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श्लोकः-दानयोग्यो गृहस्थश्च, कुमारो न दमो नवेत् ॥
दानधर्मदमः साधु- गृहीणी गृहमुच्यते ॥१॥ ___एम कहीने अगस्ति गया, दधिमुख तव निज गेह ॥ सा० ॥ श्रादर कर्यो विवाह तणो, मात तात परणावे बेह ॥ सा ॥ श्रो० ॥ ४॥ पिता कहे पुत्र तुमे सुणो, क-IN न्या नवि दीए विप्र कोय ॥ सा ॥ परण्या विना नोजन तणो, दधिमुख निम लीधोन सोय ॥ सा ॥ श्रो० ॥५॥ मातपिता शोक उपन्यो, तेह नगरे विप्रज एक ॥ सा ॥ पुर्बलने धन श्राप्युं घj, तेहनी पुत्री परणी विवेक ॥ सा ॥ श्रो० ॥६॥ विवाह करी घरे श्रावीया, घरे अव्य नहींरे लगार ॥ सा०॥ चार माणस घर खरच घणो, पिता तव कहे तेणी वार ॥ सा ॥ श्रो॥ ७॥ दधिमुख सुत तमे सांनलो, वित्त खरच्युं अमे विवाह ॥ सा ॥ अमे उद्यम हवे नहीं थाये, तुमे करो खर्च नि-IN हि ॥ सा० ॥श्रो ॥ ७॥ दधिमुख कहे कामनी सुणो, मातपितानो अपमान ॥ सा० ॥ घर रहेवा घटतुं नथी, जो होय हश्मामा सान ॥ सा० ॥ श्रो० ॥ ए॥ दधिमुख शिर सीके धयु, तेह नारी लेश चाली ताम ॥ सा ॥ देश नगर गामे सांचरे, पतिव्रता नारीनो नाम ॥ सा० ॥ श्रोण ॥ १० ॥ जरतार नगति घणी करे, सती