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खक
धर्मपरीसलेखणा कीध ॥ सु०॥ श्रुते श्रणसण श्रादरीरे हां, पहोती शिवपुर सीध ॥ सु०॥
ए॥ रामचंछ पण जावधीरे हां, पोहोता सिझने गम ॥ सु० ॥ लक्ष्मणनो जीव ना. ॥११५॥
रकीरे हां, कर्म तणां एह काम ॥ सु०॥ १० ॥ लव ने कुश राज थापीयारे हां, सुख विलसे संसार ॥ सु ॥ ए अधिकार एम जाणजोरे हां, सूत्र थकी निरधार ॥ सु० ॥ ११ ॥ बहु श्रुत होशे ते जाणशेरे हां, निर्बुकि शुं जाणे लोक ॥ सु० ॥ शास्त्र प्र|माणे कथा कहीरे हां, वांची जोजो थोक ॥ सु० ॥ १२ ॥ हीरविजय सूरिसरुरे हां, शुनविजय तस शिष्य ॥ सु ॥ नाव विजय जगते करीरे हां, सिकि नमुं निश दिस ॥ सु० ॥ १३ ॥ रूपविजय रंगे करीरे हां, कृष्णविजय कर जोम ॥ सु० ॥ रंगविजयना रूपनेरे हां, नावे अवर को होम ॥ सुम् ॥१४॥ पांचमो खंग पूरो थयोरे हां, ढाल अग्यारे रसाल ॥ सु० ॥ नेमविजयने नित्य प्रतेरे हां, होजो मंगल माल ॥ सु०॥ १५ ॥ इति श्रीमिथ्यात्खंमन, रावणोत्पत्ति, सीताहरण, रामचं मिलण, धर्म
परीदारासे पांचमो खंड संपूर्ण.
॥११५॥