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खंग
धर्मपरी
गाम ॥ध लश्ने नामो गयोजी, हरिनु उचरे नाम ॥ सु० ॥१ए॥ध लश्ने मुख
थागलेजी, कहे पीयो नारायण देव ॥ पाषाण बिंब बोले नहींजी, बालक रडे पडे nाखेव ॥ सू० ॥ २० ॥ तव हरिने दया उपनीज, दूध पीधुं ततकाल ॥ पहेले खंडे ढाल तेरमीजी, नेमविजय सुविसाल ॥ सू० ॥१॥
उदा. सुचिकार श्रीपुरजी, तेहनो सुत ततकाल ॥तुव्या नारायण नामाने, नगति जलो ए बाल ॥१॥ एक वार नामो जमे, जमतां चिंते ताम॥श्रावे नारायण श्ण समे, जाखरी
आपुं राम ॥२॥ ज्ञानदृष्टे करी जोश्युं, (नामो) जोये माहरी वाट ॥श्वान रूप धरी श्रावीया, दीगे जाखर थाट ॥३॥ दोय चार मुखमां ग्रही, नाग श्वान तिणे रूप ॥ नामो पुंठे धाळ, ग्रही लेड हरि नूप ॥४॥ श्राघा जश् रूप फेरव्यु, नामो गयो निज गेह ॥ नामो घर गये एकलो, विष्णु थाव्या स्वयं देह ॥५॥ गोविंदे घर गंगे, (घर ) जेंडी नामे कीध ॥ पोली लय हरि हरखीया, पोहोता वैकुंठ सिद्ध ॥६॥ विप्र सुणो तमे बुद्धिबला, नीच करम कीया देव ॥ पुराण वचन लोक वातथी, सत्य के जूतुं हेव ॥७॥ विष्णु उदर मांही नला, चौद जुवन रहे थेट ॥ बलि राजाए
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