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खंग
धर्मपरी|रुयमोरे ॥ सा ॥ अहिल्या निज वश कीध ॥ सु० ॥ मढी मांहे पेसी करीरे ॥सा
|जे आलिंगन दीध ॥ सु० ॥ १७ ॥ स्नान करी तव श्रावीयोरे ॥ सा॥ गौतम तापस ॥५ ॥
जाम ॥ सु० ॥ छार दीधां देखी करीरे ॥ सा ॥ आचंन्यो तेह ताम ॥ सु॥१७॥ पर पुरुष देखी करीरे ॥सा० ॥ उपन्यो कोप अपार ॥सु॥ रंडे मुंडे तापसीरे ॥सा उघाम वेगे करी बार ॥ सु ॥ १ए ॥ जय पाम्या तव बेहु जणांरे ॥ सा ॥ इंस हुवो मिंजार ॥ सु० ॥ घर मांहीं नासी गयोरे ॥सा॥ पेगे चूला मोकार ॥ सु० ॥ ॥ २० ॥ खंड बीजानी ढाल तेरमीरे ॥ सा ॥ श्रागे जे होये वात ॥ सु० ॥ रंगविजय कविरायनोरे ॥ सा ॥ नेमने हर्ष सुखसात ॥ सु ॥२१॥
उदा. AL तव भ्रूजंती तापसी, बार उघाड्यो जाम ॥ महारंड रांगनी शुं कर्यु, गौतम पूजे
ताम ॥१॥ कोण पुरुष ते घालीयो, लंपट बुच्चो जार ॥ साचुं कहेरे पापणी, श्रापे|
करुं तुज बार ॥२॥ कामनी कहे कंथ सांगलो, घरमां ने मिजार ॥ ब्रांत पमी | all तुम घणी, नहीं कीधो व्यभिचार ॥३॥ गौतमे झान विचारीयु, जाएयुं बेहुर्नु पाप ॥
शीला कीध पाषाणनी, अहिल्याने दीध श्राप ॥ ४॥ बिलामो थ नासतो, इंज
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