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धर्मपरी०
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खरं सही तेजी ॥ जा० ॥ श्रतिमोही नर एक मूढजी ॥ जा०॥ तेहनी कथा चित्त धरो गूढजी ॥१८॥ बीजा खंडनी ढाल कही बीजीजी ॥जा० ॥ श्रोता सदु कहेजो जीजीजी ॥ जा० ॥ रंगविजय कविनो शिष्यजी ॥ जा०॥ नेमविजय प्रणमे निशदिशजी ॥ १५॥
उदा.
विप्र वचन तव बोलीया, सुपरे जील सुजाण ॥ कथा कहो तिमोही तणी, सांजलवा सावधान ॥ १ ॥ मनोवेग तव बोलीयो, ब्राह्मण सुणजो सार ॥ कथा कहुं हुं रुयमी, विनोद तणो भंडार ॥ २ ॥ नमीयाम देशमां निरमली, नर्मदा नदी वहे सार ॥ दक्षिण तट तिहां गामको, शामंत नाम अपार ॥ ३ ॥ लोक वसे तिहां रुयमा, धर्म करे अभिराम ॥ माधव मेदेतो अति जलो, अधिकारी ति गाम ॥ ४ ॥ सुंदरी नारी तेह तणी, शीयलवंत गुणवंत ॥ ते बेदु जणथी पुत्र दुवो, सोनपाल नाम महंत ॥ ५ ॥ पुत्र प्रसुत हुवा पढी, माधव न गमे तेह ॥ सुंदरी रूप शुं कीजीएं, जोवन नातुं देह ॥ ६ ॥ शामंत गाम वसुदत्त वसे, सुरंगी नार सुचंग ॥ कुरंगी पुत्री ते तणी, रूप कला सुरंग ॥ ७ ॥ माधवे धन आपी घणुं, परणी कुरंगी नार ॥ जोवनजर रलीश्रामणी, तेहशुं नेह अपार ॥ ८ ॥ काम कुतूहल करे घणुं, इंडी लंपट तेह ॥
खंग १.
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