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धर्मपरीचि
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किंवा सत्य करशे एह किंवा नहीं करे, ए वातनो संदेह ते मनमा अति धरे।पुस्तका खंक४ खेश्ने चाल्यो व्यास जात्रा जणी, गंगा श्राव्यो शुज गात्र करवा ढुंश घणी ॥२॥ ताम्र तणुं एक नाजन नबुं बे माहरूं, रखे तस्कर खेर जाय श्हांथी परुं ॥ वेबुनो कीधो पुंज गंगा तटमां जश, ते मांही घाल्यो जाजन शंका मननी ग॥३॥ गंगा| नदी मांही व्यास पेठगे श्रावी वही, हरि हरि करी मुख जंपे उबाले जल रही। जात्रा करण बह लोक मली सहावीया, व्यासे कीधो वेलु थोक देखी मन नावीयाl ॥४॥ को कहे एवं लिंग होये ईश्वर तणुं, हुं पण थापुं एहदुं करीने अतिपणुं ॥ जे श्राव्या हता लोक तेणे पुंज थापीया, वेलु तणा हुवा गंज अन्योअन्य व्यापीया। ॥५॥ स्नान तर्पण करी व्यास नीकल्यो उतावलो, ताम्र जाजनना पुंज देखी थयो नांनलो॥पोता तणो कीधो पुंज ते नवि उलख्यो, सरखा सरखं रूप देखी मनमां धख्यो ॥ ६ ॥ जो नांगँ सवि पुंज तो अपजश सहु करे, ईश्वर देवना लिंग तणो रूप केम | फिरे ॥ ताम्र तणुं मुज नाजन जाउं तो जा परुं, अपजश बोले लोक तेहथी हुँ मरूं एyn ॥ ७॥ तेम मादरी कथा फोक ते केम होये वली,जेम एक ढगली देखी कर्या सहुए मली ॥ एक करे तेम सर्व करे. लोक एणी परे, परमारथनी बुद्ध को मन नहीं ।