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धर्मपरी
खंक
॥१७॥
काररे ॥ शा० सा० ॥ १६ ॥ हीरविजय सूरि तणोरे लाल, शुजविजय तस शिष्यरे
शा० ॥ नाव विजय कवि दीपतारे लाल, सिकि नमुं निशदिसरे ॥शा सा॥ १७॥ रूपविजय रंगे करीरे लाल, कृष्ण विजय कर जोडरे ॥ शा० ॥ रंगविजय गुरु | माहरारे लाल, नावे को एहनी होमरे ॥ शाण सा ॥ १७ ॥ सातमा खंड तणी कहीरे लाल, अग्यारमी ढाल रसालरे ॥ शा॥ नेम कहे नवियण तुमेरे लाल, सां-y लो बालगोपालरे ॥शा सा० ॥१५॥
इति श्रीधर्मपरीक्षारासे सप्तम खंड संपूर्ण.
॥ १४७॥