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________________ धर्मपरी० ॥ २४५ ॥ ४ ॥ लोक हसे कहे बुढो बेल, वरघोडे चढी यइ बेल ॥ संतति काजे नहीं कोई डूषण, पुत्र यया पढी थाशे भूषण ॥ ५ ॥ जोरे इज्य तणी एक बेटी, परणावी सुंदरी गुण पेटी ॥ सुंदरीने सोंपी घर जार, जयसेना करे धर्म व्यापार ॥ ६ ॥ सुंद रीने जन्म्यो सुत सार, वांकीयानां उघड्यां घरवार || पीहर सुंदरी पहोती जाम, बंधूसरी माता पूढे ताम ॥ ७ ॥ सुखणी तुं बे माहरी जाइ, शोक्य संकटमां केशो सुख माइ ॥ शोक उपर दीधी तुमे जाणी, पूब्बुं घर पीने पाणी ॥ ८ ॥ शोक मांदी घाली सुख इच्छा, मायुं मुंगावी नक्षत्रनी प्रीवा ॥ जयसेना मुज घणुं संतापे, मादारी बांग देखे तिहां कापे ॥ ए ॥ जंजेरी मूक्यो जरतार, दासीथी अवगणे पार ॥ बंधूसरी सुणी ए वचन्न, जंपे पुत्री धीरज धर मन्न ॥ १० ॥ जयसेनानुं जी - वित दरशुं, तुजने सुख याशे तेम करशुं ॥ एहवे एक जोगी तिहां श्रव्यो, बंधूसरी | मन अधिको सोदाव्यो ॥ ११ ॥ उठी उजी थइ चरणे लागी, सरस निक्षा दीधी अनुरागी ॥ संतोष्यो श्रासन बेसारी, मुज घर निक्षा लेजो हितकारी ॥ १२ ॥ आवे ते दिन दिन आवासे, नवि रसवती आपे उल्हासे ॥ जगते रीजयो जोगी बोले, ताहरे - खंग ७ ॥ १४५ ॥
SR No.022846
Book TitleDharm Parikshano Ras
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1913
Total Pages342
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size29 MB
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