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धर्मपरी
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एम कही बिहु जण मढ्यां, नोगवे लोग विलास ॥रात दिवस व्यभिचारीश्रा, धन शविलसे करे हांस ॥७॥ वर्ष एक एणी परे गयो, पाप करंतां तेद॥माधवनो श्रागज
हुवो, दिन चन थावे गेह ॥ ॥ जारे श्रावतो जापीने, वाही कुरंगी नार ॥ धूरत धन ले गयो, गली कीध अपार ॥ ए॥ कटकी करीने श्रावीयो, माधव मोह धरंत ॥ आगलथी नर मोकल्यो, कुरंगी श्राव्यो कंत ॥ १० ॥
ढाल चोथी.
राणकपुर रलीयामणुंरे लाल-ए देशी. नोजन नलां वेगे करोरेलाल, नूख्या बेनरतार ॥ सनेहीरे ॥ तेणे वचने कांखी थरे लाल, चिंता उपनी अपार ॥ सनेहीरे ॥ सूरिजन सांजलजो कथारे लाल ॥ए श्रांकणी ॥ १॥ सुंदरीने मंदिर गरे लाल, बेठी करीने प्रणाम ॥ स ॥ वमी बेहेन सुणो विनतिरे लाल, घरे आव्या श्रापणा वाम॥ स॥ सू॥॥ तुं बार वमी ज्ञामनीरे लाल, हुँ नानी तेह ॥ स० ॥ जोजन करावो जरतारनेरे लाल, राखो वरुपण देह ॥ स ॥ सू० ॥३॥ तव सुंदरी बोली श्सुरे लाल, मुजशुं प्रीत नहीं कंत ॥ स० ॥ नोजन नहीं करे मुज घरेरे लाल, कुरंगी सुण संत ॥ स०॥सू० ॥ ४ ॥ जमाडं
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