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जएयो सार, रूपे जाणे नागकुमारहे ॥ सातव चंमती एम कहे माय, पुत्र तुंतात जोवाने जायदे ॥ स० ॥ सा ॥४॥मजूस मांहे सुत घाख्यो जाम, गंगा प्रवाहे मेव्यो तामहे॥ स ॥ प्रवाह मांहे मजूस ते चाली, उदायिने दीठी कालीहे ॥ स०॥ सा० ॥ ५॥ श्राणी गम उघामी जाम, पिताए पुत्र दीगे अजिरामहे ॥ स ॥ सुत देखी। उपन्यो वह नेह, चंजमती श्रावी तव गेहहे ॥सासा॥६॥ कुंवरी कन्या कहे बेसार, उदायिन तुं मुज जरतारहे ॥ स० ॥ विवाह करी तुमे परणो श्राज, जेम सरे बेहुनां काजदे ॥ स० ॥ सा ॥॥ उदायिन तव बोल्यो जति, ए वात श्रमने नहीं घटतीहे ॥ स ॥ तुज पिता परणावे सोय, तेह तारो जरतारज होय ॥ स० ॥ सा० ॥ ॥ तापसे जइ माग्यो रघु राय, बेटी अमने करो पसायहे॥स० ॥ नहींतो श्रापीने जस्मज करुं, के तुज माझं के हुं मरुंहे ॥ स ॥ सा ॥ ए ॥ राजा कहे बेटीने वरो, उदायिन तमे कोप परिहरोहे॥स॥ तापस तव जमाश् कर्यो, चंमतीने वेगे वयोंहे ॥ स०॥सा |॥ १० ॥ वेद पुराणे बोल्यो एम, चंमती परणी ते केमहे॥ स० ॥ पुत्र जणे कन्या जे होय, पड़ी विवाह करो ते जोयहे ॥ स ॥ सा ॥ ११ ॥ जेम चंमती कन्या कही सार, तेम मुज मातानो कशो विचारहे ॥ स०॥ सूत्रकंठ कहे साची वात, तुमे का