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धर्मपरीo
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ब्राह्मण सुणो विवेक ॥ ६ ॥ नीच उंच कर्मों कर्या, ब्राह्मण सुणजो मर्म ॥ धूरथी मांगीने कहुं, ए देवमां श्यो धर्म ॥ ७ ॥ गौरी नंदन गणपति, सकल देवर्मा सार ॥ प्रथम विनायक सहु जपे, विधन दरे नर नार ॥ ८ ॥ गजवदन गिरु अबे, डुंदालो दीदार ॥ मूषक वाहन शुजगति, पाय घुघरी घमकार ॥ ए ॥ सिद्धि नामे नारी बे, लक्ष लाज वली देय ॥ मोटा मोदक थापे सही, कुटुंब मागे सहु तेय ॥ १० ॥ महीमां मोटो देवता, सुर नर सारे सेव ॥ प्राणीनां विधन दरे, काम करे ततखेव ॥ ११ ॥ विवाद कामे पूजीए, ( घर ) दाट वखारे तेह || गणपतिने संजारीए, अवसर आवे एड् ॥ १२ ॥
ढाल पंदरमी.
मी दरीया मन लाग्यो- ए देशी.
रावण विमासे मन इस्युं, आराधन करुं देवरे ॥ साजन सांजलो ॥ विनायक यावे जो इहां, विघन जांजे सहु देवरे ॥ सा० ॥ १ ॥ प्रपंच रची साधुं एढ्ने, पढी सुर नर साधुं जेहरे ॥ सा० ॥ किंबहुना गणेश साधी, बंधी खाने घाल्यो तेहरे ॥ सा० ॥ २ ॥ विघनराजे दाथ जोकीया, विनवीयो रावण रायरे ॥ सा० ॥ काज तमारां खामि
खंभ १
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