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धर्मपरी
॥१६३॥
ढाल अगीआरमी.
जगजीवन जग वालहो-ए देशी. अश्वने मूकी श्रांगणे, जिनहर मांही जाय लालरे ॥ पदपंकज परमेष्ठिनां, प्रणमी जणे सुणीताय लालरे ॥ साचो धरम संसारमां ॥ ए श्रांकणी ॥१॥ साचो धरम संसारमां, धरम करो सहु कोय लालरे ॥ धरमे धण कण संपजे, धरमश्री शिवसुख होय लालरे ॥ सा ॥२॥ अमे विद्याधर आवीया, अष्टापदनी जात्र लालरे ॥ श्रश्व तुमारो श्राणीयो, तुज दीवे या गात्र लालरे ॥ सा०॥३॥ शरण करी नृप शेठनो, चरण नमे वारंवार लालरे ॥ मूकी सेना मोकली, देवे थंनी जे छार लालरे ॥ सा ॥४॥ सुरदेव कानस्सग्ग पारीने, हय सोंप्यो नृप हाथ लालरे॥वय गये संयम लीयो, शेठ नूपति बे साथ लालरे ॥५॥ विद्याधर उबव करी, पहोत्या निज आवास लालरे ॥ एम प्रत्यक्ष फल देखीने, धरम को उबास लालरे ॥ सा ॥६॥ नारी सहित कहे शेठजी, तें नाख्यु ए सत्य लालरे ॥ कुंदलता कहे एकली, ए पण वात असत्य लालरे ॥ सा ॥ ७॥ चित्त मांहे एम चिंतवे, श्रेणिक अजयकुमार लालरे ॥ प्रत्यद दी लवे, अहो पापिणी ए नार लालरे ॥ सा ॥ ७ ॥ हुँ एदने रुमी परे,