________________
धर्मपरी०
॥ १११ ॥
कीधो तास ॥ १ ॥ लश्कर पाजे उतर्यो, लंका नेडी बीध ॥ खबर थर रावण जणी, नगरमां वात प्रसिद्धं ॥ २ ॥ बिभीषण नाइने कहे, राम चम श्राव्या खाज ॥ जाइ करीने थापीए, सरवे सरशे काज ॥ ३ ॥ रावण कहे जाइ सुणो, राम बे दुश्मन जात ॥ बनेवी आपणो मारीयो, विघनपति नाम सुजात ॥ ४ ॥ एवो वेरी मेलीए, तो अपजश जग होय ॥ घर श्रांगण आव्यो थको, जावा दे कहो कोय ॥ ५ ॥ बिभीषण कहे रामशुं, जाइजी म करो वेर ॥ वेध पमशे ए वातमां, याशे ए कामे केर ॥ ६ ॥ तव रावण कहे जाइने, न गमे तुजने एम ॥ तो तुं राम जेलो जइ, थापे जाइ कर जेम ॥ ७ ॥ बिभीषण राम नेलो मल्यो, रावणने चड्यो मान ॥ सेना सरवे सज करी, मेरा दीधा रण थान ॥ ८ ॥
ढाल नवमी. कमखानी देशी.
दल वादल चड्या मेह सम गाजीया, वाजिंत्रनी ध्वंस श्राकाश वागी ॥ बत्रीश श्रायुध सज्यां यामुहा सामुहा, जूऊनी हुब उमंग लागी ॥ द० || १ || सिंडूरीया गज दल यागल कर्या, अश्व तणी पाखरे रोल काफी ॥ नाल घोमा ती धसमस पके
खंग ५
॥ १११ ॥