो जे जेम पाप ॥ मा० ॥ करिवर केको हो न ढां व्याप ॥ मा० ॥ जयजीत | मुजने हो कंपे दे ॥ मा० ॥ काल कृतांतज हो सरिखो तेह ॥ मा० ॥ ७ ॥ नासी न शकुं हो करिवर श्रागे ॥ मा० ॥ चिंतव्युं में किहां हो रहेशुं लागे ॥ मा० ॥ जमीनो बरेटो हो में दीठो जाम ॥ मा० ॥ काले वलगाड्यो हो कमंगल ताम ॥ मा० ॥८॥ कर्मनलना मुखमां हो हुं जइ पेठो ॥ मा० ॥ रीसे जरीयो हो हाथीए दीठो ॥ मा० ॥ नालुए
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