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धर्मपरी ॥ ४॥
तव त्रीजो मूरख कहेरे, तुमे सहु सांजलो श्राज ॥ साजन सांजलोरे ॥ मुजखम ४ मूरखपणुं वरणवुरे, जेम सरशे मुज काज ॥ सा ॥१॥ एक दिवस नारी अमेरे, मलीयां एकण सेज ॥ सा ॥ होड पामी मौने रह्यारे, एम बोली बेहु हेज ॥ सा॥ ॥ ॥ जे दारे ते होडे दीएरे, घृत खांम जरी दश पोली ॥ सा ॥ साकर साथे मिश्र करीरे, सुगंध घृतमां ऊवोली ॥ सा ॥३॥ एम परठी मौन रह्योरे, नर नारी बेहु चंग ॥ सा ॥ तेहवे तस्कर आवीयारे, धन हरवा उत्तंग ॥ सा ॥ ४ ॥खात्र देश घरमा गयोरे, वित्त काढ्यु अपार ॥ सा ॥ श्रानरण वस्त्र घणां लीयारे, मोती लीयां दीनार ॥ सा० ॥ ५ ॥ तोही श्रमे नवि बोलीयारे, होम हारवा माट सा|| स्त्री शणगार उतारीनेरे, लेवा लाग्यो तब घाट॥सा॥६॥ नारी कहे कंत सांजलोरे, |चोरे हयु अव्य क्रोम ॥ सा० ॥ हसी करी में ताली दीधीरे, नारी तुं हारी होम ॥ सा० ॥ ७॥ पोली घृत खांडे जरीरे, सुज थापो तुमे थाज ॥ सा ॥ तस्कर वित्त ले गयारे, लोक मांही लागी लाज ॥ सा० ॥6॥ एवी कथा मुज तणारे, महा। मूरख मारो नाम ॥ सा ॥ सकल लोक विचारजोरे, धर्म वृद्धिनो ढुं ठाम ॥ सा॥ ॥ ए ॥ चोथो नर तव बोलीयोरे, खकीय कथा परसंग ॥ सा० ॥ मुज मूरखपएं।
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