________________
D
R
.
27.
ORDER
धर्मपरीजनल
जलायो ॥ द ॥ १० ॥ तेहवे तिहां हाहाकार वरत्यो घणो, रामनी जीत जगतिख
प्रसिद्धी ॥ लक्ष्मण बिनीषण बेहु नेला मैली, नगरी लंका ततकाल लीधी ॥ द॥ ॥१९ ॥
॥ ११ ॥ पाट थाप्यो बिनीषणने बक्षीसमां, त्रिकूट गढमे बाण फेरी ॥ तेहवे राम ने लक्ष्मण बेहु जणे, तेमावी नारी सीताजी आप केरी ॥ दण् ॥ १५ ॥ दंपती बेहु मव्यां वर्षमा सहु जल्या, बिनीषणे तिहां बहु नक्ति कीधी ॥ घणा दिवस रही रिक समृद्धि सही, शीख दीधी वख्या पाज सिसि ॥ दण॥१३॥ श्रनुक्रमे श्रावीया थंजणपासे देवले, मास चोमास रह्या तेह गमे॥पूजा प्रजावना मोठव कीधा घणा, थापना कीधी थंजणोपास नामे ॥ द ॥ १४ ॥ पांचमा खंग तणी ढाल नवमी नली, रंगवि-| जय गणि शिष्य नाखी ॥ नेमविजय कहे श्रोता सहु सांजलो, रावण रायनी वात श्राखी॥ द॥ १५॥
उहा. अनुक्रमे सीता नारीने, स्वकीय उदर मांय॥ गर्न वाधे दिन दिन नलो, हरडे हर-|| ख न माय ॥ १॥ एक दिन लक्ष्मण सीता बने, सूतां ले बे जण पास ॥ लक्ष्मणने । माता समी, सीता नारी तास ॥२॥ निझावश सूतां थकां, वस्त्र रहित थयां बेह॥
-IN
॥११॥