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श्रावशें, रुमी परे रहेजो घरबार ॥ मो० ॥ सू० ॥ १७ ॥ तुज सतीमां गुण जे घणा,
लंपट लोक श्ह गाम ॥ मो० ॥ जगनी सुत महाबुझिने, शीष दर करजो घरकामy AMIT मो० ॥ सू० ॥ १७ ॥ एम कहीने ते चालीयो, पहोतो कटक मोकार ॥ मो० ॥ माधव
मनमां चिंतवे, सदाए कुरंगी नार ॥ मो० ॥ सू० ॥ १५ ॥ ढाल त्रीजी बीजा खंगनी, रंगविजय कविराय ॥ मो० ॥ तस शिष्य नेमविजय कहे, आगे कहुं वात बनाय ॥ मो० ॥सू० ॥२०॥
उदा. कटके जव कंत चालीयो, तव हुवो दर्ष अपार ॥ कुरंगीने काम व्यापीयो, मांड्यो कुव्यापार ॥१॥ योवनजर रूपे नलो, सोनार चंगो नाम॥प्रपंच करी घर तेमीयो, एकांत बोली ताम ॥२॥ सांजलो स्वामि रुयमा, रूप तणा नंमार ॥ जोवनवंतां
ह जणां, लाहो लीजे संसार ॥३॥ बद्धि माधव श्रम धणी, इंक काटवं तेह सफल जनम थाय श्रापणो, तुम मले सुख थाय देह ॥ ४॥ धूरत चंगो बोलीयो, सांजल नोली नार ॥ सात व्यसन सेवू सदा, ए मुज गमे विचार ॥५॥ तुम वचन मुज लोपतां, ब्रह्महत्यादिक होय ॥ वेद पुराणे आदर्यु, चतुर नर लोपे कोय ॥ ६॥