Page #1
--------------------------------------------------------------------------
________________
'
उभयभाषा कविशेखर श्री मलिषेणमरि कृत्त
RE..
भैरव पद्मावती कल्प
काव्य-साहित्य-तीर्थाचार्य, प्राच्य-विद्यावारिधि श्री. पं० चन्द्रशेखरजी शास्त्री देहली कृत
भाषा टीका सहित
तथा ४६ यन्त्रों, साधनविधि व श्री पद्मावती सहस्रनाम,
पद्मावती कल्प, पद्मावती स्तोत्र, पद्मावती पद्मावती छन्द और पद्मावती पूजा सहित
प्रकाशक:मूलचन्द किसनदास कापड़िया,
मालिक, दिगम्बर जैन पुस्तकालय, गांधीचौक, कापढिया भवन, सूरत Surat 1.
द्वितीयावृत्ति ]
[प्रति १०००।
बोर सं० २४९६ मूल्प-पांच रुपये
Page #2
--------------------------------------------------------------------------
________________
"जैनविजय" प्रिन्टिंग प्रेस
गांधीचौक-सूरतमें मूलचन्द किसनदास कापदियाने
मुद्रित किया
यस.
Page #3
--------------------------------------------------------------------------
________________
IN ERROREसकसwL REETर
प्रथम आवृत्तिका निवेदन
ETRधरा
ROSERm Rilm
जैन शास्त्रों में मंत्र-शात्रों व औषधि-शास्त्रोंकी कमी नहीं है उनमें करीव १२ वीं शताब्दिमें होनेवाले श्री मल्लिषेणसूरि कृत श्री भैरव पद्मावती कल्प, ज्वालमालिनी कल्प, अम्बिका कल्प, चक्रेश्वरी कल्प मंत्र-शास्त्रकी महिमा अपार है, और ये अन्ध आजतक न तो मूल या मूळ और टीका सहित प्रकट हुये हैं। क्योंकि ये असाधारण ग्रंथ नहीं हैं अतः ऐसे मंत्र-शास्त्र के प्रथ प्रकट होनेकी चड़ी आवश्यकता थी और है। और आजतक ऋषिमंडल स्तोत्र, भक्तामर स्तोत्र, यन्त्रमन्त्र सहित व कल्याण मन्दिर स्तोत्र यन्त्रमन्त्र न साधतविधि सहित प्रकट हो चुके हैं। लेधिन 'भैरव पद्मावती इल्प" जो मन्त्रशास्त्रोंका भण्डार है, अभीतक प्रकट नहीं हुआ था क्योंकि इसका संकलन ब हिन्दी टीका करना सहज कार्य नहीं था ब जहां यह ग्रन्ध था उनके स्वामी यह देना व छपलाना नहीं चाहते थे।
ऐसी परिस्थितिमें करीब २४ वर्षों की बात है जब कि हम खकुटुम्ब शिखरजीकी यात्रा करते हुये देहली आये थे और धर्मपुराकी धर्मशालामें ठहरे थे जिसकी सूचना पाते ही इस अन्धके अन्वेषक व हिन्दी टीकाकार श्री पं० चन्द्रशेखरजी शस्त्री जो काव्यसाहित्य, तीर्थाचार्य, व प्राच्य विद्यावारिधि हैं, हमको मिलने के लिये भाये थे, उन्होंने जैन साहित्यही चर्चा करते हुए बताया कि जैन मन्त्र शास्त्र अगाध है और हमने यहांके शास्र भण्डारसे बड़ी मेहनतसे भैरब एमावतीकल्प, बालामालिनी कल्प, अम्बिका कल्प, मन्त्र व्याकरण व बीजकोष प्राप्त करके उनकी प्रेम कोपी की है तथा सरका हिन्दी अनुवाद भी हमने
Page #4
--------------------------------------------------------------------------
________________
[४] तैयार किया है। अतः यदि आप इनमेंसे कुछ छपाना चाहे तो हम दे सकते हैं। इससे हमने आपकी ये सब प्रेस कापियां मंगाकर देखीं और इनमें से प्रषस "भैरव पद्मावती कस्प" प्रकट करनेकी स्वीकारता दे दी जो उन्होंने ठीक करके पीछेसे ची.पी.से सूरत भेज दी थी।
एक दो साल तो इसे हम नहीं छपा सके फिर इसके छापने का कार्य प्रारम्भ किया और ४८ पृष्ठ छप चुके तव मालूम हुआ कि मन्त्रशानके इसके विधानोंमें कहीं कहीं अशुद्ध चीजोंका व कहीं वहीं हिंसक चीजोंका विधान है। अतः हम असमंजसमें पड़ गये कि इसे छापे या नहीं और इस विचारमें उस समय इसका मुद्रण कार्य रोक लिया गया जो १४-१५ वर्षों तक रुका रहा । इस वीचमें कई पंडितोंकी हमने बार बार राय ली तो कईयोने कहा कि इसे नहीं छपाना चाहिये तो कईयोंने कहा कि कापड़ियाजी, इसे अबश्य छपाना चाहिये, और नोट कर देना चाहिये कि मन्त्रशास्त्रोंमें अशुद्ध चीजोंका विधान कहीं कहीं
आता ही है। अत: इन्हे साधन करनेवाले विचार करके ही इन विधानों को करें या न करें। ___ अतः हमने इस "भैरव पद्मावती कल्प" मन्त्रशास्त्रको ४९ पृष्ठसे पुनः छपाना प्रारम्भ किया और पूर्ण करके यह मंत्रशास्त्र प्याज प्रशाशमें आ रहा है, जो ४६ यन्त्र सहित है।
श्री० प० चन्द्रशेखरजी शास्त्रीने इसकी विस्तृत प्रस्तावना (विषय सूची व यन्त्र सूचि सहित) लिख भेजी है (जो आगे प्रगट है) उसके लिये हम आपकी इस साहित्य सेवाका बड़ा उपकार मानते हैं। आपने जिस विद्वत्ता व परिश्रमके साथ इसकी प्रस्तावना लिखी है वह विद्वानोंके पढ़ने योग्य है।
इस ग्रंथके साथमें, हमने विचार किया कि पद्मावती महसनाम स्तोत्र, छन्द, पूजा आदि रख दिये जानें तो क्या
Page #5
--------------------------------------------------------------------------
________________
[५] ही अच्छा हो, अतः हमने सूरतके जुने मन्दिर, गुजरतिी मन्दिर व मेवाड़ा मन्दिरोंसे ऐसे हस्तलिखित शास्त्र प्राप्त किये व बम्बईखे हमारी बड़ी बहिन श्रीमति काशीवहिन ( उर्फ नन्दकोरबाई) चुन्नीलाल हेमचन्द जरीबालोंकी धर्मपत्नी, उनके पास यही पद्मावती छन्द लिखे हुये थे उसकी कापी कर लाये
और खषसे मिलान करके इस ग्रन्थ के अन्तमें पद्मावती सहस्रनाम, पद्मावती स्तोत्र, पद्मावती कवच स्तोत्र, पद्मावती पटल स्तोत्र, पद्मावती दण्डक स्तोत्र, पद्मावती स्तुति, पद्मावती छन्द व पद्मावती पूजा व स्तुति भी इस ग्रन्थमें प्रकट किये हैं जो पाठकों को श्री पद्मावती आराधना व पद्मावती सहस्रनाम आदि पाठ करने में बहुत उपयोगी होंगे। __इस मन्त्रशास्त्रमें हमारा विचार था कि श्री पद्मावतीमाताका कोई प्राचीन चित्र रखा जावे तो खोज करने पर एक ऐसा चित्र श्री उमाकान्त प्रेमानन्द शाह एम. ए. बडौदा जो कि इस विषयके पी. एच. डी. के अभ्याली हैं उनसे मिला जो इस प्रन्थमें प्रकट किया गया है जिसको देखनेसे पाठकोंको मालूम होगा कि दक्षिण प्रांत के जैन मन्दिरों में पद्मावतीकी कैती कैदी अलभ्य मूर्तियां हैं।
हमारा विचार है कि यदि हो सका तो हम मालामालिनी कल्प भी हिन्दी अनुवाद सहित भविष्यमें प्रकट करेंगे। __ अन्तमें इस मन्त्र शास्त्रका उद्धार करने करानेवाले महात् विद्वान् पं० चन्द्रशेखरजी शास्त्रो देहलीका हम पुनः आभार मानते हैं क्योंकि आपने इसे तैयार न कर दिया होता तो यह मंत्रशास्त्र हिन्दी अनुवाद सहित प्रकट नहीं हो सकता था। वीर म० २४७९
निवेदक
मूलचन्द किसनदास कापडिया ता. २५-१२-५२
Page #6
--------------------------------------------------------------------------
________________
eHINITIATIIIIIIIIIII
D. दूसरी आत्तिका निवेदन व
इस मन्त्रशालकी प्रथम आवृत्ति खत्म हो जाने पर तथा इसकी मांग भाती ही रहती है इसलिये इसकी यह दूसरी बावृत्ति प्रष्ट दी जाती है।
प्रथम आवृत्तिमें मशुद्धियां थीं अतः शुद्धिपत्रक रखा गया था लेकिन इसबार सब अशुद्धियां सुधार भी गई हैं तथा ४६ यन्त्र प्रथम आवृत्तिमें अन्तमें बलग दिये गये थे वे भी इसवार श्लोलोंके साथमें ही दिये गये हैं।
प्रथम आवृत्तिमें भैरव पद्मावतीका १ प्राचीन फोटो दिया गया था जव कि इसवार दूसरा प्राचीन फोटो भी दिया गया है।
इसके अनुवादक पं० चन्द्रशेखरची शस्त्री देहली तो दो वर्ष हुए स्वर्गवासी हो गये हैं लेकिन उनकी यह सानुवाद कृति अमर ही रहेगी।
हमने उनका अनुवादित दूसरा मन्त्रशास्त्र "ज्वालामालिनी कल्प" भी २६ यन्त्रों सहित सचित्र प्रस्ट किया है जो ५) में मिल लोगा तथा "अम्बिकादेवी अल्प" थी इस प्रक्टरनेनाले हैं। जो मूल मिला है अतः उसका हिन्दी अनुवाद तैयार करवा रहे है। __"भैरव पद्मावती पल्प" की इस दूसरी आवृत्तिा शघ्र ही प्रचार हो जाय ऐसी हम आशा रखते हैं।
निवेदकवीर स० २४९६
मूलचन्द किसनदास कापडिया, कार्तिक सुदी २
-प्रकाशक (आयु ८७) ता. ११-११-६९ ।
सूरत
Page #7
--------------------------------------------------------------------------
________________
अनुवादकको प्रस्तावना
मन्त्र शास्त्रका विषय जैन शास्त्रों में द्वादशांग वाणी जितना ही पुराना है। द्वादशांग वाणीके बारह अंग बोदह पूर्यो में से विद्यानुवाद पूर्व यन्त्र, मन्त्र तथा तन्त्रोंका सबसे बड़ा संग्रह है। हमारा मूल मन्त्र णमोकार मन्त्र मी एक मन्त्र ही है
और उससे इहलौकिक तथा पारलौकिक सभी प्रकार के लाभ होते हुए देखे गए हैं। __ मन्त्र शासकी वैदिक परम्परामें भी जैन यन्त्रोंके महत्वको स्वीकार किया गया है, वहां तो यहां तक लिखा हुआ है कि वैदिक मन्त्रोंको सो शिवजीने कील दिया था, लतएल ना कलियुगमें सिद्ध नहीं हो सकते । किन्तु जैन मन्त्रों को बिना विचारे ही सिद्ध किया जा सकता है। ___ क्रमशः भगवान महावीर के निर्वाणके बाद तीन लेवलियोंका निर्वाण होने पर बम्पूर्ण द्वादशांग बाणीशा अस्तित्व पांचवें तथा
मन्तिम श्रतक्लो सद्दास्थामीके समय तक तो बना रहा. किन्तु उसके बाद उसमें उत्तरोत्तर क्रमशः न्यूनता होने लगी।
चारह अंगोंझा लोप होने पर भी पूर्व ज्ञान उनके वाद तरफ भी बना रहा, उसमें भी विद्यानुमादका अस्तित्व तो बहुत वादतक बना रहा। ___ छाजकल जो जयपुर तथा अजमेरले भण्डारों में विद्यानुवाद नामसे यन्त्र मन्त्र तथा तन्त्रका पूर्व प्रन्य मिलता है, पास्तबमें वह विद्यानुबादपूर्व नहीं है। यह तो तत्कालीन मन्त्रोंछे ग्रन्ध को देखकर उन सबका संग्रह प्रभ है। इस प्रन्यका संग्रह सुकुमारसेन नामक एक मुनिने करके उसका नाम विद्यातुशासन रखा था।
Page #8
--------------------------------------------------------------------------
________________
[८] ऐसा प्रतीत होता है कि-सुकुमारसेन मुनिने विद्यानुवादके कमसे कम कुछ अवतरणोंको अवश्य देखा होगा। क्योंकि विद्यानुशासनमें उन्होंने विद्यानुवादके कुछ अवतरणोंको दिया है। ___ इस विधानुशासनमें वतलाया गया है कि चौबीस तीर्थकर की चौवीस शासनदेधियोंके कभी चौबीसों कल्प उपस्थित थे. फिर भी सुकुमारसेन मुनिके वर्णनसे यह पता चलता है कि उन्होंने कुल चार कल्प ही देखे थे
१-भैरव पद्मावती कल्प। २-ज्वालामालिनी कल्प । ३-अम्बिका कल्प।
४-चक्रेश्वरी कल्प। विधानुशासनमें प्रथम तीन फल्पोंके पश्चात् अवतरण पाये जाते हैं, किंतु चक्रेश्वरी कल्पका, कोई अवतरण हमारे ध्यानमें नहीं पाया।
इनमें से हम पिद्यानुशासनके अतिरिक्त भैरव पद्मावती कल्प तथा ज्वालामालिनी कल्पकी भाषाटीकाएं बना चुके हैं । अम्बिका कल्पकी मूल प्रति हमने श्री महावीरजी अतिशयक्षेत्रके पुस्तकालयले प्राप्त की थी, किन्तु चक्रेश्वरी फल्पकी प्रतिके अस्तित्वका अभीतक भी हमको पता नहीं लग सका है। इनमेंसे भैरव पध्मावतीकल्प अपनी भाषाटीका सिहत पाठकोंके सन्मुख उपस्थित किया जाता है।
ग्रन्थकारका परिचय
भैरव पद्मावती कल्पके रचयिता श्री मल्लिषेण मुनि थे। उनके प्रन्धकी प्रशस्तिमें उमय भाषा कवि चक्रवर्ती, करिशेखर तभा गाठड़मत्रवादवेदी आदि उपाधियां लिखी मिलती है। उनसे पता चलता है कि उनका संस्कृन तथा प्राकृत दोनों भाषामोंपर
Page #9
--------------------------------------------------------------------------
________________
[९] पूर्ण अधिकार था। साथ ही वह एक उच्च कोटि के कवि भी. थे। उनके गारुड़मन्त्रबादबेदी होनेका प्रमाण तो प्रस्तुत ग्रन्धका दसवां एवं अन्तिम परिच्छेद-होले रहा है।
मल्लिषेणके ग्रन्थ
यद्यपि भैरव पद्मारती कल्पको देखते हमको उनकी गुरुपरम्पराके अतिरिक्त उनके सम्बन्धमें अन्य किसी बात का पता नहीं लगता। किन्तु ग्रन्थान्तरों को देखनेसे इस बातका पता चलता है कि उनके बनाए हुए कमसे कम निम्नलिखित प्रस्थ अवश्य थे
१-महापुराण, २-नागकुमार चरित्र, ३-भैरव पद्मावती वल्प, ४-खरस्वती मन्त्र इल्प तथा ५-बालिनी कल्प ।
ऊर जिन्स ज्वालामालिनी पल्पका वर्णन झ्यिा गया है वह उस ज्वालिनी पल्पखे मिश है। और उसके लेखक भी मल्लिषेण मुनिसे मि एक इन्द्रनन्दि आचार्य थे। यह इन्द्रनन्दि आचार्य बालवनन्दिके प्रशिष्य एवं दयानन्दिछे शिष्य थे। उन्होंने हेलाचार्यके द्वारा प्रोत्साहन पाकर शक सम्बत् ८६१ तदनुसार विक्रम सम्बत् ९९६ में ज्दालामालिनी वल्रकी रचना की थी, ज्वालामालिनीदेवी के सम्बन्धमें हेलाचार्यने भी मालिनीमत नामसे एक ग्रन्थ बनाया था।
मल्लिषेणका समय
मल्लिषेण भाचार्यने भैरव पद्मावती कल्पमें अपनी गुरुपरम्परा यह दी है
Page #10
--------------------------------------------------------------------------
________________
[१०] अजितसेनगणि
कनकसेनगणि
जिनसेन
मलिषेण किन्तु इस गुरु-परस्परामें उन्होंने अपने समयका कोई उल्लेख नहीं किया है। किन्तु उनके अन्य ग्रन्धोंको देखनेसे यह पता चलता है कि यह विक्रमकी ग्यारहवीं शताब्दीके अन्त अथवा वारहीं शताब्दीके आरम्भमें अवश्य विद्यमान थे। क्योकि उन्होंने अपने ग्रन्थ महापुराणको मुलगुण्ड नगरमें शक संवव ९६९, एवं विक्रम संवत् ११९४ में ज्येष्ठ शुक्ला पञ्चमीके दिन समाप्त किया था।
मुदगुण्ड नगर धारवाड़ जिलेकी गदक तहसील में बहांसे दक्षिण पश्चिमकी मोर बारह मीलपर है। महापुराणझी रचना मल्लिषेण मुनिने मुलगुण्ड नगर के एक जैन मन्दिरमें की थी। उन दिनों उक्त मन्दिरकी ख्याति एक तोर्थके रूपमें थी। मुलगुण्ड वार में आज भी उक्त मन्दिर के अतिरिक्त चार अन्य जैन मन्दिर भी हैं। इन मन्दिरों में शक सब ८२४ से लेकर १२९७ तबके शिलालेख पाए जाते हैं। इनमें से एक लेखमें आसार्य नामक व्यक्ति द्वारा सेनराशके कनकसेन मुनिको एक खेतके दान देनेका वर्णन भी किया गया है।
मन्त्र शास्त्रोंका आधार
इस मन्त्र शास्त्रोंको रचना बीजकोष तथा मन्त्र व्याकरणके आधारपर की जाती है। यद्यपि उपरोक्त विद्यानुशासनमें बीजकोष तथा मन्त्र व्यापरणके कुछ नियोका वर्णन किया गया है, किंतु
Page #11
--------------------------------------------------------------------------
________________
[११] इस विषयपर अन्य किसी प्रन्धमें भी और कुछ वर्णन नहीं, पाया जाता। हमने अभी २ इस विषयमें अपने तुलनात्मक अध्ययनके बलपर दीजकोषके दोनों भागों तथा मन्त्र व्याकरणकी रचना की है; जो प्रेसमें जा चुके हैं और शीघ्र ही पाठकोंके सम्मुख उपस्थित किये जायेंगे।
ग्रन्थकी आस्यन्तर परीक्षा
मल्लिषेण मुनिने इस प्रन्थकी रचना कुल चारसौ श्लोकों में ही है। फिर भी उन्होंने इसका विभाजन निम्नलिखित दशः परिच्छेदों में किया है
१. मन्त्री लक्षण, २. सकलीकरण क्रिया, ३. देवीकी आराधना विधि, ४. द्वादश रंजिका यन्त्र विधान, ५. स्तम्सन यन्त्र, ६. स्त्रीभाषण यन्त्र, ७. वश्य यन्त्र, ८. निमित्ताधिकार, ९ तन्त्राधिकार तथा १०. गारुडाधिकार; इनमेंखे तृतीय परिच्छेद पूरेका पूरा पद्मावतीदेनीले सम्बन्ध है। शेष परिच्छेदोंमें अन्य सन्त्रों यन्त्रों को भी दिया गया है।
इस प्रन्ध में यन्त्रोंकी संख्या ४६ है उन सभी इस ग्रन्धमें पृथक् २ ब्लॉक बनाकर बना दिया गया है।
इस ग्रन्थकी पाभ्यन्तर परीक्षा करनेपर शुद्ध आम्नायवालोंको एक शंका हो सकती है, वह यह है कि इस ग्रन्धमें यन्त्रों तथा तन्त्रोंकी प्रयोग निधिः माही२ रक्त, हड्डो खादि अशुद्ध पदार्थों के छनेका विधान है। वैसे उसमें हिंसाका वर्णल लेशमान भी नहीं है। किन्तु अशुद्ध पदार्थों के स्पर्श तथा उनके प्रयोगका वर्णन इतनी स्पष्टतासे किया गया है कि उन्हया अन्य अर्थ नहीं किया जा सकता । इस सम्बन्धमें स्पष्टीकरणके लिए केवल बड़ी कहा जा सकता है कि अशुद्ध पदार्थों के स्पर्शसे कोई भी तन्त्र प्रशदचा
Page #12
--------------------------------------------------------------------------
________________
[१२ 'हुमा नहीं। विधानुशासन, ज्वालामालिनी कल्प, पद्मावती कल्प तथा अम्बिका बल्ल सभी में इस प्रकार के प्रयोगों को दिया गया है। सो इसमें भी उनके स्पर्शका ही विधान है, उनके भक्षण विधान नहीं है। फिर यह भी आवश्यक नहीं है कि साधक इस ग्रंथमें बतलाए हुये सभी प्रयोगोंमें हाथ डाले। __ मन्त्रशास्त्र तो एक विद्या है, यह धर्मशास्त्र नहीं है । धर्मशास्त्रमें इस प्रकार के विधानोंका अस्तित्व दोषयुक्त होता, किन्तु मंत्र विद्यामें तो इसप्रकार के विधानोंका वर्णन करना ही पड़ता है। __ अन्समें हमको यह निवेदन करना है कि इस ग्रन्धकी भाषा टीकाको विक्रम सं० १९८४ ईसवी सन् १९२७ में तैयार करके इमने १९२८ के अन्तमें उसे सेठ मूलचन्द किसनदास कापड़िया सूरतको प्रकाशनार्थ दिया था। किन्तु कहीं कहीं हिंसाका प्रकरण देखकर उन्होंने इन ग्रन्धके मुद्रणकार्यको बीच में ही रोक दिया था। 'किन्तु बादमें जब उनको पता चला कि पल्प ग्रन्थोंने इस प्रकारके वर्णन अवश्य होते हैं तो उन्होंने इस प्रथको फिर छपवाया है।
इस प्रन्धको मुद्रित करानेमें उन्होंने हमको इसके प्रफ नहीं दिखाये, जिससे उनमें अनेक अशुद्धियां रह गयीं अतः पाठकों की सुविधाके लिए प्रथमें विस्तृत शुद्धिपत्र बनाकर लगा दिया गया है।
यदि पाठक इस सम्बन्धमें किसी अन्य त्रुटि की ओर ध्यान अाकर्षित करेंगे तो उसे प्रन्धके अगले सस्करणमें सुधार दिया "जायगा। ४५६६ बाजार पहाडगन नई दिल्ही ) भाद्रपद शुक्ला ११, स. २००९
। चन्द्रशेखर शास्त्री ता. ३१ अगस्त १९५२ ) (आचार्य)
Page #13
--------------------------------------------------------------------------
________________
० 6 oc www ma
विषयसूत्री--श्री भैरव पद्मावती कल्प विषय
श्लोक प्रथम परिच्छेद (मत्री लक्षण) मङ्गलाचरण पद्मावतीके नाम अन्धकी अनुक्रमणिका मंत्रीका लक्षण
द्वितीय परिच्छेद ( सकलीकरण क्रिया) सकलीकरण क्रिया
१-१२ ४-७, अंशक परीक्षा
१२-२२ तृतीय परिच्छेद ( देवोकी आराधन विधि ) मन्त्रोंके अपमें-गूभनेके भेद मन्त्रोंकी सामान्य साधनविधि
४-१३ ११-१४ पद्मावतीको सिद्ध करनेका विधान अनुष्ठानमें पास रखनेका यन्त्र
१४-१९ पूजनके पांचों उपचार
२५-२९ २०-२१ पद्मावती सिद्ध करने का मूल मन्त्र
२१ पद्मावतीका षडक्षरी मन्त्र पद्मावतीका व्यझर , पद्मावतीका एकाक्षर ,
३४-३५ २२-२३ होम विधि
३६-३८ २३ पार्श्वनाथ भगवानके यक्षकी साधनविधि ३९-४० २४ वशीकरण चिन्तामणि यन्त्र
चतुर्थ परिच्छेद (द्वादशरंजिका मन्त्र विधाम) मोहनमें-ठी रंजिका यन्त्र भाकर्षणमें ही रंजिका यन्त्र
३२
३३
२२
Page #14
--------------------------------------------------------------------------
________________
__श्लोक
पृष्ठ
.
[१४]
विषय अतिषेषकमें हूं रंजिका यंत्र विद्वेषक यं रंजिका यंत्र
७-८ ३०-३१ सत्रु सचाटनमें यः रंजिका यत्र चबाटनमें हं रजिका यंत्र
११-१२ उच्चाटनमें फट् रंजिका यंत्र
१३-१४ शत्रुके छेदन, भेदन और निग्रहमें म रंजिका यंत्र १५-१६ वशीकरणमें ई रजिका यत्र स्त्री सौभाग्यमें क्ष वषट् रंजिका यंत्र १९-२० स्तम्भनमें लं रजिका यंत्र ।
२१ प्रहशांतिमें श्री राजका यंत्र
२२ पञ्चम परिच्छेद (स्तम्भन यन्त्र) भग्नि स्तम्मन यंत्र प्रथम त्र प्रथम
१-२ चाणी स्तम्भन भ्यान अग्नि स्तम्भन यंत्र द्वितीय जल, तुला, सर्प और पनि स्तम्भन यंत्र
४४ क्रोध, गति, सेना और बिहा स्तम्भन पाउलि यंत्र ६-१० ४७-४९ दिव्य यस्तु सम्भक यंत्र
११-१४ ५१ सेना स्तम्भक यन्त्र
१५-२२ ५३-५४ षष्ठ परिच्छेद (स्त्री आकर्षण यन्त्र)
५५ इष्टांगनाकर्षण यन्त्र प्रथम
१-३ ५६ "" , द्वितीय
४-५ ५८ सी भाकर्षण , तृतीय
६-८ ५९-६० ९- १ ६१
६२-६४ १९६५
"
" पञ्चम
Page #15
--------------------------------------------------------------------------
________________
[१५] सप्तम परिच्छेद (वाय यन्त्र)
विषय उबर शांत करनेका यन्त्र
१-५ ६६-६७ पश्य यन्त्र प्रथम
६-८ ६८-६९ ,,,, द्वितीय
९-१० ७०-७१ " , तृतीय
११-१३ ७२
१४-१६ ७३-७४ अरिष्टनेमि मन्त्र वश्य यन्त्र पत्राम
१८-१९ " , पष्ठ
२०-२१ दूसरेको सुलानेका मन्त्र
२२-२३ रण्डा यक्षिणीकी सिद्धि
२४-२६ ७७-७८ स्त्री वशीकरण ध्यान
२७-३२ ७८-७९ किसीको पर ठानेका मन्त्र
३३-३५ ८० ब्बर हरण यन्त्र होम द्रन्य विधान
३७-४२ ८१-८२ अष्टम परिच्छेद (निमित्ताधिकार) दर्पण निमित्तकी प्रथम सिद्धि " , द्वितीय ..
८-११ अगुष्ठ निमित्तकी सिद्धि । दर्प१ , तीसरी सिद्धि १३-१८ दीपक निमित्तकी सिद्धि-सुन्दरी मन्त्र १९-२१ कर्ण पिशाचिनी मन्त्र
२२-२३ ग्रह हरण यंत्र
२५-२५ धन दर्शक दीपक
२६-२८ गणितका निमित्त मुद्र में श्रद्धेन्दु त्रिशत पक्र
३०-३१, ९१-९२ गर्भ में पुत्र है या पुत्री
१२
२९
Page #16
--------------------------------------------------------------------------
________________
१-३
" , गुटिका
[१६] . विषय
श्लोक स्री अर्थवा पुरुष- किसकी मृत्यु होगो ३३
ननम परिच्छेद (तन्त्राधिकार ) मोहन तिलक स्त्री वश्य पान
५-६ . वश्य चूर्ण पञ्चांग मल वश्य दीपक वशीकरण प्रयोग स्त्री वश्य मदन क्रमुक
१३-१४ वश्य काजल
१५-१९ पिशाची पान
२० शत्रु भयकरण काजल
२१-२२ अदृश्य गुटीका
२३-२४ वीर्य स्तम्भक गुटीका
११
१२
९७-९८
९९
२५
" "
, अस्थि , दीपक
द्रावण लेप (प्रथम) द्यत तथा वादविजय मूल रतिदायक लेप द्रावण लेप द्वित्तीय
३०-३१ ३२-३३ ३४-३७
१०१-२
१०२ १०२-३
" जलका
शाकिनी हरण तिलक दिव्य स्तम्भक चूर्ण अग्नि तथा तुला स्तम्भन अच्छा रोजगार पाना गर्भ निवारण
१०४
१०४ १०४
Page #17
--------------------------------------------------------------------------
________________
[१७] दशम परिच्छेद (गाड़ाधिकार)
विषय
श्लोक
१०५ १०५-६ १०६-७
१०७ १०७
~d 3ur 9 vr 2014
१०८
१८८
गारुड़ विद्याके आठ अंग (१) सग्रह विधान (२) आग न्यास विधान (३) रक्षा विधान (४) स्तोमन विधान (५) स्तम्भन विधान (६) विषनाशन विधान (७) खचोद्य विधानमें
विष संक्रमण मन्त्र
नागावेशन मन्त्र विषनाशन मन्त्र प्रथम
,,,, द्वितीय आठ प्रकारके नागों का वर्णन विषोंका लक्षण विषहरण मत्र नानाकर्षण मन्त्र नागप्रेषण मंत्र दूतको गिराकर रोगोको अच्छा करना। दष्टपातन और पटाच्छादन मत्र निर्षिषारण मत्र नागको साथ२ चलाना सर्पके मुखको कीलने का मंत्र सपैकी गतिको कीलनेका मंत्र सर्पकी दृष्टिको कालनेका मंत्र सर्पको कुण्डलाकार बनाने का मंत्र
१०८ १०८
१०९ १०९-१०
१४-१६ १७-१८ १९-२१ २२ २३-२५
११०-११
१११
११२
२७-२८
११३ ११२
११४
Page #18
--------------------------------------------------------------------------
________________
११६
११७
११८
[१८] विषय
श्लोक पृष्ठ सर्पको घडे में घुमानेका मंत्र नाग स्तम्भक रेखाका मत्र
११६ (८) खटिझा फणि दर्शन विधान ३५-३६ १६६-१७ विष भक्षण मत्र विषसे शत्रु नाशन विष नाशन तत्र
११८ विच्छू विषनाशन तंत्र घरमेंसे सर्प भगानेका यत्र
११८ शिष्यको विद्या देनेका विधान
४२-५२ ११९-२२ प्रन्धकार की गुरुपरम्परा
५३-५७ १२३-२४ श्री पद्मावती सहस्रनाम स्तोत्रम्
१२६ श्री न्यास मंत्रम् श्री जाप्य मंत्रम् श्री पद्मावती कवचम् श्री पद्मावती दडक स्तोत्रम् श्री स्तुतिः
१४५ श्रो पद्मावती स्तोत्रम्
१४७-५३ श्री पद्मावती छद
१५४-६१ श्री पद्मावती अष्टक श्री पद्मावती स्तुति
१६८ आरती पद्मावती धाता
१७२ इति पंडिता कलामतीदेवी सरस्वती (धर्मपत्नी काव्यसाहित्यतीर्थाचार्य प्राच्यविद्यावारिधि श्री चन्द्रशेखर शास्त्री) कृत
भैरव पद्मावतीकल्पकी विषयसूची समाप्त ।
१४०
Page #19
--------------------------------------------------------------------------
________________
[ १९
भैरव पद्मावती कल्पके ४६ यंत्रोंकी सूची.....
अध्याय
७-८ ९-१० ११-१२ १३-१४
शुत्र संख्या यंत्रका नाम
१- अनुष्ठान में पास रखनेका यंत्र २- होमकुण्डमें गाड़ने का यंत्र ३- वशीकरण चिंतामणि यंत्र ४- मोहनमें ही रंजिका यत्र ५- आर्पणमें ही रंजिका यंत्र ६- प्रतिपंधक हूं रंजिका यंत्र ७- विद्वेषक यं रजिका यंत्र ८- शत्रु उच्चाटनमें य: रंजिका यंत्र ९- उच्चाटनमे ह रंजिका यंत्र १०- उच्चाटन में फट रंजिका यत्र ११- शत्रुके छेदन-भेदन और लिग्रहमें
रंजिका यंत्र १२- वशीकरणमें ई रंजिका यंत्र १३- श्री सौभाग्यमें क्ष नघट रंजिका यन्त्र १४- स्तम्भन में लं रंजिका यंत्र १५- प्रहादि शांतिमें श्री रंजिका यंत्र १६- मनिस्तम्भ, यंत्र प्रथम १७- अप्रितम्भक यंत्र द्वितीय १८- दिव्य जल स्तम्भन यंत्र १९- दिव्य तुला स्तम्भन यंत्र २०- दिव्य सर्प स्तम्भन २१- दिव्य पनी स्तम्भन यंत्र २२- कोप, गति, सेना और जिला
स्तनमा चाईलि यंग
१५-१६ १७-१८ १९-२०
२१
Page #20
--------------------------------------------------------------------------
________________
श्लोक ११-१४ १५-२२
४-५ ६-८
१२-१८
१९
-[२०] यत्र संख्या यंत्रका नाम ___ अध्याय २३- दिव्य वस्तु स्तम्भक यंत्र २४- सेना स्तम्भक यंत्र २५- इष्टांगलाकर्षण यत्र प्रथम २६- इष्टांगनाकर्षण यत्र द्वितीय २७-खी आकर्षण यंत्र,तृतीय २८-स्त्री आकर्षण यंत्र चतुर्थ २९- स्त्री आकर्षण यत्र पचम ३०- बी आकर्षण यत्र षष्ठ ३१- दाहज्वर शांत करनेका यत्र ३२- वश्य यंत्र प्रथम ३३- बश्य यंत्र द्वितीय ३४- वश्य यंत्र तृतीय ३५- वश्य यंत्र चतुर्थ ३६- बश्य यंत्र पचम ३७- वश्य यंत्र षष्ठ (त्रैलोक्यक्षोभण यत्र) ३८- बी वशीकरण ध्यान ३९- ज्वर हरण यंत्र ४०- दीपक निमित्त सुन्दरी यंत्र ४१- ग्रह हरण यंत्र ४२- युद्ध में अर्द्धन्दुत्रिशूल चक्र प्रथम ४३- युद्ध अर्द्धन्दुत्रिशूल चक्र द्वितीय ४४- सपं विषरक्षक यंत्र ४५- सर्प निवारक यंत्र ४६- शिष्यको विद्या देनेका यंत्र
९-१० ११-१३ १४-१६ १८-१९ २०-२१ २७-२८
१९-२१ २४-२५
३०-३१
४१
४४-४६
Page #21
--------------------------------------------------------------------------
________________
TAUNAL
श्री मलिषेणसूरिविरचितभैरव पद्मावतीकल्प
भाषाटीका सहित
प्रथम परिच्छेद
मंगलावरण कमठोपसर्गदलनं त्रिभुवननाथं प्रणम्य पार्श्वजिनम् । वक्ष्ये ऽभीष्टफलप्रदभैरवपद्मावती कल्पम् ॥ १॥ भाषा टीका-कमठके किये हुये उपसर्गको नष्ट करनेवाले, तीन लोकके स्वामी, पार्श्वनाथ भगवानको नमस्कार करके अभीष्ट फल की सिद्धिको देनेवाले भैरव पद्मावतीकल्पको कहूंगा।
पाशफलवरदगलवशकरणकरा पद्मविष्ठरा पद्मा।
सा मां रक्षतु देवी त्रिलोचना रक्तपुष्पाभा ।। २ ।। भा० टी०-हाथोंमें पाश, फल, घरदान और अंकुशचाली, कमरके भासनवाली, तीन नेत्रपाली और रक्त पुष्पके समान कान्तिवाली देखी पद्मावती मेरी रक्षा करें।
Page #22
--------------------------------------------------------------------------
________________
हैं भैरव पद्मावती कल्प
पद्मावतीके नाम
तोतला त्वरिता नित्य त्रिपुरा कामसाधनी।
देच्या नामानि पद्मायाः तथा त्रिपुरभैरवी ॥३॥ भा० टी०-देवी पद्मावतीके निम्नलिखित नाम है-तोतला, त्वरिता, नित्या, त्रिपुरा, कामसाधनी और त्रिपुरभैरची ।
ग्रन्थकी अनुक्रमणिका आदौ साधकलक्षणं सुसकली देव्यर्चनाया: क्रमम् । पश्चाद्वादशयन्त्रभेदकथनं स्तम्भाङ्गानाकर्षणम् ।। यन्त्रं वश्यवरं निमित्तमपरं पश्योषध गारुड ।
वक्ष्येऽहं क्रमशो यथा निगदितान फल्पेऽधिकारान्दश ।। ४ ॥ भा० टी०-(१) आदिमें साधकके लक्षण, (२) समलीकरण क्रिया, (३) देवीके पूजनका विधान, (४) द्वादश यंत्र भेद कथन, (५) स्तंभन, (६) स्त्री आकर्षण, (७) वश्यकर्म के यत्र, (८) दर्पणादि निमित्ताधिकार, (९) वशीकरण करनेकी औषधियां तथा (१०) गारुडाधिकारको मैं पूर्व आचार्योंके अनुसार कहूंगा।
इति दशविधाधिकारैललिताऽऽयोश्लोकगीतिसदवृत्तः । विरचयति मल्लिषेणः कल्पं पद्मावतीदेव्याः ॥ ५॥ भा० टी०-इसप्रकार मल्लिषेण आचार्य इस पद्मावतीकल्पको सुन्दर आर्या, गीति और श्लोक रूप अच्छे२ छन्दोंसे दश अधिकारोंमें कहेंगे।
Page #23
--------------------------------------------------------------------------
________________
भैरव पद्मावती कल्प
(ATHADDE
मन्त्री (साधक) के लक्षण
निर्जितमदनाटोपः प्रशमितकोपो विमुक्तविकथालापः । देव्यर्चनानुरक्तो जिनपदभक्तो भवेन्मंत्री ॥ ६ ॥
भा० टी० - जिसने कामदेबको जीत लिया हो और जो शांत क्रोधवाला, विकथाओंका त्यागी, देवोके पूजनका प्रेमी और श्री भगवान् जिनेन्द्रदेव के चरणोंका भक्त हो वही मन्त्री हो खकता है ॥ ६ ॥
मन्त्राराधनशूरः पापविदूरो गुणेन गम्भीरः ।
मौनी महाभिमानी मन्त्री स्यदीदृशः पुरुषः ॥ ७ ॥ भा० टो०- जो मन्त्र सिद्ध करनेमें नीर, पाप रहित, गुणों से गम्भीर, मौनी और महा अभिमानी हो, ऐसा पुरुष मन्त्री हो सकता है ।
गुरुजन हितोपदेश गततन्द्रो निद्रा परित्यक्तः । परिमितभोजनशीलः स स्यादाराधको देव्याः ॥ ८ ॥
भा० टी० - जो गुरुजनोंसे उपदेश पाया हुआ, तन्द्रा रहित, 'निद्राको जीतनेवाला, और कम भोजन करनेवाला हो वही देवीका आराधक हो सकता है ।
निर्जितविषयकषायो धर्मामृतजनितहर्षगतकायः । गुरुवर गुणसम्पूर्णः स भवेदाराधको देव्याः ॥ ९ ॥
भा० टी० - जिसने विषय और कषायोंको जीत लिया हो, जिसके शरीर में धर्मरूर अमृतसे उत्पन्न हुआ हर्ष भरा हो तथा जो सुन्दर२ गुणोंसे पूर्ण हो वह देवीका आराधक होता है ||९|| शुचिः प्रसन्नो गुरुदेवभक्तो दृढव्रतः सत्यदयासमेतः । दक्षः पटुर्बीजपदावधारो मन्त्री भवेदोदृश एवं ढोके ॥१०॥
Page #24
--------------------------------------------------------------------------
________________
भैरव पद्मावती कल्प
भा० टी०-जो पवित्र, प्रसन्न, गुरु और देवका भक्त, दृढ़ व्रतवाला, सत्यभाषी, दयालु, बुद्धिमान् , चतुर और बीजाक्षरोंका निश्चय करनेवाला हो ऐसा व्यक्ति हो लोकमें मन्त्री हो सकता है। एते गुणा यस्य न सन्ति पुंसः, कचित्कदाचिन्न भवेत्त मन्त्री । करोति चेदर्पवशात्स जाप्य, प्राप्नोत्यनर्थ फणिशेखरायाः ॥१।।
अर्थ-जिस पुरुषमें यह गुण न हों वह कहीं भी और कभी भी मन्त्री नहीं हो सकता, यदि ऐसा पुरुष अभिमानसे जाप करता है तो वह देवी पद्मावतीसे हानिको प्राप्त होता है। इति भैरव पद्मावतोक्ल्पकी भाषा टोकामें मन्त्रीलक्षणाधिकार
नामका प्रथम परिच्छेद समाप्त ।
द्वितीय परिच्छेद
सकलीकरण क्रिया स्नात्वा पूर्व मन्त्री प्रक्षालितरक्तवस्त्रपरिधानः ।
सम्मार्जितप्रदेशे स्थित्वा सकलीक्रियां कुर्यात् ॥१॥ भा० टी०-मन्त्री पहिले स्नान करके, धुले हुये लाल वस्त्र पहिनकर लिपे पुते साफ स्थानमें बैठकर सकलीकरणकी क्रिया करे।
हो वामकरांगुष्ठे तर्जन्यां ह्रीं च मध्यमायां हू ।
ह्रौं पुनरनामिकायां कनिष्ठिकायां च हश्व स्यात् ॥२॥ - भा० टी०-चाए हाथके अंगूठेमें हां, तर्जनीमें ही, मध्यमामें हैं, मनामिकामें ह्रौं और कनिष्ठामें हः पाजको स्थापित करे।
Page #25
--------------------------------------------------------------------------
________________
र भैरव पद्मावती कल्प
पञ्चनमस्कारपदेः प्रत्येकं प्रणवपूर्वहोमान्स्यैः । पूर्वोक्तपञ्चशून्यैः परमेष्ठिपदाप्रविन्यस्तैः ।। ३ ।। शीष बदनं हृदयं नाभिं पादौ च रक्षन् रक्षेत्येवम् । कुर्यादेतैर्मन्त्री प्रतिदिवसं स्वाङ्गविन्यासम् ।। ४ ॥ भा० टी०-फिर पंचनमस्कार मंत्रके पदोंसे प्रत्येककी आदिमें ॐ और अन्तमें स्वाहा लगाकर, उन नमस्कार मन्त्रके परमेष्ठिपदोंके सामने क्रमसे उपरोक्त पांचों शून्य बीजों (ह्रां ह्नीं हूं ह्रौं ह्रः) को लगाकर उनमें क्रमसे सिर. मुख, हृदय, नाभि और पैरोंसे वाचक पदोंको लगाकर 'रक्ष रक्ष' लगाता हुआ प्रतिदिन अपने अंगोंका न्यास करे। ॐ णमो अरहन्ताणं हां पद्मावतिदेवि मम शीपं रक्ष रक्ष स्वाहा। ॐ णमो सिद्धाणं ह्रीं पद्मावतिदेवि मम वदनं रक्ष रक्ष स्वाहा । ॐ णस्रो आइरियाणं हू पद्मावतिदेवि मम हृदयं रक्ष रक्ष स्वाहा । ॐ णमो उबझायाणं हो पद्मावतिदेवि मम नाभिं रक्ष रक्ष स्वाहा। ॐ भो लोए सव्वसाहूणं ह्नः पद्मावतिदेवी मम पादौ रक्ष रक्ष
स्वाहा। द्विचतुःपट्ठचतुर्दशकलाभिरन्त्यस्वरेण विन्दुयुतैः।
कूटैर्दिग्विन्यस्तैः दिशासु दिग्बन्धनं कुर्यात् ॥ ५ ॥ भा० टी०-फिर 'ॐ आई ॐौं अक्षांक्षी क्ष क्षौं क्षः पूर्वादि दिशाबन्धनं करोमि' इस मंत्रसे दिशाओंका बन्धन करे।
हेममयं प्रकातं चतुरस्रं चिन्तयेत्समुत्तमम् । विंशतिहरतं मंत्री सर्वस्वरसंयुतैः शून्यैः ।। ६ ।।
Page #26
--------------------------------------------------------------------------
________________
र भैरव पद्मावती कल्प
____भा० टी०-फिर मंत्री "ह हा हि ही हु ह ह ह ह ह्र हे है हो हो हं हः।" इन वीजोंसे स्वर्णमय बड़े ऊंचे वीस हाथ प्रमाण चौकोर प्राकारका चिन्तवन करे !
सर्वस्वरसम्पूर्णः कूटरपि खातिकाकृतिं ध्यायेनिर्मलजलपरिपूर्णामतिभीषणजलचराकीर्णाम् ॥ ७॥ भा० टी०-फिर निम्नलिखित वीजोंसे निर्मल जलसे परिपूर्ण, अत्यन्त भयानक जलचरोसे भरी हुई खाईके आकारका ध्यान करे । वह बीज यह है'क्ष क्षा क्षि क्षी क्षु क्षु क्ष क्ष दल ल क्षे झै क्षो क्षौ क्षं क्षः ।
ज्वलदोङ्काररकारज्वालादग्ध स्वमग्निपुरसंस्थम् । ध्यात्वाऽमृतमन्त्रण स्नान पश्चात् करोत्वमुना । भा० टी०-फिर अग्नि मण्डलमें बैठे हुए अपने आपको जलते हुए ॐ और रकारकी लपटोंसे जला हुआ ध्यान करके निम्नलिखित अमृत मंत्रसे स्नान करे। अग्नि मण्डल
अमृत मन्त्र "aॐ ह्रीं अमृते अमृतोद्भवे अमृतवर्षिणि अमृतं स्रावय२ सं२ क्लीर ब्लर द्रो द्रों द्रावयर सं हं इली क्ष्वी हंसः म सि या उ सा सर्वमिदममृतः
भवतु स्वाहा। रंरंरंर
रंरररररं
g
Page #27
--------------------------------------------------------------------------
________________
एवं भैरव पद्मावती कल्प
निजोत्तमाङ्गामरभूधराने संस्नापितः पार्श्वजिनेन्द्रचन्द्रः । क्षीराब्धिदुग्धेन सुरेन्द्रवृन्दैः संचिन्तयेत्तज्जलशुद्धगात्रम् ।।९।।
भा० टी०-फिर अपने शिरको उत्तम सुमेरुपर्वतके पाण्डुक वनकी पांडुरुशिला कल्पना करे और उसपर देवताओं के समूहके द्वारा क्षीरसागरके दुग्धके समान जलसे स्नान कराये हुये श्री पार्श्वनाथ भगवान के स्नान के जलसे (गंधोदकसे ) अपनेको शुद्ध शरीरवाला कल्पना करे।
मूतग्रहशाकिन्यो ध्यानेनानेन नोपसर्पन्ति ।
अपहरति पूर्वसञ्चितमपि दुरितं त्वरितमेवेह ।। १० ।। भा० टी०-इस ध्यानके करनेसे भूत, प्रह और शाकिनियां कभी भी उपसर्ग नहीं करती। बल्कि इसके ध्यानसे पूर्व संचित पाप भी उसो समय नष्ट हो जाते हैं।
पर्यकासनसंस्थः समीपतरवर्तिपूजनद्रव्यः । दिग्वनितानां तिलक स्वस्य च कुर्यास्सुचन्दनतः ॥ ११ ।।
भा० टी०-पर्यशासनसे बैठा हुआ अपने समीप पूजनके आठों द्रव्योंको रखकर चन्दनसे दिशारूपी बाहुओंके और अपने तिलक करे।
परमाधिपशेखरां विपुलारुणाम्बुजविष्ठिरां। कुछटोरगवाहनामरुणप्रमां कमलाननाम् ।। त्र्यम्बकां वरदांकुशायतपाशदिव्यफलादितां । चिन्तयेत्कमलावती जपतां सतां फलदायिनीम् ।। १२ ।।
Page #28
--------------------------------------------------------------------------
________________
८]
र भैरव पद्मावती कल्प
भा० टी०- फिर शिरपर शेषनागवाली, अत्यन्त रक्तकमलके मासनबाली, फर्कोट नागके वाहनघाली, प्रातःकालीन सूर्यके समान अरुण प्रभावाली, कमलके समान मुखवाली, तीन नेत्रवाली, हार्थोंमें वरदान, अंकुश, बड़े पाश और दिव्य फलवाली तथा जपनेवालाको सदा फलकी देनेवाली पद्मावतीका ध्यान करे।
अंशक परीक्षा परिज्ञायांशक पूर्व साध्यसाधकयोरपि ।
मन्त्र निवेदयेत्प्राज्ञो व्यर्थं तत्फलमन्यथा ।। १३ ॥ भा० टी०-बुद्धिमान पुरुष मंत्र और मंत्री के अशोंको जानकर ही मत्रको बतलावे । अन्यथा वह मन्त्र व्यर्थ होता है।
साध्यसाधकयो मानुस्वारं व्यंजनं स्वरम् । पृथक् कृत्वा क्रतास्थाप्यमूर्बाधोप्रविभागतः ॥ १४ ॥ भा० टी०--मन और मंत्रीके नामके अनुस्वार, व्यंजन और स्वरोको पृथक्२ करके ऊपर मंत्रके और नाचे मंत्रीके नामके अक्षरोंको रखे।
साध्यनामाक्षरं गण्यं साधकाढयवर्णतः । नपसक परित्यज्य कुर्यात्तद्वदभाजितम् ॥ १५॥ भा० टी०-मन्त्रीके नामके अक्षरोंसे मन्त्रके नामके अक्षरोंको ऋऋ ल ल को छोड़ गिने । और उनको जोड़कर चारका भाग दे।
आयो भागोद्धरितं त चाचं स्थापयेत्क्रमाद्धीमान् । 1', एकद्वित्रिचतुणों सिद्धं साध्यं सुसिद्धमरिम् ।। १६ ।।
Page #29
--------------------------------------------------------------------------
________________
हैं भैरव पद्मावती कल्प
[९
· भा० टी०-फिर आय (भागफल) में भाग देकर निकले हुये शेषको बुद्धिमान् आदिमें एक पंक्तिमें रखे । यदि वह एक हो तो सिद्ध, दो हो तो साध्य, तीन हो तो सुसिद्ध और चार अर्थात शून्य हो तो शत्रु जानना चाहिये ।
सिद्धसुसिद्धं ग्राह्यं साध्य शत्रं च वर्जयेद्धीमान् । सिद्धसुसिद्धे फलदे विफलं साध्ये रिवापाये ॥ १७ ॥ भा० टी०-इनमेसे बुद्धिमान् सिद्ध और सुसिद्ध मंत्रको ग्रहण करले और साध्य तथा शत्रुको छोड़ देवे। क्योंकि सिद्ध और सुसिद्ध फलको देते हैं तथा साध्य और शत्रु हानि करते हैं।
फलद कतिपय दिवसः सिद्ध चेत्साध्यमपि दिनबहुभिः ।
झटिति फलद सुसिद्धं प्राणार्थविनाशनाशनः शत्रुः ॥१८।। भा० टी०-सिद्ध कुछ दिनोंमें ही सिद्ध हो जाता है, साध्य बहुत दिनों में सिद्ध होता है, सुसिद्ध शीघ्र फल देता है, तथा शत्रु प्राण और प्रयोजन दोनों का ही नाश करता है।
आदावन्ते शत्रुर्यदि भवति तदा परित्यजेन्मन्त्रम्। स्थानत्रितये शत्रुमृत्युः स्यात्कार्यहानिर्वा ।। १९ ।।
भा० टो०-यदि मत्र आरम्भ करनेपर आदिमें अथवा मंत्रके अन्त में शत्र हों तो मत्रको छोड़ दे। यदि आदि, मध्यम और अन्त तीनों स्थानोंमे शत्रु हो तो या तो कायका नाश होता है या अपनी मृत्यु हो।
शत्रुर्भवति यदाऽऽदौ मध्ये सिद्धं तदन्तरं साध्यम् । कष्टेन भवत्येव हि सिद्धिर्लभते फल अल्पम् ॥२०॥
Page #30
--------------------------------------------------------------------------
________________
१०]
है भैरव पद्मावती कल्प
भा० टी०-यदि मत्रके आदिमें शत्रु और मध्यमें सिद्ध हो तो उसको देरसे सिद्ध करना चाहिये। ऐसा मन्त्र सिद्ध तो बहुत कष्टसे होता ही है पर फल भी बहुत कम देता है।
अन्ते यदि भवति रिपुः प्रथमे मध्ये च सिद्धयुगपतनम् । कायें यदादिजात तन्नश्यति सर्वमेवान्ते ।। २१॥
भा० टी०-यदि मन्त्रके अन्तमें शत्रु हो और आदि तथा मध्यमें सिद्ध हो तो जो कार्य भादिमें सिद्ध होगा वह अन्तमें नष्ट हो जावेगा।
सिद्धं सुसिद्धमथवा रिपुणान्तरितं निरीक्ष्यते यत्र ।
दुःखापायप्रबलं भवतीति विवर्जयेत्कार्यम् ।। २२ ॥ भा० टी०-मत्रमें सिद्ध, सुसिद्ध अथरा शत्रुका बिन्न पहिले ही देखकर यदि अधिक दुःख या हानि होता हो तो उस कार्यको छोड़ दे।
इति भैरव पद्मावतीकलरकी भाषा टोकामें 'सकलीकरण'
नामका द्वितीय परिच्छेद समाप्त ।
तृतीय परिच्छेद देवीकी आराधनविधि
मन्त्रोंको जपमें गून्थनेके भेद दीपनपल्लवसम्पुटरोधप्रथन विदर्भणैः कुर्यात् ।
शान्तिद्वेषवशीकृतिवधव्याकृष्टिसंस्तम्भम् ॥ १॥ भा० टी०-दीपनसे शान्ति, पल्लवसे विद्वेषण, सम्पुटसे
Page #31
--------------------------------------------------------------------------
________________
HAH!
भैरव पद्मावती कल्प
N
वशीकरण, रोधनसे मारण, प्रथनसे स्त्री आकर्षण और विदर्भणसे क्रोधादिका स्तम्भन करे ।
आदौ नामनिवेशो दीपनमन्ते च पल्लवो ज्ञेयः । तन्मध्यगतं सम्पुटमथादिमध्यान्तगोरोधः ॥ २ ॥
}
[ ११
-
भा० टी० – मन्त्रकी आदिमें नाम रखना दीपन कहलाता है, अन्तमें रखना पल्लव कहलाता है । नामके आदि और अन्त में मन्त्रको रखना सम्पुट कहलाता है । मन्त्रके आदि, मध्य और अन्तमें नामको रखना रोधन कहलाता है ।
ग्रथनं वर्णान्तरितं द्वयक्षरमध्यस्थितो विदर्भः स्यात् । षट्कर्म करणमेतज्ज्ञात्वाऽनुष्ठानमाचरेन्मन्त्री || ३ ||
भा० टी० - मन्त्र के एक एक अक्षरके पश्चात् नामको रखकर गून्थ देना ग्रथन कहलाता है। दो दो अक्षरों के पश्चात् नामको रखना विदर्भ कहलाता है । यह षटकर्म हैं । मन्त्री इनको जानकर ही अनुष्ठानको आरम्भ करे ।
मन्त्रोंकी सामान्य साधनविधि
दिक्कालमुद्रासनपल्लवानां भेदं परिज्ञाय जपेत्स मंत्री ।
न चान्यथा सिध्यति तस्य मन्त्रं कुर्वन्सदा तिष्ठतु जाप्यहोमम् ॥४॥ भा० टी० - मन्त्री दिशा, काल, मुद्रा, आसन और पल्लबों के भेदको जानकर ही जप आरम्भ करे, अन्यथा चाहे कितना ही जप और होम करे, सिद्धि नहीं होती ।
वश्याकृष्टस्तम्भन निषेध विद्वेष चलनशांतिपुष्टिः ।
कुर्यात्सोमय मामरहरानिमरुद विनिरितिदिग्वदनः ॥ ५ ॥
/
Page #32
--------------------------------------------------------------------------
________________
१२]
ॐ भैरव पद्मावती कल्प
भा० टी०- वशीकरण वर्मको उत्तराभिमुख होकर, आकर्षण कर्मको दक्षिणाभिमुख होकर, स्तम्भन कर्मको पूर्वाभिमुख होकर, निषेधर्मको ईशानाभिमुख होकर, विद्वेषण कर्मको अग्निकणकी
ओर मुख करके, उच्चाटन कर्मको वायव्यकोणकी ओर मुख करके, शांतिकर्मको पश्चिमकी ओर मुख करके, तथा पुष्टिकर्मको नैऋत्यकोणकी ओर मुख करके करे।
पूर्वाह्ने वश्यकर्माणि मध्य ह्ने प्रीतिन शनम् ।
उच्चाटनमपराह्ने च सन्ध्यायां प्रतिषेधनम् ॥ ६॥ भा० टी०-वशीकरण, आकर्पण और स्तम्भन कर्मों को दिनके बारह बजेसे पहिले ( वसन्तऋतुमें), विद्वेषण कर्मको मध्याह्न (प्रीष्मऋतु) में, उच्चाटनको दोपहर बाद अपराह्न (वर्षाऋतु) में, और प्रतिपेध कर्मको सध्या समय (शरदऋतु) में करे ।
शान्तिकौर्द्धरात्रौ च प्रभाते पौष्टिक तथा । वश्य मुक्त ऽन्यकर्माणि सव्यहस्तेन योजयेत् ।। ७ ।।
भा० टी०- शांति कर्मो आधी रात (हेमन्तऋतु) में, और पौष्टिक धर्मको प्रातःकाल (शिशिरऋतु) में करे, वशीकरणके अतिरिक्त अन्य कार्योंको दाहिने हायसे करे ।
अकुशसरोजबोधप्रबालशङ्कबज्रमुद्रा स्युः । आकृष्टिय श्यशांतिकविद्वेषणरोधवधसमये ॥ ८॥
भा० टी०-आकर्षण फर्ममें अंकुशमुद्रा, वशीकरणमें सरोज (कमल) मुद्रा, शांतिक पौष्टिक कर्ममें ज्ञान मुद्रा, विद्वेषण उच्चाटन
Page #33
--------------------------------------------------------------------------
________________
भैरव पन्नावची कल्प
[१३.
कर्ममें पबाल अर्थात् पल्लव मुद्रा, स्तंभन कर्ममें शंख मुद्रा, और मारण कर्ममें वन मुद्रा रखे ।
दण्डस्वस्तिकपङ्कजकुक्कुलिशोद्भद्रपीठानि । उदयार्कर क्तशशधरधूमहरिद्राऽसितो वर्णः ॥ ९ ॥ भा० टी०-आश्र्षण कर्ममें दण्डासन, वशीकरणमें स्वस्तिक आसन, शांतिक पौष्टिक कर्ममें कमलासन, विद्वेषण उच्चाटन कर्ममें कुक्कट भासन, स्तम्भन धर्ममें बज्रासन और निषेध अथवा मारण कर्म में विस्तीर्ण भद्र आसनका प्रयोग करे।
आकर्षण कर्ममें उदय होते हुये सूर्यके जैसा वर्ण, वश्य कर्ममें रक्तवर्ण, शांतिक पौष्टिक कर्ममें चन्द्रमाके समान सफेदवर्ण, विद्वेषण उच्चाटन कर्ममें धूमवर्ण, स्तम्भन में हल्दी के समान पीतवर्ण,
और निषेध तथा मारण कर्ममें कृष्णवर्णका प्रयोग करे। विद्वेषणाऽऽकर्षणचालनेषु हुं बौषडन्तं फडिति प्रयोज्यम् । वश्ये वषट वैरित्रधे च धे धे स्वाहा स्वधा शांतिकपौष्टिके च ॥ १० ॥ ___ भा० टी०-विद्वेपणमें हुं, आकर्षणमें संवौषट, उच्चाटनमें फट , वशीकरणमें वषट् , शत्रुके वध धे धे, स्तम्भनमें ठः ठः, शांति कर्ममें स्वाहा और पौष्टिक कर्ममें स्वधा नामके पल्लबका प्रयोग करे।
स्फटिकप्रवालमुक्ताचामीकरपुत्रजीवकृतमणिभिः ।
अष्टोत्तरशतजाप्यं शान्त्याद्यर्थे करोतु बुधः ।। ११॥ . भा० टी०-शांतिकर्ममें स्फटिकमणि, वशीकरणमें प्रवालमणि (मूगा), पौष्टिककर्ममें मोती, स्तम्भनकर्ममें स्वर्णकी बनी हुई मणि
Page #34
--------------------------------------------------------------------------
________________
१४]
है भैरव पद्मावती कल्प
तथा विद्वेषणकर्ममें उच्चाटन और प्रतिषेधकर्म में पुत्रजीवकी बनाई हुई मणिसे १०८ जप करे।
मोक्षाभिचारशान्तिकवश्याकर्षेषु योजयेत्क्रमशः । अंगुष्ठाद्यंगुलिका मणयोंऽगुष्ठेन चाल्यन्ते ।। १२॥
भा० टी०-चन मणियोंको मोक्षकी इच्छावाला अंगूठे, अभिचार कर्ममें तर्जनी, शांतिक तथा पोष्टिककर्ममें मध्यमा, चशीकरणमें अनामिका और आकर्षण कर्ममें कनिष्ठासे चलावे।
पीतारुणासितैः पुष्पैः स्तम्भनाकृष्टिमारणे ।
शान्तिकपौष्टिकयोः श्वतैः जपेन्मत्रं प्रयत्नतः ॥ १३ ॥ भा० टी०-स्तम्भनमें पीले और आकर्षणमें वनके लाल पुष्पो तथा मारणमें काले पुष्पोंसे शांतिक और पौष्टिक कर्ममें बनके काले युष्पोंसे यत्नपूर्वक जप करे।
पद्मावतीको सिद्ध करनेका विधान
अनुष्ठानमें समीप रखनेका यंत्र चतुरस्त्र विस्तीर्ण रेखात्रयसंयुतं चतुरिम् । विलिखेत्सुरंभिद्रव्यर्यन्त्रमिदं हेमलेखिन्या ॥ १४ ॥ भा० टी०- इस यन्त्रको सोनेको कलमसे सुगन्धित द्रव्योंसे चौकोर, विस्तीर्ण, तीन रेखा सहित चार द्वारवाला बनावे।
धरणेन्द्राय नमोऽधःच्छदनाय नमस्ततोर्द्धच्छदनाय नमः । पनच्छदनाय नमो मन्त्रान्वेदादिमायाद्यान् ॥ १५॥ .
Page #35
--------------------------------------------------------------------------
________________
भैरव पद्मावती कल्प।
[१५
भा० टी०-उस मन्त्रके पूर्वद्वारपर 'ॐ ह्रीं धरणेन्द्राय नमः', दक्षिण द्वारपर 'ॐ ह्रीं अघःच्छदनाय नमः', पश्चिम द्वारपर 'ॐ ह्रीं ऊईच्छदनाय नमः' तथा उत्तर द्वारपर 'ॐ ह्रीं पद्मच्छदनाय नमः' मन्त्रोंको
प्रविटिख्यैतान्क्रमशः पूर्वादिद्वारपीठरक्षार्थम् । दशदिक्पालान्विलिखेदिन्द्रादीन् प्रथमरेखान्ते ।। १६ ।। भा० टी०-पूर्वादि द्वारोंके आसनों की रक्षाके लिये उनर द्वारोंपर क्रमशः लिखे, फिर प्रथम रेखाके अन्तमें निम्नलिखित प्रकारसे दश दिक्पालोंको लिखे।
लरशषवयसहवर्णान्सबिन्दुःज्ञानष्टदिक्पतिसमेतान् । प्रणबादिनमोऽन्तगतानोंहीमधः उर्द्धच्छदनसंज्ञे च ।। १७ ।। भा० टी०-उन दशों दिक्पालोंको दिशाओंमें लिखनेका क्रम यह है
पूर्व-ॐ ह्रीं लं इन्द्राय नमः। अग्नि-ॐ ह्रीं रं अग्नये नमः । दक्षिण-ॐ ह्रीं शं यमाय नमः। नैऋत्य-ॐ ह्रीं पं नैऋत्याय नमः। पश्चिम-ॐ ह्रीं वं वरुणाय नमः। वायव्य-ॐ ह्रीं यं वायव्याय नमः। उत्तर-ॐ ह्रीं सं कुबेराय नमः। ईशान-ॐ ह्रीं हं ईशानाय नमः। नीचे-ॐ ह्रीं अधःच्छदनाय नमः। . ऊपर-ॐ ह्रीं अर्द्धच्छदनाय नमः।,
Page #36
--------------------------------------------------------------------------
________________
१६]
भैरव पद्मावती क्ल्प
জজ
दिक्षु विदिक्षु क्रमशो जयादिजम्भादिदेवता विलिखेत् । प्रणव त्रिमूर्तिपूर्वा नमोऽन्ता मध्यरेखान्ते ॥ १८ ॥ UP MOTH
भा० टी० - मध्यकी रेखाके अन्तको विदिशाओंके आदिमें 'ॐ ह्रीं ' तथा अन्त में ' नमः ' लगाकर जया आदि और विदिशाओं में जम्मा आदि देवियों को लिखे ।
= F
आद्या जया व विजया तथाजिता चापराजिता देव्यः । जम्भामोहास्तम्भास्तम्भिन्यो देवता एताः ॥ १९ ॥
न देवियोंके नाम सहित निम्नलिखित मन्त्रोंको लिखे
पूर्व - ॐ ह्रीं जयायै नमः । अग्नि - ॐ ह्रीं जम्भायै नमः । दक्षिण - ॐ ह्रीं विजयायै नमः । नैऋत्य -- ॐ ह्रीं मोहायै नमः । पश्चिम - ॐ ह्रीं अजितायै नमः । वायव्य - ॐ ह्रीं स्तम्भायै नमः । उत्तर- ॐ ह्रीं अपराजितायै नमः । ईशान -- ॐ ह्रीं स्तम्भिन्यै नमः ।
तन्मध्येऽष्टदलाम्भाजमनङ्गकमलाभिधामू । विखेच्च पद्मगन्धां पद्माश्यां पद्ममालिकाम् ॥ २० ॥
मदनोन्मादिनीं पश्चात् कामोद्दीपन संज्ञिकाम् । संलिखेत्पद्मवर्णाख्यां त्रेलोक्यक्षोभिणीं ततः ॥ २१ ॥
-
Page #37
--------------------------------------------------------------------------
________________
है भैरव पद्मावती कल्प
तेजो ह्रींकारपूर्वोक्ता नमः शब्दावसानगाः । अकारादि हकारान्तान्केशरेपु नियोजयेत् ॥ २२॥
भा० टी०-उसके बीच में एक अष्टदल कमल बनाकर उसके आठों दलोंमें मादिमें 'ॐ ह्रीं' और अन्तमें नमः लगाकर 'अनङ्गकमला' आदि देगियोंको लिखे ।
इसका मन्त्रोद्धार
। पूर्व~ॐ ह्रौं अनङ्गकमलायै नमः ।
अमि-ॐ ह्रीं पद्मगन्धायै नमः । . दक्षिण-ॐ ह्रीं पह्मास्याय नमः ।
नेऋत्य-ॐ ह्रीं पनमालाय नमः। पश्चिम-ॐ ह्री मदनोन्मादिन्यै नमः । मायव्य-ॐ ह्रीं कामोद्दीपनायै नमः। उत्तर- हीं पद्मपर्णायै नमः।
ईसान-ॐ हौं त्रैलोक्यझोमिण्यै नमः । भा० टी-फिर उस कमलकी कणिकामें परागके स्थानमें अधारसे लेकर कार तक सब बोंको लिखे ।
भफियुतो भरनेश: चतुः कडायुक्तकृट मम देव्याः । पर्णचतुष्कनमोऽन्ताः स्थाप्याः प्राच्यादिदिनु पारहिः ॥२३॥
सस मरके माहिर पारों दिशामोंमें निम्नलिखित मन्त्र निरु
Page #38
--------------------------------------------------------------------------
________________
१८]
भैरब पद्मावती कल्प
पूर्व ॐ भ्रां पद्मावतीदेव्यै नमः । दक्षिण - ॐ ह्रीं भीं पद्मावतीदेव्यै नमः । पश्चिम - ॐ ह्रीं क्षं पद्मावतीदेव्यै नमः । उत्तर -ॐ ह्रीं झैं पद्मावतीदेव्यै नमः । एतत्पद्मावतीदेव्या भवेद्वक्त्रचतुष्टयम् । पश्चोपचारतः पूजां नित्यमस्याः करोत्विति ॥ २४ ॥
भा० टी० – यह चारो मन्त्र पद्मावतीदेवी के चारों मुख हैं । इस यन्त्रका पूजन प्रतिदिन पांचों उपचारसे करना चाहिये ।
Page #39
--------------------------------------------------------------------------
________________
यन्त्र संख्या १
अनुष्ठानमें पास रखनेका पन्त्र
मनचला गरज म.मला
Hऊ
मान
HEAEle
त
मन मै माजी म. नमै देवर स्ताप साध
Iatus
FFIH RR
मन
१६
रायप
मनमै
-
सोक्यो म.नयभ/
READ
रवी
रम्याना
मन को
RATमान्चकाछन मन 10
मान/श्रा
-
मनयन
Labh Esteeler
इटा रा
मान /
म. समाय मनपनारजन
LAमसानकाजिम
al मान/
मननाद
यामाप
मान में मजनिक
/ो
ke Celeave
'FACES
-
व माप छ मानती
मानना
ISION
भान्या
मानम मारवंॐ जाननाडुजन
Rनश
-
Page #40
--------------------------------------------------------------------------
________________
२०J
भैरव पद्मावती कल्प
पूजनके पांचों उपचार
आह्वाननं स्थापनं देव्या. सनिधीकरणं तथा । पूजां विसर्जनं प्राहुर्बुधाः पञ्चोपचारकम् ।। २५ ॥ भा० टी०-आह्वानन, स्थापन, सग्निधिकरण, पूजन और विसर्जनको पंडितोंने पञ्चोपचार पूजन कहा है। ॐ ह्रीं नमोऽस्तु भगवति पद्मावति एहि एहि संवौषट् ।
कुर्यादमुनामत्रेणापानमनुस्मरन् देवीम् ।। २६ ।। भा० टी०-पूजनके समय देवोंका ध्यान करता हुमा, उसका निम्नलिखित मंत्रसे आह्वानन करे। ॐ ह्रीं नमोऽस्तु भगवति पद्मावति एहि एहि संवौषट् ।
(आह्वानन) तिष्ठद्वितयं टान्तद्वयं च संयोजयेत् स्थितीकरणे । सन्निहिता भव शब्द मम वषडिति सन्निधिकरणे ॥२७॥
स्थापना करनेका मन्त्र
ॐ ह्रीं नमोऽस्तु भगवति पद्मावति तिष्ठ तिष्ठ ठः ठः
(स्थापनम् )। इस मंत्रसे, सनिधिकरण करे। ॐ ह्रीं नमोऽस्तु भगवति पद्मावति ममः सन्निहिता-भव भव . वषट । (सन्निधिकरणम्)
गन्धादीन् गृह गृहेति नमः पूजाविधानके । स्वस्थान गच्छमच्छेति जखिः स्यात्तद्विसर्जने ॥२८॥
Page #41
--------------------------------------------------------------------------
________________
भैरव पद्मावती कल्प
[२१
देवीके पूजनमें यह मंत्र पढ़े
ॐ ह्रीं नमोऽस्तु भगवति पद्मावति गन्धादीन् गृह्ण गृह्ण नमः।
विसर्जनमें निम्नलिखित मंत्र कहेॐ ह्रीं नमोऽस्तु भगवति पद्मावति स्वस्थानं गच्छ गच्छ जः जः जः। (विसर्जनम् )
पूरफरेचकयोगादाह्वान विसर्जनं करोतु बुधः।
पूजाभिमुखीकरणस्थापनकर्माणि कुम्भकतः ॥ २९ ॥ 'भा० टी०-पडित पुरुष आह्वान पूरकसे, विसर्जन रेचकसे तथा शेष तीनों उपचारोंको कुम्भक प्राणायामसे करे ।
पद्मावतीको सिद्ध करनेका मूल मंत्र ब्रह्मदि लोकनाथं हैंकारं व्योमषान्तमदनोपेतम् ।
पद्म च पद्मकटिनि नमोऽन्तगो मूलमन्त्रोऽयम् ॥ ३० ॥ पद्मावतीदेवीका निम्नलिखित मूल मन्त्र है
'ॐ ह्रीं हैं ह क्लीं पद्म पद्मकटिनि नमः ।' सिध्यति पद्मादेवी त्रिलक्षजाप्येन पद्मपुष्पाणाम् ।
अथवारुणकरवीरकसंवृतपुष्पप्रजाप्येन ॥ ३१ ॥ भा० टी०-देवी पद्मावतो लाल कमल अथवा लाल कनेरके ढके हुये पुष्पोंपर इस मन्त्रके तीन लक्ष जपसे सिद्ध होजाती है।
पद्मावतीका षडाक्षरी मन्त्र ब्रह्ममाया च हैंकारं व्योमक्लींकारमूर्द्धगम् ।
श्रीं च पद्मे नमो मन्त्रं प्राहुर्विद्यां षडक्षरीम् ॥ ३२ ॥ अथवा उस देनीका यह छह अक्षरोंका मन्त्र है
"ॐ ह्रीं हैं ह क्लीं श्रीं पद्मे नमः।"
Page #42
--------------------------------------------------------------------------
________________
२२]
भैरव पद्मावती कल्प
पद्मावतीका व्यक्षर मंत्र बाग्भवं चित्तनाथं च होकारं षान्तमूर्द्धगम् । बिन्दुद्वययुतं प्राहुबंधात्यक्षरिमामिमामू ।। ३३ ।। ।
ॐ ऐं क्लीं सौं नमः' इस मन्त्रको विद्वानोंने ब्यक्षर मन्त्र कहा है।
पद्मावतीका एकाक्षर मंत्र , वर्णान्त. पार्श्वजिनो यो रेफस्तलगतः स धरणेन्द्रः। तुर्यस्वरः सविन्दुः स भवेत्पद्मावती संज्ञः ।। ३४ ।।
यंत्र संख्या २ होमकुण्ड में गाडनेका यन्त्र
देवप
Page #43
--------------------------------------------------------------------------
________________
एवं भैरव पद्मावती कल्प
[.२३
भा० टी०-वों का अंतिम अक्षर '' पार्श्वनाथ भगवानका है। नीचे लगनेवाला 'र' धरणेन्द्रका है और 'ई' पद्मावतीदेवीका है।
त्रिभुवनजनमोहकरी, विद्येयं प्रणवपूर्वनमनान्ता ।
एकाक्षरीति संज्ञा जपतः फलदायिनी नित्यम् ॥ ३५ ॥ भा० टी०-यह 'ॐ ह्रीं नमः' एकाक्षर मन्त्र तीन लोकको मोहित करनेवाली और तुरन्त फल देनेवाली विद्या है।
होमविधि तत्त्वावृतं नाम विलिख्य पत्रे तद्धोमकुण्डे निखनेत्रिकोणे । स्मरेषुभिः पञ्चभिराभिवेष्ट्य. बाह्ये पुनर्लोकपति प्रवेष्यम् ॥ ३६॥ ____ भा० टो०-एक ताम्रपत्रपर नामको होंसे. वेष्टित करके उसके चारों ओर कामदेवके पांच पाण 'द्रां द्रीं क्लीं ब्लू सः' को लिखकर बाहिर ह्रींसे वेष्ठित करे। इस्त्र यंत्रको उक्त त्रिकोण कुण्डमें गाड़ दे।
मधुरत्रिकसम्मिश्रितगुग्गुळकृतचणकमात्रानटिकानाम् । " त्रिंशत्सहस्रहोमात्मिध्यति पद्मावती देवी ।। ३७ ॥ भा० टो० मधुरत्रिक (घी, दूध, शकर) में गूगलको मिलाकर बनाई हुई चनेके बराबर गोलियों के तीस सहल होमसे पद्मावतीदेवी सिद्ध होती है।
मन्त्रस्यान्ते नमश्शब्दं देवताऽऽराधनाविधौ । तदन्ते होमकाले तु स्वाहा शब्दं नियोजयेत् ॥ ३८॥ भा० टी०-पहिले मंत्रके अन्तमें 'नमः' लगाकर देवीका जप करे। जपकी समाप्तिपर मन्त्रके भन्तमें 'स्वाहा' लगाकर होम करे । यह सिद्धिकी विधि हैं। -
Page #44
--------------------------------------------------------------------------
________________
२४]
से भैरव पद्मावती कल्प
पार्श्वनाथ भगवानके यक्षकी साधनविधि ।
दशलक्ष जाप्य होमात्प्रत्यक्षो भवति पार्श्वयक्षोऽसौ । न्यग्रोधमूलबासी श्यामाङ्ग खनयनो नूनम् ॥ ३९ ।। भा० टी०-निम्नलिखित मन्त्रके दश लक्ष जाप और दशांश होमसे घटवृक्षके नीचे रहनेबाला, कृष्णवर्ण, तीन नेत्रवाला पार्श्वनाथ भगवानका यक्ष सिद्ध हो जाता है।
मंत्रोद्धार 'ॐ ह्वीं पाश्र्वयक्ष दिव्यरूपमहर्षण एहि एहि मां कों ही नमः।
निजसैन्यैर्मायामयसमुत्थितैरिलोकमग्रस्थम् । विमुखीकरोति यक्षः संग्रामे निमिषमात्रेण ।। ४० ।।
भा० टी०-यह यक्ष शत्रुकी बड़ी भारी सेनाको भी अपनी मायामय सेनाके द्वार। युद्धसे क्षणमात्रमें ही भगा देता है।
वशीकरण चिन्तामणि यन्त्र
सान्त विन्दुर्द्धरेफ पहिरपि विलिखेदायताष्ठ जपत्रम् । दिवं श्रीं स्मरेशो द्विपरशकरणं झौं तथा ब्लें पुनयूं ॥ वाझे ह्रीं नमोहं दिशिलिखितचतुर्बीजक होमयुक्तं । मुक्तिश्रीवल्लभोऽसौ भुषनमपिषशं जायते पूजयेद्यः ।। ४१ ।। भा० टी०-एक अष्टदल कमलकी कर्णिकामें हैं लिखकर उसके पूर्व आदि दिशाओंके दलोंमें क्रमशः ऐं श्रीं ह्रीं और ली
Page #45
--------------------------------------------------------------------------
________________
है भैरव पद्मावती कल्प
[२५
लिखे । तथा विदिशाभोंके दलोंमें क्रौं झौं प्लें और यू लिखे । उसको बाहिर निम्न लिखित मन्त्रसे वेष्टित करदे।
ॐ ह्रीं नमोऽहं ऐं श्रीं ह्रीं क्लीं स्वाहा।' जो व्यक्ति इस चिन्तामणि नामके यन्त्रका पूजन करता है उसके वशमें सम्पूर्ण लोकके साथ२ मुक्तिरूपी स्त्रो भी हो जाती है।
यन्त्र संख्या ३ वशीकरण चिन्तामणि यन्त्र
URA
इति भैरवपद्मरतीयल्पकी भापाटीकामें 'देवाराधनविधि'
नाम तृतीय परिच्छेद समाप्त ॥३॥
Page #46
--------------------------------------------------------------------------
________________
२६]
भैरव पद्मावती कल्प
चतुर्थ परिच्छेद
(द्वादशरञ्जिका यन्त्र विधान)
मोहनमें क्लीं रञ्जिका यन्त्र
यन्त्र सख्या ४
faina
लन्यू
मि
HE
Dok steel
Lictu.
.G4Aale
ru
(
1)
मोनधिमे की रोजका है।
Page #47
--------------------------------------------------------------------------
________________
1
242
भैरव पद्मावती कल्प
EEEEE
द्वादशपत्राम्बुरुहं मलवरयूंकारसंयुतं कूटम् । तन्मध्ये नामयुत विलिखेत् ककारसंरुद्धत् ॥ १ ॥
भा० टी० - एक द्वादश दल कमल बनाकर उनकी कर्णिका में क्लोंसे रुके हुये तथा मध्यमें नाम सहित क्षम्यू बीजको लिखे ।
विलिखेज्जयादिदेवी स्वाहान्तोऽङ्कार पूर्विका दिक्षु | झमपिण्डोपेता बिदिक्षु जम्भादिकास्तद्वत् ॥ २ ॥
भा० टी० - उसके पूर्व आवि दिशाओंोंके दलोंमें जन्भादि देवियोंको आदिमें ॐ और अन्तमें नमः लगाकर लिखे । तथा बिदिशाओं में झ भ म ह के पिण्डों सहित जम्मा आदि देवियों को लिखे ।
मन्त्रोद्धार -
[ २७
पूर्व - ॐ जयायै स्वाहा | अग्नि
इल्यू जम्भायै स्वाहा |
क्षिण - ॐ विजयायै स्वाहा । नैऋत्य — ॐ भ्यू मोहायै स्वाहा | पश्चिम - ॐ अजितायै स्वाहा ।
वायव्य — ॐ क्यूँ स्तम्भाय स्वाहा । उत्तर - ॐ अपराजितायै स्वाहा । ईशान - ॐ हयू स्तम्भिन्यै स्वाहा |
उद्धरितदलेषु ततो मकरध्वज बीजमा लिखेचतुर्षु । गजवशकरणनिरुद्धं कुर्यात्त्रिर्भाययाssवेष्टम् ॥ ३ ॥
भा० टी०-दिशा तथा विदिशाओंके आठों पत्रोंका
Page #48
--------------------------------------------------------------------------
________________
१२८]
२८]
हे भैरव पद्मावती कल्प
मन्त्रोद्धार कर चुकने पर शेषं चार दलोंमें मकरध्वज बीज (ली) को लिखे।
अन्तमें इस यन्त्रको तीनवार माया (ही) से वेष्ठित करके इसका गजवशकरण (क्रों) से निरोध करे।
मूर्जे सुरभिद्रव्यविलिख्य परिवेष्टय रक्तसूत्रेण । । निक्षिप्य शिल्पभाण्डे मधुपूर्णे मोहयत्यवलाम् ॥ ४॥ भा० टी०-इस यन्त्रको सुगन्धित द्रव्योंसे भोज पत्र पर लिख कर, लाल धागेसे लपेटकर मधुसे भरे हुये कुम्हारके कच्चे बर्तन में रखनेसे यह स्त्रीको मोहित करता है।
__इसके मूल मन्त्रका उद्धार 'ॐ क्लीं जये विजये अजिते अपराजिते इम] जम्भे इल्यूं मोहे म्म्ल्यूँ स्तम्भे हायूं स्तम्भिनि अमुको मोहय मोहय मम वश्यं कुरु२ मां ह्रीं क्रों वषट् ।'
आकर्षणमें ही रंजिका यन्त्र यन्त्र सं० ४ यन्त्र सं०५ यन्त्र सं०६
-
-
-
नवलामोहनवि ॥ स्कोही || लारंनिकायंत्र ॥ मकाया
धकामतिर । कायंत्रः
जदयूक्लिी हा दिल्यू ई ल्यूक
-
उपरोक्त यन्त्र
उपरोक्त यन्त्रमें गोचमें फारफेर ।
उपरोक्त यन्त्रमें बीचमें फारफेर
Page #49
--------------------------------------------------------------------------
________________
से भैरव पद्मावती कल्प।
स्त्रीकपाले लिखेद्यंत्रं क्लीं स्थाने भुवनादिकम् । निसन्ध्यं तापयेद्रामाकृष्टिः स्यात्ख दिरामिना ॥ ५॥ भा० टो०-इस मन्त्रमें क्लोंके स्थानमें हो रखकर इसको ओके कपालपर लिखकर खदिर (खैर) की अग्निसे प्रातः, मध्याह्न और सायंकालको तपावे तो स्त्रोका आकर्षण होता है। यह आकर्षणमें ह्रीं रंजिका यन्त्र है
प्रतिषेधक हु.रंजिका यन्त्र मायास्थाने च हुंकारं चिलिखेल नरचर्मणि ।
तापयेत्स्वेडरक्ताभ्यां पक्षाहात्प्रतिपेधकृत् ॥ ६॥ भा० टी०-इस मन्त्रमें ह्रींके स्थानमें हु रखकर इसे मनुष्यचर्म पर विष और गधेके रुधिरसे (!) लिखकर एक, पक्ष तक तपावे तो प्रतिषेधक होता है।
यह प्रतिषेध कर्ममें हुं रंजिका यन्त्र है
Page #50
--------------------------------------------------------------------------
________________
३०] -
न्यू देखा हाः
विजथेखा, हाः
अली जंगे
12122222
स्टार)
मनि
दिवदनः य इ.स.को तेस्वाहा..
र्यको
भैरब पद्मावती कल्प VEEEEE)
यन्त्र संख्या ७
विद्वेषक यं रञ्जिका यन्त्र
祝即强
कोय
कर्न्य
यज्ञदत :क्रोर्य
देव फ्ल्य
不良
ला
:1
BRE RURA ॐ
स्वाहा:
तेस्वाहा: अपराजि
४ विद्वेषरुडाथ
स्थाने मान्तमाळिय सरेफं नामसंयुतम् । बिभितफलके यन्त्रं द्वयोरपि च
मत्र्त्ययोः ॥ ७ ॥
भा० टी० - उपरोक्त यन्त्र हुं के स्थान में विद्वेष कराये जानेवाले दोनों व्यक्तियोंके नाम सहित र्य बोजको दो भिन्न की तस्तियों पर लिखे ।
Page #51
--------------------------------------------------------------------------
________________
। भैरष पद्मावती कल्प
[३१
वाजिमाहिषकेशैश्च विपरीतमुखस्तयोः ।
आवेश्य स्थापयेम॒म्यां विद्वेषं कुरुते तयोः ॥ ८॥ भा० टी.-फिर उन दोनों यन्त्रोंको घोड़े और भैसके बागेसे लपेटकर स्मशानभूमिमें परस्परमें पीठ मिलाकर गाइनेसे दोनों व्यक्तियों में विद्वेप हो जाता है।
यन्त्र संख्या ८ शत्रु उच्चाटनमें यः रञ्जिका यन्त्र
लिना
विलयेखा
।
-
अलाहोतिलाह/
साहा।
अपरा
-
SUNE
-
-
Page #52
--------------------------------------------------------------------------
________________
]
भैरव पद्मावती कल्प
पूर्वोक्ताक्षरसंस्थाने लेखिन्याकापक्षयोः। । " 'मान्त विसर्गसंयुक्त प्रेताङ्गारविषारुणः ॥९॥ घूकारिबिष्टा संयुक्त जे यन्त्र सनामकम् । . .. लिखित्वोपरि वृक्षाणां बद्धमुच्चाटन रिपोः ॥ १०॥ . . भा० टी०-उपरोक्त यन्त्रमें कौवेके पङ्घकी कळमके द्वारा स्मशानभूमिके अंगारे, विष, कौवेके रक्त (!) और कौवेकी वीटसे 'य' के स्थानमें 'यः' को नाम सहित ध्वजाके ऊपर लिखकर बहेड़ेके पेड़पर बांध देनेसे शत्रुका उच्चाटन होता है।
यन्त्र सख्या ९ उच्चाटन में हं रंजिका यन्त्र
% 35
....
भने
स्वाहा।
Sh
देवदतः
naमिदञ्चारमा
Page #53
--------------------------------------------------------------------------
________________
भैरण पावची कल्प
[३३
:
शशीगरतरक्ताभ्यां वृहपाळपुटे दिखेत् ।
प्रेतास्थिजातलेखिन्या यः स्वाने तु नभोक्षरः ।। ११ ।। भा०टी०-उपरोक यन्त्रमें य: के स्थान में हं बीजको शङ्ग विष और गधेके रक्तमें (!) मृतककी हट्टीकी परमसे मनुष्य के कपालपर लिखे ।
स्मशाने क्षिपेद्रोषात्कृत्या तद्स्मपूरितम् । करोति तत्कुल्लोच्चाट वैरिणां सप्तरात्रितः ।। १२ ।। भा० टी०-फिर उस यन्त्रको भस्मसे भरकर क्रोधपूर्वक स्मशानमें फेंके तो यह यन्त्र सात दिनमें शत्रुके कुटुम्बभरका उच्चाटन कर देता है। यंत्र सं. १०
उच्चाटनमें फट् रंजिका यन्त्र
rand
-
Girik
maRead
D
SEAN
2KALPF
Amar
।
N
.
Symenored
-
AAM
-
वैरिनारायचं
३
Page #54
--------------------------------------------------------------------------
________________
भैरव पद्मावती कल्प Kev फक्षर नभस्थाने स्मशानस्थित कर्पटे ।
Cedeevn
निम्बार्कजर से नैतद्वि लिखेत्क्रद्धचेतसा ॥ १३ ॥
भा० टी० – उपरोक्त यन्त्रमें हके स्थान में 'फट' बोजको स्मशान से लिये हुये कपडेपर नीम और आकके रसमें क्रोधमें भरकर लिखे ।
३४ ]
स्मशाने क्षिपेदयन्त्र यावत्तद्भुवि तिष्ठति । परिभ्रामत्यखौ तावद्वैरि काक इव मितौ ॥ १४ ॥
भा० टी० - उस यन्त्रको स्मशान में फेंक दे । जबतक यह यन्त्र वीपर रहता है तबतक शत्रुको आकाशमें कौवे के समान पृथ्विपर घुमाता रहता है । यत्र स. ११
शत्रुके छेदन, भेदन और निग्रह में म रंजिका यन्त्र
वेज लेख
HA
देव्म
ר
अनि तेस हा
द्विवस्व ଯୀ
देव कल्ट
CR
त्रिवैदेहिक र
Page #55
--------------------------------------------------------------------------
________________
र भैरव पद्मावती कल्प
[३५ -
फटाथाने लिखेद्ध् न्त मूर्जेतनामसंयुतम् । विषोपरक्तयुक्तन नोलसूत्रेण वेष्टितम् ।। १५ ।। भा० टो०- उपरोक्त यन्त्रमें फटके स्थानमे 'म' वीजको नाम सहित भोजपत्रपर शृङ्गाविष और गधेके रक्तप्ते लिखकर नीले ध गेसे लपेट दे।
मृत्पुत्रको स्थाप्यं तत्श्मशाने निवेशयेत् ।।
सप्ताह ज ते शत्रोच्छेदभेदादि निग्रहः ॥ १६ ॥ भाट -फर उस यत्रको मिट्टीके पुतलेके पेट में रखकर स्मशानमें रखनेसे मानदिलमे शत्रुका छेदन-भेदन और निग्रह आदि होता है।
यंत्र सं. १२- वशीकरण में ई रजिका यन्त्र
MOST ततस्व
M
"Aad
।
Anapurna
%
E
।
।
दलव्य देवस्त
mom
।
BESTSE
Page #56
--------------------------------------------------------------------------
________________
३६]
भैरव पद्मावती कल्प
तुर्यस्वरं लिखेद्विद्वान् मस्थाने नामसंयुतम् ।
कुकमागुरु करे जे रोचनयाऽन्वितम् ॥ १७ ।। भा० टी०-उपरोक्त यत्रमें 'म' के स्थानमें 'ई' बोजको नाम , सहित कुंकुम, अगर, कपूर और गोरोचनसे भोजपत्र पर लिखे।
सुवर्णमिटित कृत्वा बाहौ च धारयेद्गले ।
करोतोद सदा यन्त्रं तरुणीजनमोहनम् ।। १८ ॥ __भा० टो०-फिर इस यत्रको सोनेमे मढ़वाकर भुजा या गलेमें पहिने तो यह यंत्र सदा स्त्रियोको मोहित करता है।
यंत्र सं. १३-स्त्री सौभाग्य में क्ष वप रंजिका यन्त्र
A
alsीनिक
-
विजयी
vale
मददेवदत
(जमल्याजा
हाहा:SHum
तेस्वा होमपर)
को
-
Page #57
--------------------------------------------------------------------------
________________
भैरव पद्मावती कल्प
[३७
वषटवर्णयुतं कूटं लिखेदीकारधामनि ।
मूर्जपत्रे सितेऽत्यन्ते रोचनाकुङ्कमादिभिः ।। १९ ।। भा० टी०-उपरोक्त यंत्रमें 'ई' के स्थानमें 'क्ष वषट' बीजको अत्यन्त सफेद भोजपत्रपर गोरोचन कुकुम मादिसे लिखे ।
त्रिलोह वेष्टितं कृत्वा बाहौ कण्ठे च धारयेत् । स्त्रीसौभाग्यपरं यात्रं स्त्रीणां चेतोऽभिरञ्जनम् ॥ २०॥
भा० टी-फिर इस यन्त्रको त्रिलोहमें जड़वाकर दाहिनी मुजा और चण्ठमें धारण करनेसे यह यन्त्र स्त्रियोंके सौभाग्यको करता और उनके मनको प्रसन्न रखता है।
(त्रिलोह-सोलह भागोमें बारह भाग तांबा एक भाग लोहा और तीन भाग सोना मिलाकर त्रिलोह बनाया जाता है)
Page #58
--------------------------------------------------------------------------
________________
'३८]
भैरव पद्मावती कल्प
यत्र संख्या १४ स्थम्भनमें लंजिका यन्त्र
aliyो . सस्मे
.
मासा मल्ट्र
-
इन देवदत्त व्यं
IN
माज
भाज भी
६/ LERS
६
क्षाद्यक्षरपदे यज्यं ल शिलातलसम्पुटे । विलिख्यो: पुरं वाटे स्तम्भने तालकादिभिः ।। २१ ॥ भा० टी०-उपरोक्त यन्त्रमें 'क्ष वषट' के स्थानमें दो शिलाओं के सम्पुट पर 'ल' बीजको लिखकर उसके वाहिर चारों
ओर हरताल आदिसे पृथ्वीमण्डल बनाकर रखे तो स्तम्भन होता है।
Page #59
--------------------------------------------------------------------------
________________
• भैरव पपावती कल्प
[३९
यंत्र सं. १५-गृहादि शांतिमें रसिका यंत्र
aaura
गगनलाली बासा
भास्तगाल्यू
मैनानिमा
क्षनित ल्एँ
kka
रा
परमादशति कर्म मे को निकाय है।
स्तम्भने तु मैन्द्र निजबोजमैन्दं श्रीकुङ्कमाघलिखित सुमूर्जे । त्रिलोहवेष्टय विधृतं स्वाबाहो करोति रक्षा ग्रहमारीरुग्भ्यः ।। २२ ।। __ भा० टी०-इन यन्त्रों के बीजोंके स्थान में ऐन्द्रबोज श्रीको स्तम्भन करनेके प्रयोजनमें श्री कुकुम मादिसे उत्तम भोजपत्रपर लिखकर यदि त्रिलोहमें जड़वाकर अपनी दाहिनी मुजामें पहिने तो यह यन्त्र प्रह, मारी और रोगोंसे रक्षा करता है।
Page #60
--------------------------------------------------------------------------
________________
४०]
भैरव पनावती पल्प
इति भैरव पद्मावतीकल्पकी भाषाटीकामें 'द्वादश रञ्जिका विधान'
नाम चतुर्थ परिच्छेद समाप्त ।
पंचम परिच्छेद
स्तम्भन यन्त्र यंत्र संख्या १६-ग्निस्तंभन यन्त्र प्रथम
2e.
२०७४
.
म
रेसका
.
R
M
5
.
4
SA-.-
-
-
4
मा
Page #61
--------------------------------------------------------------------------
________________
, भैरप पन्नावती कम्प
क्षमठसा फलबवर्णाग्मळवरयू कारसयुतान्विलिखत ।
अष्टदलेपु क्रमशो नाम ग्लौं कर्णिकामध्ये ॥ १॥ -- भा० टी०- एक भष्टदल कमलकी कर्णिकामें नाम सहित ग्लौं लिखा पाठों दलोंमें पूर्वादि क्रमसे मल्ल्यू, मल्व्यू, ठम्ल्यू, ग्ल्यू, झल्यू', पम्व्यू, लम्ल्यू, और म्मम्ठy बीजोंको लिखे ।
मन्त्राभ्यामावेष्टय बझे भूमण्डलेन संवेश्य । कुङ्कपन नितालाबैथिलिखेदात्मे प्सितस्तम्भः ।। १ ।।
भा. टो-फिर इपक्षो निम्नलिखित दो मन्त्रोंसे धेरकर बाहिर पृषमण्डल वनावे। इख यन्त्रको केशर और हरीताल आदिके द्वारा लिखनेसे अपने इष्टका स्तम्भन होता है ।
। प्रथम, मन्त्रोद्धार
ॐ नगो भैरवि अग्निस्तम्भिनि पय्यदिव्योत्तारिणि श्रेयस्करि यशस्करि ज्वल२ प्रज्ववर सर्वकामार्थसावनि स्वाहा ।
दूसरे मन्त्रका उद्धारॐ अनलपिनळोर्द्धकेशिनि महादिव्याधिपतये ठः४ स्वाहा । ॥२॥
वाणीस्तम्भन ध्यान त्रींकारं चिन्तयेद्वक्त्रे विवादे प्रतिवादिनाम् ।।
त्रां वा रेफ वसन्त वा स्वेष्टसिद्धिप्रदायकम् ।। ३ ।। भा० टी०-प्रतिपादियोंसे शास्त्रार्थ के समय अपनी इच्छित सिद्धिको देनेवाले त्री या नां या जळते हुये रेफ (२) वीजका ध्यान करे।
Page #62
--------------------------------------------------------------------------
________________
४२ ]
है
3
10
ध्
3
घो
स
ܕ
3
न
ज
णं
K
का
पन्त चि
e
ज
यंत्र संख्या १७ अग्निस्तम्भन यन्त्र द्वितीय
भैरव पद्मावती कल्प
Gee
ठ
(past
२
स्थ
返
&
a
क
havel
社
a
यूँ
उल्ल
ठ
मल्ल्यें
8 8
6
ri
Pomace
420
नाम ग्लौ खान्तपिण्ड बसुदलसहिताम्भोजपत्रे विलिख्य । वत्पिण्ड तेपु योज्य वहिरपि वलय दिव्यमन्त्रेण कुर्यात् ॥ टान्तं भूमण्डलान्त विपुलतर शिलासम्पुटे कुङ्कुमाद्येश्रीनाथक्रमयुग पुरतो यहि दिव्योपशान्त्यै ॥ ४ ॥ भा० टो०- एक अष्टदल कमलकी कर्णिकामें नामको ग्लौंके बन्दर लिखकर आठों दढोमें ग्ल्यू पिण्डको लिखे । उसके
Page #63
--------------------------------------------------------------------------
________________
है भैरव पद्मावती कल्प।
[४३
बाहिर दिग्य मन्त्र तथा 'ठ' के वलय धनाकर बाहिर पृथिवीमण्डल बनावे । इस यन्त्रको बड़ी भारी शिलाओं के सम्पुट पर केशर आदिसे लिखकर दिव्य अग्निका शांतिके वास्ते श्री भगवान् महावीरस्वामीके चरणयुगढके सामने रक्खे ।
दिव्य मन्त्रका उद्धार
ॐ धंभई अमुक अमुकस्य जल जलणं चिन्तय मन्त्रेण पत्र णमोकारो भरिमारि चोर एव लघोरुवसग्गं बिणासेइ स्वाहा
यन्त्र संख्या १८ जल, तुला, सपै और पक्षिस्तम्भन यन्त्र
Saane
MASTI
EDIA'S
HTTER
HTM
पर्दू
Faceeeeee
eeeeeeeee
Seeeeeegee
Page #64
--------------------------------------------------------------------------
________________
४४]
aaaaa
REQUEST
DIREETARA
eeeeee
भैरव पद्मावती कल्प
A
यन्त्र संख्या १९ दिव्य तुला स्तम्भन यन्त्र
|| इथिने श्रमुक स
क्यूँ
क्यूँ
कर्फ्यू
eeee
स्थान
BAKERIEeeee
LewnEnt eee
зеееееее
दिव्येषु जलतुलाफणिखगेपु पक्षपिण्डमा विलिखेत् । पूर्वेतालेष्वपि पूर्ववदन्यत्पुनः सर्वम् ॥ ५ ॥
भ० टी०-पूर्वोक्त आठ दलों के मध्य में जल दिव्यमें फ्ल्यू, तुलादिव्य में मव्यू, फणिदिव्य में इम्यू और खग दिव्य में क्ष्ग्ल्व्यू बीजको ढिखे और शेषको उसी प्रकार रहने दे ।
Page #65
--------------------------------------------------------------------------
________________
से भैरव पद्मावती कल्प
[४५५
यन्त्र संख्या २० दिन्य सर्प स्तम्भन यन्त्र
बक्षमा
waaaaaaa
DOE
R
CERDESTORE
READEDDRORE
BY
AL
RRIAARA
अर्थात् उपरोक्त अग्निस्तम्भन यन्त्र द्वितीयके समान चार यन्त्र और वनावे । केवल उनकी कणिकाके बीजोंको बदल कर शेष
Page #66
--------------------------------------------------------------------------
________________
है भैरव पद्मावती कल्प
यन्त्र संख्या २१ दिव्य पक्षी स्तम्भन यन्त्र
ఈ
aaaaaee
eeeeeeee
Leeeeeee
Seeeeeeeee
eeeeeeeeee
Eeeeeeeeex
यन्त्रको उसी प्रकार बना रहने दे। इनमेंसे
जिसकी कर्णिका म्व्यू बीज हो वह दिव्य जलका स्तभन करता है। जिसकी कर्णिकामें फ्ल्यू वीज हो वह दिव्य. तुलाका -स्तम्भन करता है। जिसकी कर्णिकामें मव्यू' बोज हो वह दिव्य -सर्पका स्तम्भन करता है और जिसकी कर्णिकामें क्ष्ल्यू वीज हो वह दिव्य पक्षिका स्तम्भन करता है।
Page #67
--------------------------------------------------------------------------
________________
7 भैरव पद्मावती कल्प
[४७
यन्त्र संख्या २२ क्रोध, गति, सेना और जिव्हास्तम्भक वार्तालि कन्त्र ब्रह्मग्लौंकारपुटं ठान्तावृतमष्टबज्रसंरुद्धम् । वामं वज्राग्रगतं तदन्तरो रान्तवाजञ्च ॥६॥ भा० टी०-नामको ब्रह्म (ॐ) ग्लोके संपुट और 'ठं' बीजसे घेर कर माठ वज्रोंसे घेर दे। वज्रोंके अग्रभागमे वाम
सन्धेस्वाहा
सोनम
सि
निस्वाहा
डियाउनमेप
my देना
नि ग्याप रचा प
ल्यूम में
30
2
१३०
Lu.elacror
ॐअन्धेरपाल
th
नर हिदि द्वमुमोदरम गति और
परिदो गए गोण" चलन
नि
TICS
A
cca / Gcere
Seared
R
प्यादि।
RRREYLE
Page #68
--------------------------------------------------------------------------
________________
४८]
ह भैरव पणावती पल्स
(ॐ) लगावे और उनके अन्तराळमें रान्स () वोजको लगावे।
वार्तालीमन्त्रवृतं बाह्येष्टम् दिक्षु विन्यसेत्क्रमशः । ___ मलवरयंकारयुतान् क्षमठसहपरान्तलान्त ॥ ७॥
भा. टी०-उसको वार्तालि मन्त्रसे घेरकर उनके वाहिर भाठों दिशाओं में क्रमशः क्षयू, भम्ल्यू, म्ल्यू, मल्व्यू, मल्ल्यू, पल्ब्यू, जौर म्ल्यू वीजोंको लिखे।
वार्तालि मन्त्रका उद्धार
ॐ वार्तालि बारांहि वाराहमुखि जम्भे जम्भिनि स्तम्भे' स्तंभिनि अन्धे मन्धिनि रुन्धे रुन्धिनि सर्वदुष्टप्रदुष्टानां क्रोधं लिलि गति लि लि सेनां लिलि जिव्हां ठि लि ठः ठः ठः ।
बाझेऽमरपुरपरिवृतमशरुद्धं करोतु नद्वारम् ।
उक्षेशमन्त्रवेष्ट्यपृथिवीपुरसम्पुटं वाझे ।। ८ ।। भा० टी०- उसको चाहिर पसरपुरसे घेरकर उस अमरपुरके चारों द्वारोंको अकुश (क्रों) से रोक दे। उसके चारों ओर उक्षेश मंत्र लिखकर बाहिर पृथिवीमण्डलका सम्पुट बनावे ।
उक्षेश मत्रका उद्धार
"ॐ णमो भगवदो रिसहस्स पंडिणिमित्तण घारणपण्णति. इन्द्रेण भणामइययेण उपाटि माजीहकण्ठोठमुहतालुवरपीलियायेमह भंसइ यो मइ दुट्ठदिद्विए बमसंखगए देवदत्तसामणं हि पयं कोहं जीहा खोलियाभेलखीयाये ल ल ल र ठ ठ ठ ठ।
कोणेष्वष्टसु बिलिखेद्वार्तालीमन्त्रभणितजम्भादीन् । ठद्वितियं धरणीपुरमीदृशमिदमालिखेत्प्राज्ञः ।। ९ ।। भा० टी०-उसके वाहिर भागे दिशाओं में वार्ताली मंत्रमें
Page #69
--------------------------------------------------------------------------
________________
[ ४९
कही हुई जम्मा आदि देवियोंको लिखे । उसके आगे दो ठकार और फिर पृथिवीमण्डल बनावे | बुद्धिमान् इस प्रकारका मन्त्र aria |
आठों देवियोंके मन्त्रोंका उद्धार -
भैरव पद्मावती कल्प
प्रणः
" जम्भे स्वाहा । ॐ जम्भिनि खाहा । ॐ स्तम्भे स्वाहा । ॐ स्तम्भिनि स्वाहा । ॐ अन्धे स्वाहा । ॐ अन्धिनि स्वाहा । ॐ रुन्धे स्वाहा । ॐ रुन्धिनि स्वाहा । "
फळके शिलातले वा हरितालमनः शिलादिभिर्लिखितम् । कोपगति सैन्य जिव्हास्तम्भ विदवाति विधियुक्तम् ।। १० ।।
भा० टी० - यह यन्त्र काठकी तखती अथवा पत्थरकी शिला पर हड़ताल और मनशिल बादिसे विधिपूर्वक लिखा जानेसे क्रोध, गति, सेना और जिन्हाका स्तंभन करता है ।
Page #70
--------------------------------------------------------------------------
________________
५० ]
स्त्र
1
ॐ
YAZL
व
है
ि
ले
Fo
to
मि
9
to
fo
al
Q
3
च्छ
P
१
15
&
2
भैरब पद्मावती कल्प ZEEEE)
यत्र संख्या २३
दिव्यवस्तु स्तम्भक यंत्र
3
ಸಿ
नि
न्दे
१
स
दसून
रु
8
2
स
12
12
8
चा
स्व
2
डा
२
हिउ
न्द
४
B
8
4
ॐ
8
d
a
8
Or
पि
•
?
}
ि
उ
Jo
龙
Page #71
--------------------------------------------------------------------------
________________
भैरव पद्मावती कल्प
[५१
नामग्लौमुर्तीपुरवपंग्लौं कारवेष्ठितं कृत्वा । ह्रींकारचतुर्वलयं स्वानामयुत्तं ततो लेख्यम् ॥ ११ ॥
भा० टी०- नामको क्रमशः ग्लौं, पृधिनीमण्डल, वं पं और • ग्लौंसे वेष्ठित करके उसके चारों ओर हां के ४ बलय बनावे ।
ॐ उच्छिष्टपदत्याने स्वच्छन्दपदमा लिखेत् । ततश्चाण्डालिनीस्वाहा टान्तयुग्मकवेष्टितम् ॥ १२ ॥ भा० टी०-उसके पश्चात् 'ॐ उच्छिष्टस्वच्छन्दचाण्डालिनी स्वाहा' इस मन्त्रसे बेष्ठित करके दो ठ से वेष्टित करे।
पृथिवीवलयंदत्वां पूर्वोक्तमन्त्रेण वेष्टयेबाटे । , रजनीहरितालाद्यभूले बिधिनान्वितो गिलिखेत् ॥ १३ ॥
मा० टी०-फिर पृथिवीमण्डल बनाकर उसके बाहिर पूर्वोक्त मन्त्री ही वेष्टित कर दे। इस यन्त्रको केशर और हड़ताल आदिसे विधिपूर्वक भोजपत्र पर लिखे ।
तत्कुलालकर मृत्तिकावृतं तोयपूरितवटे बिनि क्षिपेत् । पार्श्वनाथभु गरिस्थमर्चयेत् दिव्यरोधन विधानभुत्तमम् ।।१४।। भा० टी०-इस यंत्रको कुम्हारके हाथकी मिट्टोसे घिरे हुये जलसे भरे हुये घड़ेमें रखकर उसके ऊपर पाश्वनाथ भगवान् की पूजा करे । यह दिव्य वस्तुओंके स्तंभनका उत्तम विधान है।
Page #72
--------------------------------------------------------------------------
________________
५२]
है भैरव पद्मावती क्ल्प
यन्त्र संख्या २४ सेना स्तम्भक यन्त्र
सरकार मममा
m
IFAL FDEPAL
R
-
EentLAR ...un.LALALALLA021
au 23.
alm 4 .
रिपुनामान्वितं मान्तं मनरयू कारसंयुतं टान्तम् । तदाझे मूमिपुरं त्रिशूलमूतोप्रमृगवेष्ट्यम् ।। १५ ।। भा० टी०-शत्रुके नाम सहित और ठम्व्यू को लिखकर उसके बाहिर पृथिवीमण्डल बनाकर उसको त्रिशूल, मूत और हिंसक पशुओसे घेर देवे ।
Page #73
--------------------------------------------------------------------------
________________
में भैरव पद्मावती कप
प्रतिरूपहस्तखडगैनिहन्यमानारिरूपपरिवेष्ट्यम् ।
शत्रो मान्तरित समन्ततो वेष्टथेत्पिण्डैः ॥ १६ ॥ भा० टी०-शत्रुके नामके बाहिर प्रतिशत्रु (शत्रुके शत्रु) के हाथ शस्त्रसे मारे जाते हुवे शत्रुकी मूर्तिको बनाकर उसको चारों ओर शत्रुके नामके वाहिरके पिण्ड व्यू घेर दे।
प्रतिरिपुबाजिमहागजनामान्तरितं समन्ततो मन्त्री । विलिखेदों हूं ह्रीं ऐ ग्लौं स्वाहा टान्तयुग्मान्तम् ॥ १७ ॥ फिर उसको निम्नलिखित मन्त्रसे घेर देवे । "ॐ ह्रीं ऐं ग्लौं स्वाहा ठः ठः अमुकल्य पट्टावं ॐ ह्र ही ऐं ग्लौं स्वाहा ठः ठः अमुकस्य पट्टगज ॐ ह्रीं ह्रीं ऐं ग्लौ स्वाहा ठः ठः ॥" (इस मंत्रमें अमुकके स्थान में शत्रुका नाम लिखा देना चाहिथे।)
मन्त्रेण वेष्टयित्वाऽनेन ततो शत्रुविग्रहो लेख्यः ।
अष्टासु दिक्षु बहिरपि माहेन्द्रमण्डलं दद्य त् ।। १८ ॥ भा० टी०-फिर उसको निम्नलिखित मत्रसे वेष्ठित करके पाठों दिशाओं में शत्रुक्की मूर्ति लिखे और उसके वाहिर माहेन्द्र मण्डल बनावे
भेदय२ ग्रस२ खादय२ मारय२ हुं फट् । प्रेतवनात्सञ्चालितमृतकमुखोस्थितपटेऽथवा विलिखे । कृष्णाष्टम्यां युद्धात्त्यक्तप्रागस्य संप्रामे ॥ १९॥ भा० टी०-इस यन्त्रको स्मशानसे लाए हुये मृतकके
Page #74
--------------------------------------------------------------------------
________________
५४.]
हैं भैरव पद्मावती कल्प
मुखपरके वस्त्र अथवा कृष्णाष्टमीको युद्ध में मरे हुये योद्धाके वस्त्रपर लिखे।
कन्याकर्तितसूत्रं दिवसेनकेन तत्पुनर्वोतम् । तम्मिन् हरितालाद्यैः कोरंटक्लेखनी लिखितम् ।। २०॥ भा० टी०-कन्या द्वारा कते हुये सूतवा एक दिनमें ही कपड़ा बुनवा कर उसपर इस यन्त्रको कोरटककी कलम और हरिताल आदिसे लिखे।
पद्मावत्या. पुरतः पीतैः पुरा समभ्यय॑ । यन्त्रपटं बध्नीयाग्मख्याते चोन्नतस्तम्भे ॥२१॥ ।
भा० टी०-फिर इस यन्त्रको पद्मावतीदेवीके सामने पीले पुष्पोंसे पूजन करके इसको एक अत्यन्त ऊचे प्रसिद्ध स्तंभमें बांध दे।
तं दृष्ट्वा दूरतरान्नश्यन्ति भयेन विह्वलीभूताः ।
विरचितसेनाव्यूहात्संग्रामेऽशेषरिपुवर्गा. ॥ २२ ॥ __भा० टी०-इस यन्त्रको दूरसे देखकर युद्धमें सेनाका व्यूह बनाये हुये सब शत्रु लोग भयसे विह्वल होकर भाग जाते हैं। इति भैरव पद्मावतोक्लरकी भाषाटोक में 'रतम्भन यन्त्राधिकार'
नामका पंचम परिच्छेद समान ।
Page #75
--------------------------------------------------------------------------
________________
भैरव पद्मावती कल्प
[५५
षष्ठम परिच्छेद (स्त्री आकर्षण यंत्र)
यंत्र संख्या २५ . इष्टाङ्गनाकर्षण पत्र प्रथम
यूनिसले स्वश मनिगममा
R7
2
--
» 'एक्ली ५
+ नेमकिये निरा गया राय सतौर
7 1 1 1
*
4
AVANSAR
ASTRIEEEERI
Page #76
--------------------------------------------------------------------------
________________
१६]
६ भैरव पद्मावती कल्प
दिरेफयुक्त लिख मान्तयुग्मं पष्ठत्वरौंकारयुतं पविन्दुः। स्परावृत पञ्चपुराणि वह्निः रेफात्कमाकोमर ही च कोणे ॥१॥ ब्लेंकाररुद्ध च तथा हृम्ही ब्लूचाररुद्धं च ौं तथैव । क्रमेण दिक्षु त्रिषु चाम्बिकायाः मत्र बहिर्वहिमरुत्पुरश्च ॥२॥
भा० टी०- और यौँ वीजोंको मोबहों स्वरोंसे घेरकर उनके चारों और पांच अग्नि मंडल बनाबे । उनमेंसे प्रथम मण्डलके तीनों कोनोंमें यं बीज, द्वितीयमें क्रों, तृतीयमें हों, चतुर्थमें ब्लेसे रुका हुदा हत्क्लीं बीज और पञ्जममें ब्लू से रुका हुषा झौं बीज लिखकर मण्डलोंके चारों ओर भम्बिका मन्त्र लिखे। और उसके वाहिर अग्नि मण्डल तथा वायु मण्डल बनावे।
मन्त्रोद्धार
"ॐ नमो भगवति भम्वे अम्बाले अम्विके यझदेबि य्यूं ब्लें हृक्की ब्लू ौ रः रः रः रः रः रां रां नित्ये क्लिन्ने मदद्रवे मदनातुरे ह्रीं क्रों अमुकी मभ षश्य कृष्टिं कुरु २ संवौषट् ।"
इष्टाङ्गनाकर्षणमाहुराद्या धत्ताताम्बूलविषादिलेख्यम् । यन्त्र पटे खपरताम्रपत्रे दिनत्रये दोपशिखामितप्तम् ॥३॥
भा० टी०-इस यन्त्रको धतूरे पानके रस और शङ्गीविष आदिसे बख, खर्पर या ताम्रपत्रपर लिखकर नीन दिनतक दीपककी शिखापळ तपानेसे यह इच्छित स्त्रीका आकषण करता है।
Page #77
--------------------------------------------------------------------------
________________
है भैरव पनावती प्रप
[५७
.
यंत्र संस्या २६ इष्टाङ्गनाकर्षण यंत्र द्वितीय
श्रम
नजरम
जनसशस्ना
nki
edamam
shtra.kathabetest
utahpAREE24.Com
M
।
-
--
K
m
.
T
कमले गजेन्द्रमशगं सङ्गिसन्धिध्वपि । मायामारिजियकुच द्वितययोग्य योनिदेशे तथा ॥
Page #78
--------------------------------------------------------------------------
________________
५८]
ॐ भैरव पद्मावती काप
क्रोकारैः परिवेष्ट मन्त्रबलय दद्यात्पुरं चानलं । तद्वाह्येऽनलभूपुरं त्रिदिवसे दीपाग्निनाकर्षणम् ।।४।। पत्रे खोरूपमालिख्यमूर्द्धपादमधः शिरः । ब्रह्मादिराजिकाधूमभानुदुग्धेन लेपयेत् ।। ५ ।। एक ताम्रपत्रपर अपनी इच्छित स्त्रोके रूपको ऊपरको पैरे और नीचेको शिर करके बनावे । उसके हृदयकम में 'ॐ हौं' शरीरके सब जोड़ोमें 'क्रों' दोनों कुचोंमें 'ह्रीं' और योनिदेशमें 'य्यू' लिखकर उनको चारों ओर 'क्रों' से घेरकर मन्त्रका वलय, अग्निमण्डल, वायुमण्डल और पृथिवीमण्ड र बनावे ।
इस यन्त्रको धतूरे, सफेद सों, गेहू और माके दूधसे ताम्रपत्रपर लिखकर तीन दिन तक दीपककी अग्निपर तपानेसे इच्छित स्त्रीका आरर्षण होता है। मन्त्रोद्धार___ ॐ नमो भगवति कृष्णमातहिनि शिलाबल्झलकुसुमरूपधारिणि किरातशवरीसर्वजनमोहिनि सर्वजनवशकरि हो हो हं ह्रौं हः अमुकां आकर्षय २ समवश्याकृष्टिं कुरु कुरु सवौषट् ।
Page #79
--------------------------------------------------------------------------
________________
है भैरव पद्मावती कल्प
यंत्र संख्या २७ स्त्री आकर्षण यंत्र तृतीय
Seria
अग्निपुटकोष्ठमध्ये कलावृत भुवननाथमंकुशरुद्धम् । कोटेपु प्रणबांकुशमायारतिनाथररश्च ॥६॥
भा० टी०-दो अग्नि मण्डलोंके सम्पुटके बोचमें सोलह स्वरोंसे घिरे हुये 'ही' बीजको लिखकर उनके दोनों ओर क्रों बीज लिखे। छहों कोनो में क्रमशः ॐ, क्रों, हो, क्लीं, रं और रः वीजोंको लिखे। ___ कृष्णशुनकरय जबाशल्ये प्रविलिख्य बाहुरक्तेन ।
खदिराङ्गारस्तप्त सप्ताहादानयत्यवलाम् ॥७॥ भा० टी०-यह यंत्र काले कुत्तेको इमें अपने हायके. नाखूनसे रक्तसे लिखा हुआ खैरके अंगारोपर तपाया जानेसे स्त्रीका ७ दिनके भीतर आकर्षण करता है।
Page #80
--------------------------------------------------------------------------
________________
६०]
भैरव पद्मावती कल्प
अथवा रजस्वलाया वस्ने संविख्य जलजनागिन्याः । पुच्छं विधाय वति तद्द पादान्येबारीम् ॥ ८॥ भा. टी०-अधचा इस यंत्रको रजस्वलाके वस्त्र पर लिखकर उस सहित पनियाली नागिन को पूछको बत्ती बनाकर जलानेसे स्त्रीका आकर्षण होता है।
यंत्र संख्या २८ स्त्री आकर्षण यन्त्र चतुर्थ
दमन
काम मिया
तुमा १२
कामु अ
आली रक्सी
पाशाई शौ कोणीमान्तरस्पो मन्त्रारत वायुपुरन्च वाझे। भाकृषिोभ नराजनानां मरोनि यन्त्र रसीदग्निन॥१०॥
Page #81
--------------------------------------------------------------------------
________________
टै भैरव पद्मावती क्ल्प
[६१:
ह्रींकारमध्ये प्रविलिख्य नाम षट्कोणचक्र बहिराभिलेख्य । कोणेषु तत्त्व त्रिषु चोर्ध्वकोणद्वये पुनयूंमधरों लिखेच्च ।। ९ ।।
भा० टो०-होंक मध्यमें स्त्रोके नामको लिखकर उसके वाहिर षटकोण चक्र बनावे, उसके ऊपरके त्रिभुजके तीनों कोणोंमें ह्रीं, ऊपरके दोनों कोणोंमें यूं और नीचे ॐ को लिखे। पाशाङ्कशौ कोणशिखान्तरस्थौ मन्त्रावृतं वायुपुरच बाझे। आकृष्टिमिष्टामदाजनानां करोति यन्त्र खदिराग्नितप्त ॥ १० ॥
भा० टी०-उनके प्रत्येक कोणके ऊपर आं और क्रों को ' लिसे। फिर इन सबको निम्नलिखित मन्त्रसे वेष्टित करके उसके चाहिर वायुमण्डल बनावे। यह यन्त्र खैरकी अग्निसे तपाया जानेसे इच्छित स्त्रियोंका आकर्षण करता है। मन्त्रोंद्धार
ॐ ह्रीं हरक्की हुक्की आं क्रों य्यू नित्य लिन्ने मवे मदना-- तुरे अमुकां मम वश्याकृष्टिं कुरु२ संवौषट् ।'
लिखित्वा ताम्रपत्रे वा श्मशानोद्भगखर्परे।
तदङ्गमलधत्तूरविषाङ्गारप्रलेपितम् ॥ ११ ॥ इस यन्त्रको ताम्रपत्र या स्मशानके खप्परपर बीके अंगके कूचों मल, धतूरे, शृङ्गोविष और अंगारसे लिखना चाहिये।
Page #82
--------------------------------------------------------------------------
________________
६२ ]
க
रु
S
भैरब पद्मावती वल्प श्र
यंत्र सख्या २९
खी आकर्षण यन्त्र पंचम
रु
पृष्ठ
Pa
Se
पा
ह्रीं बदने योनौ लें कों षण्ठे तु स्मराक्षरं नाभौ । हृदये द्विरेफयुक्तं हूक्कारं नामसंयुक्तम् ॥ १२ ॥
नम
د
का
भु
61
भ
Page #83
--------------------------------------------------------------------------
________________
र भैरव पनावती कल्प
[६३
भा. टी--एक चित्र मपनी इच्छित स्त्रीका बनाकर उसके मुझमें ही, योनिमें ब्लें, कण्ठमें हक्लीं, नाभिमें क्ली, हृदयमें हूं तथा स्त्रीका नाम लिखे।
नाभितले ब्लोकारं वेदादि मस्तके च संबिलिखेत् । स्कन्धमणिबन्धकूपरपदेषु तत्त्वं प्रयोक्तव्यम् ।। १३ ।। भा० टी०--नाभिके नीचे ब्लू मन्तकमें ॐ तथा कंधों, हाथकी कलाई कनपटो और पैरोंमें ह्रीं वीजको लिखे ।
तस्ततले य्यू कारं सन्धिषु शाखासु शेषतो रेफान् । त्रिपुटितवह्निपुरत्रयमध तबाह्ये प्रदेशेषु ॥ १४ ॥ हथेलियोंमें यूं जोड़, अगुलियो और शेष अगोंमें रेफ लिखकर उसके बाहिर तीन अग्नि मण्डलोंकी पुट बन वे ।
कोष्टेषु मुवननाथं कोष्ठाप्रान्तरनिविष्टमङ्कुशबीजम् ।
वलयं पद्मावत्या मन्त्रेण करोतु तद्बाह्ये ॥ १५ ॥ भा० टी०-उस अग्नि मण्डलकी पुट के नौ कोठोसें ह्रीं तथा कोठोंके ऊपर क्रों चीज लिखे। उसके चारों ओर पद्मावतीके निम्नलिखित मन्त्रका वलय बनावे । । पद्मावतीका मन्त्र__'ॐ ह्रीं हैं हृत्क्ली पने पद्मकटिनि अमुकां मम बश्याकृष्टिं कुरु कुरु संवौषट् ।'
अंकुशरोधं कुर्यात्तद्वाह्ये मायया विधाऽऽवेष्ट्यम् । यावक्मलयज चन्दनकाश्मीराद्यैरिदं लिखेद्यन्त्रम् ॥ १६ ॥ भा० टी.-उसके वाहिर तीनबार हीसे वेष्ठित करके क्रोंसे निरोध करदे । इस यन्त्रको भक्तक, अगरु, चन्दन तथा केशर मादिसे रिखे।
Page #84
--------------------------------------------------------------------------
________________
६४]
६ भैरव पद्मावती कर
वो रजस्वलायाः खदिराङ्गारेणतापयेद्धीमान् । कुरुतेऽभिलषितवनिताऽऽकृष्टिं सप्ताहमध्येन ॥ १७॥ भा० टी०-बुद्धिमान् इस यन्त्रको रजस्वलाके मनपर लिखकर खैरके अगारोंपर तपावे तो यह यन्त्र एक सप्ताहके भीतर २ इच्छित स्त्रीका आकर्पण करता है।
रविदुग्धादिविलिप्त युवतिकपालेऽथवा लिखेद्यन्त्रम् । - पुरुषाकृष्टौ च पुनः मृकपाले यन्त्रमेवेदम् ।। १८ ॥
भा० टी०-अथवा इस यन्त्रको आक्के दूध, थूहरके दूध, गृहधूम, सफेद सों और नमक आदिसे किसी स्त्रीके कपालपर लिखे । पुरुष आकर्षण करने में इसी यन्त्रको पुरुषके कपाळपर लिखे ।
यत्र संख्या ३० स्त्री आकर्षण यन्त्र षष्ठ
R
C
Page #85
--------------------------------------------------------------------------
________________
भैरव पद्मावती कल्प
MARLEE
नाम विगर्भितं बहिरा बिखेच्छखिमण्डलं, रेफमन्त्रवृतं स्मशानखर्परे बिल्लिखेदिदम् ।
तापयेत्खदिराग्निना हिमकुकमा दिरादरा
[ ६५
दानयत्यवळां बलाद्दिनसप्तकैर्मद दिन्इलाम् ॥ १९ ॥
भा० टी० - नामको ह्रोंके अन्दर लिखकर उसके बाहिर अग्नि मण्डल बनावे, उसके चारों ओर रकार लिखकर निम्नलिखित मन्त्र स्मशानके खप्परपर चन्दन, केशर आदि से आदरपूर्वक लिखकर यदि खैर के अंगारोंपर तपावे तो खो सदसे fear होकर सात दिनके अंदर २ आजाती है ।
मन्त्रोद्वार
ॐ नमो भगवति चण्डकात्यायिनि सुर्मंग दुर्भगयुवति जननाकर्षय२ ॐ ह्रीं र यूँ संचौषट् देवदत्तायां हृदय घे घे ।
इति भैरवपद्मावती कल्पकी भाषाटीका में "स्त्री आकर्षणयन्त्राधिकार" नामक षष्ठम परिच्छेद समाप्त ॥ ६ ॥
Page #86
--------------------------------------------------------------------------
________________
है भैरण पावती कस्सी
सप्तम परिच्छेद वश्य यन्त्र
यत्र सख्या ३१ दाहज्वर शांत करनेका यन्त्र
क्स
कह
AREER
हसः वृताभिधानं मलवरयषष्ठस्वरान्वितं कूटम् । बिन्दुयुतं स्वरपरिवृतमष्टदलाम्भोजमध्यगतम् ॥ १ ।। भा. टी०-हंसा पदसे घिरे हुये नामको दायूं बीजसे घेरकर उसको स्वरोंसे घेर दे और उसके चारोंओर एक अष्टरल कमल बनाने।
Page #87
--------------------------------------------------------------------------
________________
में भैरव पद्मावती कल्प
[६७
तेजोऽहं सोमसुबहसःस्वाहेतिदिग्दलेषु लिखेल ।
आग्नेयादिदलेष्वपि पिण्डं यत्कर्णिकालिखितम् ।।२।। भा० टी०-उस कमलकी पूर्वादि दिशाओंके दलोंमें 'ॐ अहं इनी देवी हसः स्वाहा' मन्त्र लिखकर विदिशाओं में म्यूँ पिण्डको लिखे।
मूर्जे सुरभिद्रव्यविलिख्य तरिसक्थकेन परिवेष्ट्य ।
नूतनघटेऽम्बुपूर्णे तद्यन्त्र स्थापयेद्धीमान् ।। ३ ।। भा० टी०-बुद्धिमान इस यन्त्रको कुंकुम कपूर आदिसे सुगन्धित द्रव्योंसे भोजपत्र पर लिखे। फिर इसको मोममें लपेटकर जलसे भरे हुये नये घड़ेमें रखदे।
तन्डुरपूर्ण मृन्मयभाजनमप्युपरि तस्य संस्थाप्य । श्री पाव नाथसहितं करोति दाहज्वरोपशमम् ॥ ४॥
भा० टी०-उसके ऊपर चांवलोंसे भरे हुये मिट्टीके बर्तनकी स्थापना करके उसके ऊपर श्री पार्श्वनाथ भगवानको स्थापना करनेसे यह यन्त्र दाईज्वरको शान्त करता है।
श्रीखण्डेन तद लिख्य पाययेत्कांस्यभाजने । महादाइज्वरग्रस्तं तत्क्षणेनोपशाम्यति ।। ५ ॥
भा० टो-अथवा इस यन्त्रको कांसे के बर्तनपर श्रीखण्डसे लिखकर पिला देनेसे महा दाहज्बर भो उसो क्षण-शांत हो जाता है।
मन्त्रोद्धार
"ॐ नमो भगवते पावचन्द्रायं ध्यू वीक्ष्मी हंसः अंसि मा उ सा स्वोहा ।”
Page #88
--------------------------------------------------------------------------
________________
.६८]
हैं भैरव पद्मावती कल्प
यन्त्र संख्या ३२ वश्य यन्त्र प्रथम
वी
यो
निटिकतेच
aan
Aनिकित/ मन
परतले होश्नि
टिकत य/4
का पोपको हो
निटिसक्षम लेप को
/ALLA HERS
निटिल सम/ पहा है की
2
1
/ 22
ब्लें तत्त्वकूटेन्दुवृतं स्वनाम तद्वाझभागेष्टदलाजपत्रम् । पत्रेषु पद्मावरमूलमत्रं वेष्टयं तदाकर्षणपल्लवेन ॥ ६॥
Page #89
--------------------------------------------------------------------------
________________
- भैरव पद्मावती कल्प
[६९
भा० टी०-ब्लें ह्रीं क्ष और ठ से घिरे हुये अपने नामको लिखकर उसके बाहिर अष्ट दल कमल बनावे। उसके पत्रोंमें पद्मावतीका मूल मन्त्र लिखकर उसको आकर्षण पल्लव (संवौषट्) से वेष्टित करदे।
मन्त्रोद्धार
" ॐ ह्री हैं हालों पद्म पद्मकायिने नमः।" यन्त्र ततश्चार्द्ध शशिमवेष्यं विलिख्य यन्त्रं फडके वटस्य । गोरोचनासयुक्तकुंकुमाद्यः साध्यस्य नानारुगचन्दनेन ।। ७ ॥
भा० टी० - फिर इस यन्त्रको अर्धचन्द्राकार रेखासे घेरकर चटवृक्षकी तखतीपर गारोचन या केशर आदिसे लिखें। साध्यके नामवाले यन्त्रको लाल चन्दनसे लिखें।
कृत्वा ततश्वोभयसम्पुटञ्च श्रीपार्श्वनाथम्य पुरोनिवेश्य । सन्ध्यासु नित्य करवोरपुष्पैर्भवेदवश्य जपतःसुमाध्यम् ॥ ८॥
भा० टो०-तब उन दोनोंका मुख मिलाकर श्री पार्श्वनाथ भगवान के सामने रखकर प्रातः साय और दोपहर तीनों संध्याओंमें कनेरके फूलों पर जप करनेसे यन्त्र सिद्ध होता है।
Page #90
--------------------------------------------------------------------------
________________
७०]
९ भैरव पद्मावती कल्प
यत्र संख्या ३३ वश्य यन्त्र द्वितीय
बहस
रा
शल
ज
'
ज
५
.
kkcELD
-१५-
45552
nm
अन्त्यवर्ग तृतीय तुयवकार तत्ववृताह्वयं । हंसवर्णवृतं ततो द्विगुणोकृताष्टदलाम्बुजम् ।। तेपु षोडशसत्कलाशिरसोनशून्यवृत बहि
यिया परिवेष्टितं प्रणवादिकाभिरावृत्तम् ।। ९ ॥
अन्त्यवर्ग (ऊष्मों) के तृतीय (स) चतुर्थ (5) और ह्रीं से घिरे युये नामको 'हस' से घेरकर वाहिर सोलह दल कमल बनाकर उनमें सोलह कलायें लिखे। फिर उसको शिर सहित हकारसे वेष्टित करके माया (ही) से वेष्टित करे और बाहिर 'ऊंक' से लेकर 'ॐ' तक लिखे ।
Page #91
--------------------------------------------------------------------------
________________
हैं भैरव पद्मावती कल्प
[१
यन्त्रमानिलिखेदिदं हिमकुङ्कमागुरुचन्दनः। मूर्जके फडकेऽथवा मुवि गोमयेन विमार्जिते ।। प्रत्यहं विधिना समं जपतोऽरूणप्रसवै भृशं ।। तस्य पादसरोजषटपदसनिभं भुवनत्रयम् ।। १० ।।
भा० टी०-इस यत्रको भोजपत्र, बटको तखती अथवा गोबरसे लीपकर शुद्ध की हुई भूमिपर कपूर, केशर, अगरु ब चन्दनसे लिखकर प्रतिदिन निम्नलिखित स्त्रका लाल कनेरके फूलोंसे विधिपूर्वक जप करनेवालेके चरण कमलोंमें जगत भौरेके समान लौटार फिरता है। मन्त्रोद्धार-- 'ॐ ह्रीं हल्ली ब्लें हैं असि मा उ वा अनाहत विद्य यै नमः।
यन्त्र संख्या ३४-वश्य यन्त्र तृतीय
aamम्म
मा
Rulus
medies 19m.
JANurn
Page #92
--------------------------------------------------------------------------
________________
७२]
भर पावती पल्प।
ब्रह्मान्तर्गत नाम मापया परिवेष्टितम् । वेष्टितं कामराजेन पाझे पोडशपत्रकम् ।। ११ ॥.
भा० टी-नामको क्रमशः ॐ हीं और क्लीं से वेष्टित करके उसके बाहिर मोड दल फमठ पनावे ।
पञ्चचाणा न्यसेत्तेषु स्वाहान्तोङ्कारपूर्वकान् । तद्वाझे माययावेष्ट्य ऋकारेण निरोधयेत् ॥ १२ ॥ भा० टी०-उन नोटों स्टोंमें 'ॐ द्रां द्रीं छौं ब्लू सः स्वाहा' इस मंत्रको लिखकर बाहर ह्रीं से वेष्ठित करके क्रोंसे निरोध करे।
मूर्जे पत्रे पटे पाऽपि बिलिख्य च हिमादिभिः ।। ऊं द्रीं ह्रीं ब्लू सः कारान्त्य मन्त्रं क्षोभकरं जपेत् ।। १३ ॥
भा० टी०-इस यंत्रको भोजपत्र या पत्र पर कपूर और सुगंधित द्रव्योंसे लिखकर क्षोभन करनेवाले 'ऊ द्रीं क्लीं ब्लू सः' मन्त्रका जाप करे।
Page #93
--------------------------------------------------------------------------
________________
की
नি
भैरव पद्मावती कल्प
काँ
應
服
েমধ
यंत्र संख्या ३५
वश्य यंत्र चतुर्थ
说
Visio
ॐ
नमः वह
क
T
膑
को
透
麻
黑
Al
कुनै
ॐ
突
화
अष्टममध्ये स्नात्वं दलेषु चित्तभवम् । पुनरप्यष्टाम्बुद्धमिभदाकरणं ततो लेख्यम् ॥ १४ ॥
भा० टी० - एक अष्टदल कमलकी वर्गिकामें ह्रों के नाम लिखकर उसके माठों दलोंमें कों लिखे । उसके फिर आठ दळ बनाकर उनमें कों लिखे ।
षोडश दळगतंपनं कौसरं येषु सुरभिद्रव्यैः । हां हीं हठ कारेतयन्त्रं वेष्टयेत्परितः ॥ १५ ॥
[ ७३
भीतर
पश्चात्
Page #94
--------------------------------------------------------------------------
________________
७४ ]
भैरव पद्मावती कल्प
Dev
भा० टी० - उसके पश्चात् सोलह दल कमल बनाकर उसके दलों में कों को सुगंधित द्रव्योंसे दिखे, और फिर उस यन्त्रको चारों और "क्ला क्लीं क्कू कौं " घेर देवे ।
तबाह्येऽर्कशशीभ्यां जपतः शून्यैश्च पञ्चभिर्नित्यम् । नागनरामरलोक: क्षुभ्यति वश्यत्वमायाति ॥ १६ ॥
भा० टो०- उ रके बाहिर सूर्य और चन्द्रमासे वेष्टित करके पद्म शून्यों 'ह्रां ह्रीं ह्र ं ह्रौं ह्नः' जप करने से नागलोक, मनुष्यलोक और देवलोक सभी वशमें हो जाते हैं ।
अरिष्टनेमि मन्त्र
अष्टघुपाषाणात् दिशासु परिजाप्य निक्षिपेद्धीमान् | चौरादिरौद्रजीवैरभयं सम्पद्यतेऽटव्याम् ।। १७ ।।
भा०टी० - यदि बुद्धिमान मनुष्य निम्नलिखित मन्त्रको बनमें आठ पत्थरकी ककरों पर जपकर उन्हें आठों दिशाओं में फेंक दें, तो चोर आदि भयकर जीवोंसे भय नहीं रहता ।
मन्त्रोद्धार
"ॐ नमो भगवदो अरिट्टनेमिस्स अरिद्वेण बघेण बधामि रक्खमाण भूयाणं खेचराण चोराण दाढोण सायणोण महोरगाः अण्णे जे के बिदुट्ठा सम्भवन्ति तेखि सव्वेसि मण मुह गहं दिहिं बंधामि धणुर महाधणुरे जः जः जः ठः ठः ठः हुं फट् ।”
Page #95
--------------------------------------------------------------------------
________________
है भैरव पद्मावती कल्प
यत्र संख्या ३६ वश्य यन्त्र पञ्चम
AN
निस्मन्न
नुभएको
रोना
MORE
42MBE
नरममा
नरेट
८.
नागरम
साहाय
CATनमन-6
Ne/RRes
Rekha
RERAurs
स्वरबीजयुतं शून्यं तत्वेनैङ्कारवेष्टितम् । पाह्येऽष्टदलाम्भोज नित्यक्लिन्ने मददगावे ।। १८ ॥ मदनातुरे कषडिति बिलिखस्ताहान्तविनयपूर्वेण । त्रिभुवनवश्य वश्य प्रतिदिवम भवति संजपतः ।। १९ ।। भा० टो-एक अष्टदल कमलकी पर्णिकामें नाम सहित ली ह ह्रीं और ऍो लिख र उसके आठों दलों में निम्न लिखित मन्त्र लिखकर इसी मन्त्र का प्रति दिन जप करे तो अवश्य ही
दशमे हो जाते हैं। मन्त्रोद्वार
ॐ हीं ह्रीं ऐंनित्य किन्ने मद्वेमदनातुरे त्रिभुवनं मम वशी भवंतु२ षट स्वाहा।
Page #96
--------------------------------------------------------------------------
________________
* भैरष पद्मावती कल्प
यत्र स्या ३७ वश्य यन्त्र पष्ठ-(त्रैलोक्य क्षोभण यन्त्र )
वर्णान्त मदनयुतं वाग्भवोपरि सस्थितं वसुदलाजम् । दिक्षु विदिक्षु च माया वाग्भषवीज ततो लेख्यम् ।। २० ।।
भा० टी०-एक अष्टदल कमलकी निकामें नामको हलीं और ऐसे वेष्टित करके लिखे । उसकी दिशाओंके चार दलोंमें हों और विदिशामें ऐं टिखे ।
त्रैलोक्यक्षोमणं यन्त्रं सर्वदा पूजयेदिदम् । . हस्तेबद्धं करोत्येव त्रैलोक्यजनमोहनम् ॥ २१ ॥
भा० टी०-इस तीच ठोकको झोभित करनेवाले यन्त्र
Page #97
--------------------------------------------------------------------------
________________
[ ७७
प्रतिदिन पूजन करके इसको हाथमें बांधने से यह तीन लोकको मोहित करता है । मन्त्रोद्वार
“ कीं ऐं ह्रीं देवदत्तस्य सर्वजनवश्यं कुरुर वषट ।" दूसरेको सुलानेका मन्त्र
भ्रम युगलं केशिभ्रम माते भ्रम निभ्रमं च मुह्य पदम् । मोहय पूर्णैः स्वाहा मन्त्रं यं प्रणय पूर्वगतः ॥ २२ ॥
भैरव पद्मावती कल्प
ज
मन्त्राद्धार-
“ ॐ भ्रमर केशिभ्रम मातेभ्रम विभ्रमं मुझर मोहयर पूर्णः पूर्णः
स्वाहा |
"
एतेन लक्षमेक भूमिसंप्राप्त सर्षपैर्जप्त्वा ।
क्षिम गृहदेहल्यामकाळ निद्रां जनः कुरुते ॥ २३ ॥
भा० टो० - इस मन्त्रको पृथ्वीपर न गिरी हुई सरसोंसे एक लक्ष जप कर वह सरसों जिस घरकी देइलीपर डाली जाती उ घरवालोंको असमय में निद्रा आ जाती है ।
रण्डयक्षिणीकी सिद्धि
मृत विधात्राह्मण्याः पादताळक्तकेन परिलिखितम् । तद्वक्त्र पिहितवत्रे विधवा रूपं निराभरणम् ॥ २४ ॥ भा० टी० - मृतक विधवा ब्राह्मणी के पैरके अलकृकसे उसके मुखके ढकनेके बखपर बिना आभरणवाढी विधाका रूप बनावे | प्रणवं विदे मोहे स्वाहान्तं सप्तलक्षजाप्येन |
एकाकिनी निशायां सिध्यति सा यक्षिणी रण्डा ॥ २५ ॥
भा० टी० - " बिचे मोहे खाहा" इस मन्त्रका अकेले रात्रि के समय सात उम्र जप करनेसे वह रण्डा यक्षिणी सिद्ध होती है ।
Page #98
--------------------------------------------------------------------------
________________
७८]
से भैरव पद्मावती कल्प
यसाधकाभिलषितं तत्त्स्मै वस्तु सा ददात्येव ।
झोभं प्रयान्ति रण्डाः सर्वा मपि भुवनवर्तिन्यः ।। २६ ।। भा० टी०-वह साधककी इच्छा की हुई सभी वस्तुएं देती है, उससे लोकमें रहनेवाली सभी विधवाएं क्षोभको प्राप्त होती हैं।
यंत्र संख्या ३८ स्त्री वशीकरण ध्यान
कि
तत्त्वं मन्मथबीजस्य तलोपरि विचिन्तयेत् । पार्श्वयोरेबल पिण्डं भ्रमन्तमरुणप्रभम् ।। २७ ।।
भा० टी०-क्लीके ऊपर ह्रींका ध्यान करके उसके दोनों ओर 'घूमते हुये अरुण प्रभावाने 'ब्लें' का ध्यान करे ।
योनौ क्षोभं मूर्धनं मोहनि पातन ललाटस्थम् । ' लोचनयुग्मे द्रावं ध्यानेन करोतु वनितानाम् ।। २८ ॥
भा० टी०-यह ध्यान, खियोंको योनिमें करनेसे क्षोभ, सिरमें करनेसे मोहन, मस्तकमें करनेसे पातन (विसर होकर गिरना), और दोनों नेत्रों में करनेसे द्राषण होता है।
Page #99
--------------------------------------------------------------------------
________________
भैरव पनाती कल्प
[७९
शीर्षास्य हृदय नाभौ पादौपानङ्गवाणमथ योज्यम् ।
सम्मोहनमनुलोम्ये विपरीते द्रावणं कुरुते ॥ २९ ॥ भा० टी०-शिर, मुख, हृदय, नाभि और पैरोंमें कामदेवके पांच बाणं 'द्रां द्रीं क्लीं ब्लू स:' को इसी सीधे क्रमसे लगानेसे सम्मोहन और उलटे क्रममें लगानेसे द्रावण होता है।
दयात्ताम्बूलगन्धादीन्स्मरबाणाभिम त्रितान् ।
क्षालयेदात्मवक्त्रं च स स्त्रीणां मन्मभो भवेत् ॥ ३०॥ भा० टी०-कामके वाणोंसे अभिमंत्रित करके तांबूल इत्र आदि देवे और उसी मन्त्रसे अपने मुखको धोवे, इस प्रकार वह त्रियोंका कामदेव हो जाता है।
मन्त्रोद्धार
“ओं द्रां द्रीं क्लीं ब्लू स: इक्की एं नित्य क्लिन्ने मदद्रवे ह्रीं सर्वजनं मम नश्यं कुरु २ वषट् ॥" सिन्दूरारुणवाससन्निभप्रभंब्लेकारसपिंडकम् ,
___ कान्तागुह्मगत प्रसंचलितमित ध्यात्वा मनोरञ्जितम । लाक्षारागमविन्दुवर्षवर्ष प्रस्यन्दि कामादराव , सप्ताहेन वशं करोतु बनीतां तत्तत्र चित्रं कुतः ।। ३१॥
भा० टी०-सिन्दूरिया लालवस्त्रले समान प्रभावाले उत्तम पिण्ड ब्लेंको स्त्रीके योनिस्थानमें तेजीसे धूमता हुआ मतको प्रसन्न करनेवाला, लाखकी लालिमाकी बून्दोंके समूहको वरसाकर बहाता हुमा-ध्यान करनेसे स्त्री कामके वेगसे यदि एक सप्ताहके अन्दर ही वशमें आ जाने तो: इसमें क्या आश्चर्य है। {" . विचिन्तयेदेवलपिंडमेकं सिन्दूरवण वनितावराङ्गले, ..
तद्भावणं दृष्टिनिपासमात्रात्सप्ताहतोऽप्यानयनं करोतिः।। ३२ ।।
Page #100
--------------------------------------------------------------------------
________________
८०]
भैरव पद्मावतो कल्प
- भा० टी०- ब्लें वीजको त्रियोंके गुझस्थानमें सिन्दूरके वर्णका ध्यान करनेसे देखते हो खो द्रवित हो जाती है और सात दिनके अन्दर२ ही आ जाती है।
किसीको ज्वर लानेका मन्त्र
ब्राह्मगमस्तककेश कृत्वा रज्जु तया नरकपालम् । आवेष्ठय साध्यदेहोद्वर्तनकेशनखरपादरजः ।। ३३ ।।
भा० टो०-ब्राह्मण सिरके बालोकी रस्सी बनाकर उससे एक नर कपालको लपेटे और फिर साध्य पुरुषके शरीरके मल. विष्टा, केश, नख और पैरको धूलको लेकर ।
मनु जास्थि चूर्ण मिनं कृत्वा तनिक्षिपेत्पुरोक्तपुटे । अरयति मन्त्रस्मरणात्सप्ताहाद चिमधनेन ३४ ॥
भा० टी०-उसको मनुष्यको हडोमें मिलाकर सबका चूर्ण करके उसको पहिले नर कपाळमें डाल दे। तब मन्त्र जपते हुये हड्डोको गडनेसे शत्रुको एक सप्ताहके अन्दर२ ज्वर हो आता है।
मन्त्रोद्धार
"ॐ नमो चण्डेश्वर चण्डकुठारेण अमुकं गरेण हो गृहर भारय हुं फट थे घे।" .
चण्डेश्वराय होमान्तं संजपेद्विनयादिना । सहस्रदशकं मन्त्री पूर्वमारुणपुष्पकैः ॥ ३५ ॥ भा० टी.-मन्त्री पहिले ॐ चण्डेश्वराय स्वाहा' इस मन्त्रका गड कनेरके पुष्पोंसे दए साल जप कर लेवे।
Page #101
--------------------------------------------------------------------------
________________
भैरब पद्मावती प
यंत्र संख्या ३९ ज्वर हरण यन्त्र
टान्तपकारप्रणयनजान्तार
तार्द्धशशि प्रवेष्टितं नाम ।
शीतज्वर और
शीतोष्ण अपरहरणं स्यादुष्णहिताम्बुनिक्षिप्तम् ॥ ३६ ॥ भा० टी० - नामको क्रमशः ठ, प, ॐ, झ और अर्द्धचन्द्रसे बेष्टित करके उसको उष्ण जलसे डालने से शीतल जल में डालने उष्ण उवर नष्ट होता है । होम द्रव्य विधान शाक्यक्षयदूर्वाकुरमयजहोमेन शांतिकं पुष्टिम् ।
करवीर पुष्पमानात्कुर्यात्स्त्रीणां वशीकरणम् ॥ ३७ ॥ भा० टी० - साठीके भांबळ, दूनके अंकुर और लाल चन्दन के होम से शांतिक भौर पुष्टिकर्म, बाल बनेर के पुष्पों के हवनसे भी स्त्रियोंका वशीकरण होता है ।
महिषामा प्रतिदिवसं भवति पुरजनक्षोभः । क्रमुकफडपत्र इवनात् राजानो वश्यमायान्ति ॥ ३८ ॥
भा० टी० - महिवाल, गूगढ और पद्म ( कनेर) के होमसे नगरबास्त्री प्रतिदिन क्षोभको प्राप्त होते रहते हैं। सुपारी और नागरमेक मानके हमनसे राजा ढोग बशमें होते हैं।
६
Page #102
--------------------------------------------------------------------------
________________
२]
भैरव पन्नावती कल्प।
तिट धान्यानां होमै राग्यदुतैर्भवति धान्यधनवृद्धिः ।
मल्लीप्रसूनहोमात्रघृतावश्यन्ति योगिजनाः ।। ३९ ।। भा० टी०-तिल, धान्य गौर घृतके होमसे धन धान्यकी वृद्धि होती है। मल्लिका (मोगरा) पुष्पके हवनसे योगिजन वशमें हो जाते हैं।
घृत युतचूत फडानां परहोमादपति खेचरीवश्या । बट्यक्षिणी सोमाद्भवति रशे ब्रह्मपुष्पाणाम् ॥ ४०॥ भा० टी०-पी और मामके फलोंके हमनसे विद्याधरी वशमें होती है। पठाशके पुष्पोंके होमसे बट्यक्षिणी पशमें होती है।
गृहधूम निम्बराजी साबणान्षित काकपक्षकृतहोमै ।
एकोदरजातानामपि भपति परस्परं वरम् ।। ४१ ॥ भा० टी०-गृह धूम (भागार धूम), नीम, सफेद सरसों, नमक और काकपझके होमसे सगे भाइयोंका भी आपसमें द्वेष हो जाता है।
प्रेत बन शल्यमिश्रितबिभीतकाङ्गार सदन धूमानाम् । होमेन भवति मरणं पाहाद्वैरिलोकस्य ॥ ४२ ॥ भा० टी०-स्मशानकी अस्थि, बहेड़ेके अंगारे और गृहधूमके होमसे शत्रु एक पक्षके बन्दर२ मर जाता है। इति उभयभाषा विशेखर श्रीमल्लिषेणसूरि विरचित भैरव पद्मावती फ्ल्पकी पंडिता बाबसीदेवी सरस्वती (धर्मपत्नी काव्यसाहित्यतीर्शचार्य प्राच्यविद्यावारिधि भी चन्द्रशेखर शास्त्रो) कृत भाषा टीकामें "वश्य यन्त्राधिधार" नाम
सप्तम परिच्छेद समाप्त ॥ ७॥
Page #103
--------------------------------------------------------------------------
________________
र भैरष पद्मावती काप
[८३
अष्टम परिच्छेद
(निमित्ताधिकार)
दर्पण निमित्तकी प्रथम सिद्धि सिध्यति सहस्रजाप्येर्दशगुणितैः प्रणवपूर्वहोमान्त्यः ।
दर्पणनिमित्तमन्त्रश्चलेचुलेप्रभृतिनोच्चार्यः ।। १ ॥ दर्पण निमित्त नामक निम्नलिखित मंत्र दस सहस्र जापसे सिद्ध होता है___ भा० टी०--"ॐ चलेचुले चुण्डे कुमारिकयोरङ्ग प्रविश्य यथामूतं यथाभव्यं यथासत्य भवति दर्शय२ भगवति मा विलम्बय विलम्पय ममाशामवयं पूरयर स्वाहा।"
सप्तवाराभिमन्त्रित गोदुग्ध पाययेत्कुमारिकयोः ब्राह्मणफुलप्रसूत्योः तयोर्द्वयोः सप्तवत्सरयोः ।। २ ।। भा० टी०-इम मन्त्रसे गोदुग्धको मातबार अभिमंत्रित करके उसे ब्रह्मणकुलोत्पन सात२ वर्षकी दो कन्या को पिलादे ।
सस्ताप्य ततः प्रातर्दत्वा ताभ्यामथ प्रसूनादीन् ।
मृभ्यामपतितगोमयसम्मार्जित भूतले स्थित्वा ॥३॥ भा० टी०-फिर प्राःतकाल स्नान करके पृथिवीपर न गिरे हुये गोयरसे पुते हुये स्थानमें खड़ा होकर उन दोनों कुमारियोंको पुप्प आदि देकर।
चतुरस्त्रमण्डलथं कलशं गन्धोदकेन पूरिपूर्णम् । . तस्योपर्यादर्श निवेशयेत्पश्चिमाभिमुखम् ॥ ४॥
Page #104
--------------------------------------------------------------------------
________________
८४]
हैं भैरव पद्मावती कल्प
भा० टो०-चौकोर मण्डलमें रक्खे हुये, सुगन्धित जलसे भरे हुये फलशके ऊपर एक दर्पण पश्चिमकी ओर मुख करके रख दे,
तदभिमुखं प्राक्कल्पितकुमारिकायुगलमथ निवेश्य ततः। तद्धदये ब्लू कारं विचिन्तयेत्प्रणवसम्पुटितम् ।। ५ ।। भा० टी०-उस दर्पणके सामने पहिले संकल्प की हुई दोनों कन्याओंकी स्थापना करके उनके हृदयमें 'ॐ ब्लू ॐ इस मंत्रका ध्यान करे।
शशिमण्डलवत्सौम्यं तन्मंत्रमनुस्मरन् स्वय तिष्ठेत् ।
आदर्शवीक्ष्यमाण कुमारिकायुगलकं पृच्छेत् ॥ ६ ॥ मा० टी०-चन्द्र मण्डलके समान सोम्य रूपवाले उपरोक्त मन्त्रका ध्यान करता हुमा स्वयं बैठकर दर्पणमें देखती हुई उन दोनो कुमारियोंसे पूछे।
यदृष्टं यच्छुत ताभ्यां तत्र रूप चचो यथा ।
खड्गाङ्गुष्ठे जलादशै तत्सत्य नान्यथा भवेत् ॥ ७ ॥ भा० टी०-वह दोनों कन्याएं शस्त्र, अगुष्ट, जल या दर्पणके निमित्तमें इस प्रकारले देखे हुये जिस रूपो या सुने हुये जिस वचनको फहेंगी वह अन्यथा नहीं हो सकता।
दर्पण निमित्तकी द्वितीय सिद्धि दर्पणाङ्गष्ठदोपादिनिमित्तमवलोकयेत् । सिध्यत्यष्टसहस्रेण मन्त्रो जाप्येन मन्त्रिणा ॥ ८॥ भा० टी०-मन्त्रो इसी प्रकरणमें दर्पण, अंगूठे और दीपक आदिके निमित्तको भो देखे। निम्नलिखित मन्त्र आठ सहस्र जपसे सिद्ध होता है"ॐ नमो मेरु, महामेरु ॐ नमो धरणि महाधरणि ॐ नमो
Page #105
--------------------------------------------------------------------------
________________
में भैरव पद्मावती कस्प
[८५'
गौरि महागौरि ॐ नमः छालि महाकालि ॐ नमो इन्दे महाइन्दे ॐ नमो लये महाजये ॐ नमो विजये महाविजये ॐ णमो पणसमणी महापणसमणी अवतर२ देवि अवतर२ मम चिन्तितं कार्य सत्य ब्रूहि स्वाहा ।"
दत्त्वा दर्शान्तरण दुग्धाहारं पुरा कुमारिफयोः ।
संस्नाप्य ततः प्रातर्धषलाम्परमूषणादानि ।। ९ ।। भा० टी०-पहली रात्रिमें उन दोनों कुमारियोंको दाभकी शय्या और दुग्धका आहार देकर प्रातःकाल उलको स्नान करा कर श्वेत वस्त्र और आभूषण आदि देवे ।
कलशादर्शकुमारीस्थानेष्वच विन्यसेदिम मन्त्रम् । विनयं गजनशकरणं क्षां क्षों झूकारहोमान्तम् ॥ १० ॥ भा० टो०-इसके पश्चात् कलशके स्थान, दर्पणके स्थान और कुमारियोके खड़े रहने के स्थानोंमें 'ॐ क्रों क्षांक्षी भू स्वाहा' इस मन्त्रका न्यास करे।
प्रणबादिपञ्चशून्यैरभिमन्त्र्य कुमारिकाकुचस्थाने ।
अशितुं तयोश्च दद्यादृतेन सम्मिश्रितान्यूपान् ।। ११ ।। भा० टी०-उन कुमारियोंके कुचस्थानमें 'ॐ ह्रां ह्रीं ह्र. ह्रौं हः' इस मन्त्रसे अभिमन्त्रित करके उन्हें भोजन के लिये घोके पूड़े देवे।
अंगुष्ठ निमित्तकी सिद्धि मालक्तकाभिरञ्जितहस्ताङ्गुष्ठे निरोक्षयेद्रपम् । करनिर्वतिततैलेनांगुष्ठस्नानकरणेन ।। १२ ।। भा० टी०-हाथों पर तिलका तेल लगाकर अंगुष्ठ निमित्तके द्वारा अलक्तकसे रगे हुये अपने अंगूठेमें मन्त्री रूपको देखे ।
Page #106
--------------------------------------------------------------------------
________________
८६]
* भैरव पद्मावती कल्प
दर्पण निमित्तकी तीसरी सिद्धि प्रणवं पिङ्गलयुग्म पण्णति द्वितयं महाविद्येयम् । टान्तद्वयश्च होमो दर्पण मन्त्रो जिनोद्दिष्टः ॥ १३ ॥ 'ॐ पिङ्गल २ पण्णति २ महाविधे ठः ठः स्वाहा।' इस महामन्त्रको जिनेन्द्र भगषान्ने दर्पण मन्त्र कहा है।
जाप्यं मानुस्खहले सित्पुष्पैश्चन्द्रकिरणसंकाशैः।
सिध्यति दशांसहोमेनादर्शनिमित्तमन्त्रोऽयम् ।। १४ ॥ भा० टी०-यह दर्पण निमित्त मन्त्र बारह सहस्र जप और चन्द्रमाझी किरणोंके समान सफेद पुष्पोके दशांस होमसे सिद्ध होता है।
चितिभस्मनकविंशतिवारा निर्मद्य दर्पण पूर्वम् ।
शाल्यक्षतोपरिस्थितनपाम्बुपरिपूर्णनलकुम्भे ॥ १५ ।। भा० टी०-पहिले दर्पणको स्मशानकी राखसे इक्कीस वार मलकर उसको शाटीके चांयलोके ऊपर रक्खे हुने नवीन जलसे भरे हुये नये काल शके ऊपर रक्खे ।
तं प्रतिनिधाय तस्मिन्नेकुलोद्भूतकन्यकायुगलम् । त्रिषु वर्णेष्वन्यतम स्नान धवलाम्बरोपेतम् ।। १६ ।। भा० टी०-उस दर्पणको फलशपर रखकर ब्रह्मण, क्षत्रिय अथवा वैश्य तीनों वर्गों में से किसी एक वर्णकी दो कन्यालोको स्नान कराकर श्वेत बस्न पहिनावे।
अभ्यर्च्य गन्धतन्दुन्द्र निवेद्यकुसुमादिभिस्तत' कलशम् । दत्त्वा ताम्बूटादीनादर्श दर्शयेत्ताभ्याम् ।। १७ ॥ भा० टी०-फिर कलशका चन्दन, अक्षत नैवेद्य और पुष्प आदिसे पूजन करके और पान आदि देकर उन दोनो कन्याओंको दर्पण दिखलावे ।
मत्री मन्त्र पठन् कुमारिकायुगल तथा पृच्छेद । दृष्टं श्रुतम्न कथयति रूपं बचना मुकुन्दे ॥ १८॥
Page #107
--------------------------------------------------------------------------
________________
भैरव पद्मावती कल्प
CONVIC
भा० टो—- उस समय मन्त्री मन्त्रको पढ़ता हुआ उन दोनों कुमारियोंसे प्रश्न करे | वह उस दर्पणमें देखे हुये रूप और सुने हुये वचनको ठीकर कहेंगी।
न्यू षु मा रथ ।
यंत्र संख्या ४०
दीपक निमित्तवाला सुन्दरी यन्त्र
सुम रूप बरका ४
184
म
हा 8
dese
हा
ऋभु म र स
हा स्वारी
बारी दडु
हा
रेटि
हा
تايم
f he
这
३. म सुमर ए
द
हा स्वारी
सुभ
ax!
1 ८७
अष्टसहस्रेतपुष्पैः श्री वीरनाथ जिनपुरतः ।
जप्ते सुन्दरी देनी सिध्यति सन्त्रेण सद्भक्तथा ॥ १९ ॥
भा० टी०—– श्री महावीर भगवान के सामने अष्ट महरु
Page #108
--------------------------------------------------------------------------
________________
८८]
भैरव ती कल्प
जाती (माती) पुष्पोंसे भक्तिपूर्वक रूप करनेसे 'सुन्दरी' नामकी देवी सिद्ध होती है ।
जपनेके मन्त्रका उद्धार
'ॐ सुन्दरी परमसुन्दरी स्वाहा |
ब्रह्मा विसुन्दरीशब्द होमान्त वर्णिकान्तरे । अष्टपत्रेषु सर्वेषु विखेत्परमसुन्दरी ।। २० ।।
भा० टा—एक अष्ट एक कमी फर्णिका' परम सुन्दरी स्वाहा' लिखकर आठों में 'ॐ सुन्दरी स्वाहा' दिखे। कृष्णवपूर्ण कुमारमृत्तिकाकृते पात्रे । बालकृत दीपेन्बोधवह्निभवे ॥ २१ ॥
भा० टी० – कुम्हारके हाकी मिट्टी के बनाये हुये दीप पात्र में काले तिलोंका तेल भरकर अबतकी बनी हुई बत्ती टाळकर वट वृक्षकी लड़की आगसे दीपकको जढावे |
शेष क्रिया पहिले समान है ।
कर्णपिशाचनी मन्त्र
श्रवणपिशाचिनि मुण्डे स्वाहान्तः प्रणवपूर्वको ध्धायः । सिध्यति च लक्षजाप्पाणपिशाचीत्ययं मन्त्रः ॥ २२ ॥ 'ॐ श्रवणपिशाचिनि मुण्डे स्वाहा ।'
भा० टो०- यह कर्णपिशाचिनी मंत्र एक बक्ष जपसे सिद्ध होता है।
मत्रपरितकुष्टहृन्मुख र्ण द्वि-युगलमा यि ।
सुप्तस्य कर्णमूले कथयति यञ्चिन्तितं कार्यम् ॥ २३ ॥ भा० टी० - इस मनसे कूठको २१ बार अभिमंत्रित करके उसको पीसकर हृदय, मुख, दानो कान और दोनों पैरों पर
Page #109
--------------------------------------------------------------------------
________________
है भैरव पसारती पल्प
[८९
लगाकर मोवे तो कर्णपिशाचिनी देवी सोते समय सोचे हुये कार्यको कानमें कहती है।
यंत्र संख्या ४१
प्रहहरण यन्त्र
ज.
अ
आ
मनवर कारपतुर्दशपछान्पितं कूट बीजकं विलिखेत् ।
शिखिवायुमण्डलस्थं सनामखरताडपत्रगतम् ।। २४ ।। भा० टी०-एक खुरदड़े ताद पत्र पर नाम सहित दम्ल्यू बीजको चौदह कलामों (ल और ऋके बिना सोलह स्मरों) के अंदर लिखकर वाहिर अग्निमण्डल और वायुमण्डल बनावे ।
मार्तण्डस्नुग्दुग्धत्रिष्टुकडयमन्धचर्पपसद्मभवघूमैः । आलिप्यळलाटस्थं प्रदिणां कुरुते ग्रहावेशम् ।। २५ ॥
Page #110
--------------------------------------------------------------------------
________________
भैरब पद्मावती कल्प
प्रकार
९० ]
भा० टी० - इस यन्त्रको आकके दूब, थूहरके दूध, त्रिकटु ( खोंठ पीपल, काली मिरच), अमगंध और गृहधूमसे बनाकर इसे पकड़े हुयेके मस्तक पर रखने से ग्रह दूर हो जाते हैं । धनदर्शक दीपक
कुनटीगन्धताळकचूर्ण कृत्वा खितार्कतूलेन ।
संवेष्ट्य पद्मनालकसूत्रेग च बर्तिरि कार्या ।। २६ ।। भा० टी० - मनःशिला, गन्धक और हरितालके चूर्ण को सफेद खाकी रुई और कमल दण्डोके सूतसे लपेटकर बत्ती बनावे | खा कद्भुर्तेलभाव्या तया प्रदीप विबोधयेन्मन्त्री | यत्राधोमुखमगमद्दशे पस्तत्रास्ति वसुराशिः ॥ २७ ॥
भा० टी० - मन्त्रो उस सत्तीको कगनी के तेल में भिगोकर दीपक जलावे | वह दीपक जहा नीचेको मुखबाला हो जावे वहीं धनकी राशि जाननी चाहिये ।
पिनयादिप्रज्वलितज्योतिदिशायां महाभोऽन्तपदम् । प्रपठन्मनसा मन्त्रं प्रदोषमालोकयेन्मन्त्रो ॥ २८ ॥ भा० टी० - मत्री 'ॐ प्रस्य द्वितज्योति दिशायां स्वाहा' इस मन्त्रको मनमें पढ़ता हुआ दोपकड़ी बत्तीको घोड़ेके सुम या छुरी पर रखकर देखे |
गणितका निमित्त प्रायोर्वीशन दीनवप्रहनचव्याधिप्रसूनाक्षरा
येकीकृत्य नखान्वितं विगुणित तिथ्यापुनर्भाजितम् । ब्रूयादुद्धरिताच्छुभाशुभफल वैषम्यसाम्ये सुधीरेतत्तथ्यमिहोदितं मुनिवरैर्भव्याजधर्माशुभिः ॥ २९ ॥ भा० टोट- प्रायः चक्रवर्तियों, महानदियों, नवग्रहों, पर्वतों, रोगों और पुष्पों में से एकर के अक्षरोंको गिनकर जोड़े। उस
C
Page #111
--------------------------------------------------------------------------
________________
भैरव पजाती कल्प
[ ९१
योगफलमें नख (वीस) को जोड़कर तीनसे गुणा दे और गुणनफलको पन्द्रहका भाग दे। याद शेषमें सम अक्षर हो तो बिरुद्ध फल और निषम अंक हो तो शुभ फळ काहना चाहिये । यह प्रयोग भव्यरूपी कसलोंको - सूर्यके लामान खिलाने वाले उत्तमर मुनियोंने कहा है। यंत्र संख्या ४२
युद्ध में अर्द्धन्दुत्रिशूब यन्त्र अर्द्धन्दुरेखाग्रगतं त्रिशूलं मध्ये च लम्यक् प्रबिलिख्य धीमान् । ऋक्षेऽमवास्या प्रतिपदिने तु यस्मिन्मृगाको व्यवतिष्ठतेऽसौ ॥ ३०॥
-TR
जीर पीर अभागस्य और अतिपद मोग में दिम चन्दमा तमाम श्रेतोपत्र मिन लिरियत प्रकार से कालिंयाजाने
Page #112
--------------------------------------------------------------------------
________________
९२]
ॐ भैरह पनाती इस
यंत्र संख्या ४३-युद्ध में अद्धेन्दुत्रिशूल चक्र
RUTI
MANORORAKHAND
mom
LOLLL
चिनिया
भा० ट ०-एक भई पन्द्राकार रेस.के ऊपर तीन त्रिशूल बनाकर उनमें भली प्रकारसे सत्ताइसों नक्षत्र इस प्रकार लिखें कि अमावस्या और प्रतिपदळे योगके दिन चन्द्रमा जिस नक्षत्र में हो। स्कृत्वा तदादि विगणप्य युद्धे विद्यास्त्रिशूलाग्रगतेषु मृत्युम् । मार्तण्हसंख्येषु जयं च तेषु पराजयं षटसु बहिस्थितेषु ॥३१॥
मा. 80-उको निम्नलिखित यन्त्रमें १ के स्थान पर लिखकर उससे आगेके नक्षत्रों के अंस क्रमसे लिस दे।।
मा० टी-युद्धको जाते हुये मनुष्यका जन्म नक्षत्र इनमें से जिस स्थानपर हो उससे फल मानना चाहिये। यदि जन्म
Page #113
--------------------------------------------------------------------------
________________
भैरव पद्मावती प
नक्षत्र त्रिशूलों के अन्दर पड़े यो मृत्यु हो । यदि वह नक्षत्र मध्यके बाहर नक्षत्रों में से कोई हो तो विजय हो, अथवा वह बाहिर अर्थात् बर्द्धचन्द्राकार रेखाके बाहिर छह नक्षत्रों से किसी स्थान पर पड़े तो पराजय हो । गर्भ में पुत्र है या पुत्री
९३
दिशि विदिशि तदुमयान्तरवर्तिभ्यां दिशतु पृच्छके मन्त्री | क्रमशो बाल पाठ नपुंसकं पूर्णगर्भिण्याः || ३२ ॥
भा० टी० - यदि मन्त्री कोई पुरुष किसी पूर्ण समयबाली गर्मिणीकी भावी सन्तानका फल पूछने आवे तो यदि वह पूछनेवाला दिशामें खड़ा हो तो पुत्र अथवा यदि वह निदिशा में खड़ा हो तो पुत्री धोर यदि वह दोनोंके मध्य में हो तो नपुंसक सन्तान फल बतावे ।
स्त्री अथवा पुरुष किसको मृत्यु होगी वर्णमात्रांश्च दम्पत्योरेकीकृत्य त्रिभाजित न् । शून्यैकेन मृतिं पुत्रो नार्याद्वपङ्केन निर्दिशेत् ॥ ३३ ॥ सा० टी० -- स्त्री और पुरुष के नामोंमेंके व्यंजन और स्वरोंको प्रथकू२ लिखकर उनको गिनकर तीनका भाग दे । यदि शेष शून्य अथवा एक हो तो पुरुषको मृत्यु अथथा यदि शेष दो बचे तो खोकी मृत्यु बतढावे |
इति उभयभाषा कविशेखर श्री मल्लिषेणसूरि विरचित भैरव - पद्मावती कल्पकी पंडिता कळावती देवी सरस्वती (धर्मपत्नी कान्यसाहित्य - तीर्थाचार्य प्राच्यविद्यावारिधि श्री चन्द्रशेखर शास्त्री ) कृत भाषा टीकामें निमित्ताधिकार' नामका अष्टम परिच्छेद समाप्त ॥ ८ ॥
C
Page #114
--------------------------------------------------------------------------
________________
९४]
। भैरष पभावती कल्प
नवम परिच्छेद (तन्त्राधिकार)
मोइन तिलक लगङ्गभङ्कमोशीरनागकेशरराजिनाः । एडामनः शिलाकुष्ठतगरोत्पलरोचनाः ।। १ ।। भा० टी०- लवंग, केशर, चन्दन, नागकेशर, सफेद सों, इलायची, मनशिल, कूठ, तगर, सफेद कमल, गोरोचन,
श्रीखण्ड तुलसी, पिका पद्मकं कुटजान्वितम् ।
सर्व समानमादाय नक्षत्रे पुष्यनामनि ॥२॥ भा० टी०-लाल चन्दन, तुलसी, पिका (गन्ध द्रव्य ), पन्नाखा और कुटजको पुण्य नक्षत्र में पराबर २ लाकर,
कन्यया पेषयेत्सर्व हेममूतेन बारिणा। कुरु चन्द्रोदये जाते तिलक जनमोहनम् ॥ ३ ॥ भा० टी०-सवको धतूरेके रपमें कुमारी कन्यासे पिसवा कर उसका चन्द्रोदय होने पर तिलक करनेसे ससार मोहित हो जाता है।
स्त्रीवश्य पान यहि शिखा खितगुप्ता गोरम्भा भानुकीटकस्य मलम् । निजपनमलोपेतं चूर्ण बनितां वशीकुरुते ॥ ४ ॥ भा० टी०-मयूरशिखा, सफेद गुजा, गोरंगा (गोभी), आकका पत्ता, कीटकका मठ और भपने '-पांचों मलों का चूर्ण सीको वशमें करता है। -
Page #115
--------------------------------------------------------------------------
________________
भैरव पद्मावती कल्प
[९५
. (फान, बांस, दांत जोर जीभ मट तथा वीर्य को अपने पांघों मन करते है।)
सीव गुटिका करवीरमुजवाझीधारिदण्णीन्द्रयारुगी
गोबन्धिनीपललानां विधाय बटिका बहुः ।। ५ ॥ भा० टो०-लाल कनेर, गुजंगाक्षि जटा ब्रह्मदण्डी, इन्द्रायन, गोबन्धनी, (अधोपुष्पी या प्रियंगु), बजावती के चूर्णकी गोलियां बनावे।
कटिकामिः समं क्षिप्त्वा लवणं शुभभाजने । पक्स्पास्वसूत्रतो दद्यात्वाचं स्त्रीजनमोहनम् ।। ६॥ भा० टी०-उन गोलियोंको वरावर नमक सहित एक वर्तनमें राकर अपने मूत्रमें पकाये । इन गोलियों को भोजन आदिके साथ खिगनेसे स्त्री वशमें होती है।
वश्य चूर्ण मृतमुजगवदनमध्ये उन्नीरकांस निधाय सितगुज्जाम् । रुद्रजरामम्मिश्रामाकृष्य दिनत्रयं यावत् ।। ७ ।। भा० टी०-मृत सर्पके मुखमें उज्जरिका (लज्जालु,) सफेदगुजा और उद्रजटाको रखगर तीन दिन पश्चात् निकाले ।
जागठिकायाः कन्दे गोमयलिप्ते परिक्षिपेच्चूर्णम् । परिभाव्य शुनिपयसा स्वमलैः पञ्चाङ्गसम्भूतैः ।। ८॥ भा० टी. उस चूर्णको काठी कुत्तीके दूध और अपने पांचों मों में भाषित करके गोबरसे छिपे हुये कलिहारी कन्दमें राले।
पक्त्वा चूर्णमिदं पश्चाज्जगद्वश्यकरं परम् । दद्यात्साद्यानपानेषु मी'मोश्च परस्परम् ॥ ९॥. .
Page #116
--------------------------------------------------------------------------
________________
९६]
भैरव पद्मावती कल्प
भा० टी०- इस चूर्णको पकाकर यदि सो पुरुषको और पुरुष स्त्रीको खाने पीने आदिमें देवे तो संसारभर वशमें, हो जाता है।
पञ्चाङ्ग मल
नेत्रश्रोतृमल शुक्र दन्तजिह्वा मल तथा । वश्यकर्मणि मन्त्रज्ञः पश्चाङ्गमलमुच्यते ॥ १०॥ भा० टी-आंख तथा कानका मल, वीर्य दांत और जीभके मैलोंको मंत्र शास्त्रियोंने वशीकरण कर्ममें पञ्चाङ्गमल कहा है।
वश्य दीपक पञ्चपयस्तरुपयस्ता पोतक्यण्डकरसेन परिभाव्या। तिळतैलदीपवर्तित्रिभुवनजनमोहकृद्भवति ॥ ११ ॥ भा० टी०-बड़, गूळा, पीपल, पिलखन और अजीरके दूध तथा पद्धकी (पोतकी ) के अडेले रघमें वन कपात, आक, कमलसूत्र, संभलकी रुई और पटषन (सन) की बनी हुई (पचसूत्रवजि) बत्तीको भानना देकर काले तिलोंका दीपक जलानेसे तीनों लोक बशमें हो जाते हैं।
__वशीकरण प्रयोग विषमुष्टिकन कहलिनीपिशाचिकाचूर्णमम्बुदेहभवम् ।
उन्मत्तकमाण्डगतं क्रयुकफल तद्वशं कुरुते ॥ १२ ।। भा० टी०-पोस्त (विषमुष्टि), कनक (काला धतूरा), हलिनी (कलिहारी), पिशाचिका (छोटो जटामांसी) को अपने मूत्रमें मिलाकर उन्मत्तक (सफेद धतूरे.).के बर्तन में सुपारी सहित रखनेसे वशीकरण होता है।
Page #117
--------------------------------------------------------------------------
________________
ॐ भैरव पद्मावती कल्प
[ ९७
स्त्रीवश्यमदनक्रमुक क्रमुकं फणिमुखनिहितं तस्मादिवसत्रयेण संगृह्य। कनकविषमुष्टिहलिनी चूर्णः प्रत्येकशः क्षिप्त्या ॥ १३ ॥
भा. टी.-सर्पके मुख में तीन दिन तक रखी हुई सुपारीको काले धंतूरेकी जड़के चूर्ण, विषमुष्टि (विषडोडिका ) के चूर्ण और हलिनी (विशल्या कन्द ) के चूर्णके साथ पृथक् २ पोलकर,
खरसुरगशुनिक्षीरैः क्रमशः परिभान्य योजयेत्वाद्ये ।
अवलाजनयशकरणं मदनक्रमुक समुदिष्टम् ॥ १४ ॥ भा० टी०-उसको क्रमशः गधी, घोड़ी और कुतियाके दूधमें भावित करे। यह मदन क्रमुक स्त्रियोंको वशमें करता है।
वश्य काजल पुत्रञ्जारी कुंकुमशरपुवामोहिनीशमीकुष्ठम् ।
गोरोचनाहिकेशरतगरउदन्ती च कपूरम् ।। १५ ।। भा० टी०-पुत्रजारो, केशर, सरफोंका, मोहिनी, शमी, कूठ, गोरोचन, नागकेशर, तगर, रुदन्तो और कपूर,
कृत्वैतेषां चूर्ण पावकमध्ये ततः परिक्षिप्य । पङ्कअभपतन्तुवृता बर्तिः कार्या पुनस्तेन ॥ १६ ॥
भा० टी०-इन सबका चूर्ण करके इनको अरुक्तश्के पटलमें सिर और कमर सूत्रसे उपेटकर इनकी बत्ती बनावें।
भातकिकृषभवपयवा त्रिवर्णयोषास्तनक्षीरैः। परिभान्य ततः कपिठातेन परिभाषयेदीपम् ॥ १७ ॥
Page #118
--------------------------------------------------------------------------
________________
९८]
भैरव पक्षापती कल्प।
भा० टी०-फिर उस बत्तीको क्रमशः पांच कारुकी, ब्राह्मणो, क्षत्रियाणी और वैश्य लोके दूधमें भावित करके कपिला गौ के पीसे दीपक जगावे।
उभयग्रहणे दीपोत्सवे च नमखर्परेऽञ्जनं दार्यम् । गोमयपिलिप्तभूम्यां स्थित्वा मन्त्राभिषिक्तायाम् ॥ १८ ।। भा० टी०-फिर सूर्यप्रहण, चन्द्रप्रहण या दीपमालिकाको गोवरसे लिपी हुई तथा निम्नलिखित मन्त्रसे अभिषेक की हुई पृथिवी पर बैठकर नवीन वरपर स्याही बनावे ।
पृथिवीको साफ करनेका मन्त्र
ॐ भूमू मिदेवते सिष्ठतिष्ठ ठः ठः । निम्नलिखित मन्त्रसे स्वपरको अभिमन्त्रित करे । ॐ ऐन्द्रदेवते कजल गृण्ह २ स्वाहा ।
निम्नलिखित मन्त्रसे काजल पाडे ॐ नमो भगवते चन्द्रप्रभाय चन्द्रेन्द्रमहिताय नयन मनोहराय हारिणि २ सर्वजनवश्यं कुरु २ स्वाहा ।
निम्नलिखित मन्त्रसे काजल मांखों में लगावे
ॐ नमो भूतभावनाय समाहिताय कामाय रामाय ॐ चुल २ गुल २ नील भ्रमरि २ नयन मोहिनी नमः ।
कजबरश्चितनयनां दृष्ट्वा तां शयतीति मदनोऽपि ।
नरमप्यधितनेत्रं भूपाथा यान्ति तस्य वशम् ।। १९ ।। मा० 'टी.-इस काजरको नेत्रोंमें लगाई हुई स्त्रीको देखकर
Page #119
--------------------------------------------------------------------------
________________
भैरव पद्मावती कस्प।
[९९
कामदेव भी वशमें हो जाता है। इस काजलके नेत्रवाले पुरुषके भी राजा आदि वशमें हो जाते हैं।
पिशाची पान विषमुष्टिकनकमूल रालाक्षतबारिणा ततः पिष्टम् ।
तद्रसभाक्तिपत्रं पिशाचयत्युदरमध्यगतम् ।। २० ।। भा० टी०-महानिम्ब (विषदौड़ी) और धतूरेकी जड़को कंगुनीके चावलोंके पानीके साथ पीसकर उस रसमें भावित किया हुआ पान पेट में जाने पर पुरुष या स्त्रीको पिशाच बना देता है।
शत्रुभयकरण काजल चिक्कणिकेप्सितरूपा पिशाचिका साचितामषिमथिते ।
नृकपाले मातृप्रहे काननकार्पासकृतवा ॥ २१ ॥ भा० टी०- चिक्कणिका (सुपारी) मोम और कोंचको पीसकर उनको जगली कपासमें मिलाकर वत्ती बनावे। उस बत्तीसे सप्त मातृकाके ग्रहोंमें गीली चिताकी स्याहीसे मथे हुये मनुष्यके कपालपर,
दार्य कृष्णाष्टम्यामञ्जनमेतन नहाधृतोद्धनम् । तेन त्रिशूलमञ्जनमपि कुर्यादङ्कभीत्यर्थम् ।। २२ ।। भा० टी०-इस महाधृतसे कृष्णपक्षकी अष्टमी अथवा चतुदशोको मञ्जन बनावे । इस अजनको आंखोंमें डालकर उसके शत्रुको भय उत्पन्न करने के लिये मस्तक पर त्रिशूलका चिह्न बनावे ।
काजल पाड़नेका मन्त्र "ॐ नमो भगवति हिडिम्बवासिनि 'अल्लमांसप्रिये नहयल
Page #120
--------------------------------------------------------------------------
________________
१००]
2 भैरव पद्मावती कल्प
मडलय इछिये तुहरणमंते पहरणदुत्थे आयामंडि पायालमडि सिद्धमंडि जोहणिमंडि सब मुहम डि कन्जलं पडउ स्वाहा। , इस काजलको ईशानकोणको ओर मुख करके पाड़े।
अदृश्य गुटिका चितवह्निदग्धभूतद्रुमयमशाखामर्षि सभाहृत्य । '
अकोलतैलसूतकृष्णपिडाली जरायुश्च ।। २३ ।। भा० टी०-चिताकी अग्निसे जले हुये बहेड़ेके वृक्षकी दक्षिण दिशाकी स्याहीको लेकर उसको अझोलके तेल, पारदरस और काली विल्लोकी जरायु सहित,
धूकनयनाम्बुमर्दितगुटिकां धृत्वा त्रिलोह संमठिताम् । कृत्वा तामात्ममुखे पुरुषोऽदृशत्वमायाति ॥ २४ ॥ भा० टी०-उल्लूकी आंखोंके पानी में मळफर गोली बनावे। उसको त्रिलोहके साथ सोलह अग्नि देकर अपने मुखमें रक्खे तो अदृश्य हो जावे।
वीर्यस्तंभक गुटिका सितशरपु ख मूल हत्वा सितकोकिलाक्षवीजञ्च ।
बनवसलारसपिष्टं वीर्यस्तम्भे मुखे संस्थाम् ।। २५ ॥ भा० टी०-सफेद सरफोंकेकी जड़ और सफेद कोकिलाक्षके वीजोंको जंगली पोदीनेके रसमें पीसकर गोली बनाकर मुखमें रखे तो बीर्य स्तम्भन होता है।
वीर्यस्तम्भक अस्थि कृष्णवषदंशजंघायाः शल्यखण्डमादाय । - पद कटिप्रदेशे वीर्यस्तम्भं नृणां कुरुते ।। २६ ।। -
Page #121
--------------------------------------------------------------------------
________________
है भैरव पद्मावती कल्प
भा० टी०-काले बिलावकी दाहिनी जांघ की हड्डो लेकर कमरमें बांधनेसे वीर्य स्तम्भन होता है।
वीर्यस्तम्भक दीपक कपिलाघृतेन बोधितदीपः सुरगोपचूर्णसम्मिलितः। स्तंभयति पुरुषबीय रत्यारम्भे निशास्त्रमये ॥ २७ ॥ भा० टी०-कपिला गौके घीसे जलाया हुआ और इन्द्र- ' गोपके चूर्णखे युक्त दीपक रानिमें रतिके समय पुरुषके वीर्यका स्तम्भन करता है।
द्रावण लेप टंकणपिप्पलिकामासूरणकपूरभातुलिंगरसैः ।
कृत्वात्मांगुलिलेपं कुरुते स्त्रीणां भगद्रावम् ।। २८ ।। भा० टी०-सुहागा, पोपल, जसीचन्द, कपूर और बिजौरेके रससे अपनी अगुठीको लेप करनेसे स्त्रियों का भग द्राव होता है।
द्यूत तथा वादविजय मूल मूल श्वेतापमागस्य कुवेरदिशि सस्थितम् ।
उत्तरात्रितये ग्राह्यं शोषस्थं द्यूतवादजिद ।। २९ ।। भा० टी०-सफेद चिरचिटेकी जड़को उत्तर दिशामेंसे उत्तरफाल्गुणि, उत्तराषाढ़ या उत्तराभाद्रपद नक्षत्रमें उखाड़ कर शिर पर रखे तो द्यूत और बादमें विजय पावे।
रतिदायक लेप अग्न्या वर्तितनागे हरवीर्य निक्षिपेत्ततो द्विगुणम् । मुनिकनकनागसर्पज्योतिष्मत्यतसिभ्यां च ॥ ३०॥ . .
Page #122
--------------------------------------------------------------------------
________________
ROIN
१०२]
है भैरव पद्मावती कल्प
भा० टी०-अग्निसे जलाये हुये नागमें उसका दुगना पारद रस डालकर उसको अगम्त्य, काले धतूरे, नागदमन और मालकंगनी,
डिकन मर्दयित्वा गणिकार्या मदन वलयकं कृत्षा।
रतिसमये पनितानां रतिदर्पविनाशनं कुरुते ॥ ३१ ॥ भा० टो०-और कनेरके रसोंके साथ मल कर लिंगपर लेप करनेसे रतिकालमें मद नष्ट हो जाता है।
द्रावण जेप-(द्वितीय) व्याघ्रीवृहती फरससूरणकण्डूतिवर्णकपत्राम्बु ।
कपिलकच्छुचवल्लो पिप्पलिकामाब्लिकाचूर्णम् ।। ३२ ।। भा० टी०-व्याघ्रो और वृहतीके फोका रस सफेद जमीकन्द कहति (अग्निक), चणकके पत्तोंका रस, कौंच, वज्रवेल, पीपल और मान्छिकाके चूर्ण को लेकर,
अग्न्या वर्तितनाग नववार भावयेदिदं द्रव्यैः।। स्मरवलयं कृत्वैवं पनितानां द्रावणं कुरुते ।। ३३ ।। भा० टी०-इन द्रव्योंमें अग्निसे जलाये हुये नागको नौ पार भावना देकर यदि लिङ्ग पर लेप करे तो त्रियां द्रवित होती हैं।
द्रावण जलूका भानुस्वरजिनसङ्ख्याप्रमाणसूतकग्रहीतदीनारान् ।
अकोल राजवृक्ष कुमारीरसशोधन कुर्यात् ॥ ३४ ॥ भा० टी०-बारह, सोलह और २४ दोनार (आधा तोला) अर्थात् ६ तोले ८ तोले और १२ तोले प्रमाण पारद रसको पृथक्२ लेकर उसे अंकोलके रस, राज वृक्ष (अमलतास) के रस तथा घी कुपारके रसमें शोधन करे।
Page #123
--------------------------------------------------------------------------
________________
भैरब पद्मावती कल्प
शशिरेखा खर कर्णी कोकिळ नयनाप मार्ग कनकानाम् । चूर्णे सविंशतिदिनानि परिमयेत्सूतम् ॥ ३५ ॥
[- १०३
भा० टी० - फिर उस शोधे हुये पारद रसको शशिरेखा (गिलोय) स्वकर्णी, कोकिलाक्षवीज, चिरचिटेके बीज और काले धतूरे के बीजों के चूर्णके साथ २१ दिन तक खरल करे । निशायां कांजिकं धूपं दमा योनौ प्रवेशयेत् ।
बालां मध्यां गतप्रायां योषां विज्ञाय तत्क्रमात् ।। ३६ ।। भा० टी० - उसको रात्रिमें कांजी की धूप देकर योनिसें डाल दे । बाला के लिये बारह गद्याण प्रमाण, मध्यमाके लिये सोलह गद्यान प्रमाण और प्रौढ़ा (ये २४ गद्याण प्रमाण वाली लेवे नीरसतां विभ्राणां योषां रतिसंगरे महोन्मताम् । द्रावयति तादृशीमप्येष जलूका प्रयोगस्तु ॥ ३७ ॥
भा० टी० - इस जलुकाका प्रयोग रति कालमें सदा नीरस रहने वाली और महान् उन्मत्त खोको भी द्रावित कर देता है । शाकनीहरण तिलक
सोमाशाश्रितसूल कपिकच्छोर्गेजलेन सम्पिष्टम् ।
निजतिलकप्रतिबिंब सम्पश्यति शाकिनी शीर्षे ॥ ३८ ॥
भा० टी० - उत्तर दिशा में उत्पन्न हुई कौच की जढ़को गोमूत्र में पीसकर उसका मस्तकपर तिलक करनेसे शाकिनी उसमें अपना प्रतिबिंब देखती है |
दिव्य स्तंभक चूर्ण
आदित्याक्षत दिव्य स्तम्भविधौ मरिचपिपलीकामम् । खर्पर दिव्यस्तम्भे पुटशुन्ठीचूर्ण व भक्षयेद्धोमान् ॥ ३९ ॥ भा० टी० - बुद्धिमान् पुरुष दिव्य स्तम्भनके विधानमें आदित्य (आक) और अक्षत अथवा मिरघ, पीपल, काम (ऊषण) का
Page #124
--------------------------------------------------------------------------
________________
भैरब पद्मावती कल्प
१०४ ]
ANDE
सेवन करे | वही खर्पर दिव्यके स्तम्भन में सोंठके चूर्णको खाचे । अग्नि तथा तुलास्तम्भन
रिका भेकमा करप्ति सम्भनं करोत्यग्नेः । वाखनिरोधेन तुलादिव्यस्तम्भो भवत्येव ॥ ४० ॥ भा० टी० - उज्जरिका और मेंढ़ककी चर्बी को हाथपर लगा लेनेसे अमिका स्तम्भन और श्वास निरोधसे तुला दिव्यका स्तभन होता है।
अच्छा रोजगार चलाना
निगुण्डिका व सिद्धार्थो गृहे द्वारेऽदबा पणे ।
द्ध पुष्यायोगेन जायते क्रयविक्रयम् ॥ ४१ ॥
भा० टी० – यदि पुष्य नक्षत्र में निर्गुण्डी और सफेद सरसों घरके द्वार अथवा दूकान के द्वारपर रक्खो जावे तो अच्छा क्रय विक्रय होता है ।
गर्भ निवारण
पिवति प्रसूनसमये जबाप्रसून विमर्ध संधिया ।
न विभर्ति सा प्रसूनं घृतेऽपि तस्या न गर्भः स्यात् ||४२ || आ० टी०—जो स्त्री कांचिका (सौमीर) के साथ जवे के फूलको मलकर ऋतुकालमें पीती है वह फिर माविले नहीं होती । यदि वह मासिक से हो भी जावे तो उनको गर्भ नहीं रहता । इति उभयभाषा कविशेखर श्रीमल्लिषेणसूरि पिरचित भैरव - पद्मावती कल्पकी पडिता कलावतीदेवी सरस्वती (धर्मपत्नी काव्यसाहित्यतीर्भाचार्य प्राच्यविद्यावारिधि श्री चन्द्रशेखर शास्त्री) कृत भाषा टीकामें " बश्य तन्त्राधिकार " नाम दशम परिच्छेद समाप्त ॥ ९ ॥
Page #125
--------------------------------------------------------------------------
________________
भैरव पनापती कल्प
[१०५
दशम परिच्छेद
(गारुडाधिकार) __गारुड़ विधाके आठ अंग सग्रहमङ्गन्यासं रक्षा स्तोभं च वक्ष्य संस्तम्भम् । विषनाशनं सघोचं खटिहाफणिदशन दशश्च ॥१॥ गारुड़ विद्याके बाठ अग होते हैं।
भा० टी-(१) संग्रह (२) बंगन्यास (३) रक्षा (४) स्तोभ (५) स्तंभन (६) विषनाशन (७) सचोद्य (८) खटिकाफणिदशन ।
भा० टो०-ड हुये को जीवित या मृत जाननेके उपायको संग्रह कहते हैं। शरीरके अययनोंमें बीजों की स्थापना करनेको अंगन्यास करते हैं। शरीर की रक्षा करनेको रक्षा कहते हैं। दुष्ट पुरुषके जग नेको स्तोभ और विष न बढ़ने देने को स्तंभन कहते है। विष दूर करनेको विषनाशन कहते हैं। सर्पले क्रीड़ा करनेको सचोध और खटिकाके नागमें काटने की शक्ति भरनेको खटिकाफणि दशन कहते हैं। (१) संग्रह विधान
ममविषमाक्षरभाषिणि शशिदिनौ घ लामानौ । दष्टस्य जीवितव्य तद्विपरीते मृति विद्य त् ।। २ ।। भा० टी०-यदि सपके काटनेली' खबर लानेवाला दूत चद्रस्वरमें सम अक्षर कहे तो समझना चाहिये कि सर्पदष्ट पुरुष बच जावेगा। अथवा यदि दृत सूर्यस्वर में विषम अक्षर कहे तो उसकी मृत्यु समझनी चाहिये ।
Page #126
--------------------------------------------------------------------------
________________
१०६]
से भैरव पद्मावती कल्प
दूतमुखोस्थितवर्णान्द्विगुणो कृत्व विभिहरेद्भागम् ।
शून्येनोद्धरितेन च मृतजीवितमादिशेत्प्राज्ञः ॥ ३॥ भा० टी०-बुद्धिमान पुरुष दूतके मुक्से निकले हुये अक्षरोंको गिनकर उनको दुगना करके तीनका भाग दे। यदि शेष शून्य हो तो मृत्यु अन्यथा जीवित समझना चाहिये।
हां वं क्षः मन्त्र मंत्रिततोयेनोद्दषति यस्य गात्रं चेत् । स च जीवत्यथवाझिम्पन्दनतोनान्यथा दष्टः ॥ १॥ भा० टी०-'हां वं क्षः इस मंत्रसे जल पढ़कर दृष्ट पुरुषके ऊपर डालनेसे यदि वह कांपने लगे अथवा नेत्र हिलाने लगे तो उसको जीसित अन्यथा मृतक समझना चाहिये।
इति संग्रह परिच्छेद । (२) अंगन्यास विधान
झिप ॐ स्थाहा पोजानि चिन्यसेत्पादना िहन्मुखशोर्षे ।
पीतसितकाञ्चनासित मुरचापनिभानि परिपाट्या ॥५॥ भा० टी०-'क्षिप ॐ स्वाहा' इन पांच बीजोंको क्रमसे निम्न प्रकारसे अंगोंमें स्थापन करे
'क्षि' वीजको पीतवर्णका दोनों पैरोंमें।
'' वीजको श्वेतवर्णका नाभिमें । 'ॐ' वीजो कांचन वर्णका हृदयमें । 'स्वा' बोजको कृष्ण वर्गका मुखमें । 'हा' वीजको इन्द्र धनुषके वर्णका शिरमें स्भापित करे।
यह अंग न्यास क्रम है।
Page #127
--------------------------------------------------------------------------
________________
६ भैरव पद्मावती कल्प
१०७
(३) रक्षा विधान
पद्मं चतुर्दलोपेतं भूतान्तं नामसंयुतम् ।
दलेषु शेषभूतानि भायया परिवेष्टितम् ॥ ६॥ भा० टी०-एक चतुर्दल कमलकी कणिकामें नाम सहित 'हा' लिखकर उसके चारों दलोंमें ' क्षिप ॐ स्वा' बीज लिखकर हीसे वेष्ठित और क्रोंखे निरोध करे। इस यन्त्रको चन्दनसे लिखकर दष्ट पुरुषके गलेमें बांध दे।
इति रक्षा निधान । (४) स्तोमन विधान
वहिजलसूमिपवनव्योमाने दह दहपचद्धयं योज्यस् । स्तोभययुगलं स्तोमं मध्यमिकाचालनाद्भभति ।। ७॥ “ॐ पक्षि स्वाहा दह २ पच स्तोभय स्तोभय "
भा० टी०-इस मन्त्रको मध्यमा उगली पर अपनेसे दुष्ट पुरुष कुछ जागने लगता है।
इति स्तोभन विधान । (५) स्तंभन विधान
आद्यन्ते भूवीज मध्ये जलवह्निमारुतं योज्यम् । स्तभय युगल स्तम्भो वामकरांगुष्टचालनतः ॥ ८॥
" क्षिप में स्वा स्तम्भय स्तम्भय क्षि।" भा० टो०-इस मन्त्रको चांये हाथके अंगूठे पर जपनेसे विपका स्तम्भन होता है।
इति स्तम्भन विधान।
Page #128
--------------------------------------------------------------------------
________________
२०८]
है भैरव पद्मावती प्रस
(६) विषनाशन विधान
जलभूमिवह्निमारुतगगनैः सम्माषयद्वयोपेतैः । भवति च विषापहारस्वर्जन्या पास्नादचिरात् ।। ९॥
" पक्षि ॐ स्वाहा सम्माबय परसावय ।" भा० टी०-इस मन्त्रको बायें हापकी तर्जनी द्वारा चलानेसे विष शीघ्र ही दूर हो जाता है।
इति मिषनाशन विधान । (७) सचोद्य विधानमें
विषसंक्रमण मन्त्र मरुदग्निवारिधात्रीव्योमपद संक्रमवीन द्वितीयम् । चालनयाऽनामिच्या मितरां मिषसंक्रमो भवति ॥ १० ॥ __“ स्वा ॐ पक्षि हा सक्रम २'व्रज ब्रज।" भा० टी०-इस मन्त्रको अनामिका द्वारा चलानेसे विष संक्रमण हो जाता है।
नागावेशन मन्त्र व्योमजलवह्निपरन क्षितियुतमन्त्रागपत्यथावेशः । सक्षिपहः पक्षिपदः पठनेन कनिष्ठिमाभिचालनतः ।।१।। ___ "हा पॐ स्वाक्षि संक्षिपहः पक्षिपहः"
भा० टी०-इम मन्त्रका बाए हाथफी फनिष्ठा द्वारा जपनेसे पुरुषके शरीर में नाग बावेश करता है।
विषनाशन मन्त्र प्रथम कर्णजाप्येन भेरुण्हा निर्विषं कुरुते नरम् । विद्यासुवर्णरेखाऽपि दुष्टतोयामिषेमतः ।। १२ ।।
Page #129
--------------------------------------------------------------------------
________________
खें भैरव पद्मावती कल्प
[१०९
भा० टी०-निम्नलिखित मेरुण्डादेवीके मन्त्रको दष्ट पुरुषके कालने जपने और उपको निम्नलिखित सुवर्ण रेखा मन्त्रके जलसे स्नान करानेले दष्ट पुरुषका विष उतर जाता है।
भेरुण्डादेवीका मन्त्र ॐ एहि२ मारते भेरुण्डे विनाभरियकरण्डे तन्तु मन्तु आधेसह हुंकारेण शिषणासइ थावरजंगमशित्तिममगजू ह्रीं देवदत्तस्य विष हर हर ॐ हुं फट्।
सुवर्णरेखा मन्त्र "ॐ सुवर्णरेखे कुकुट विग्रहरूपिणि स्वाहा ।"
विषनाशन मन्त्र द्वितीय भूजलमरुममोऽक्षरमन्त्रेण घटाम्बुमंनितं कृत्वा । पादादिविहिवधारानिपातनाद्भवति विषनाशः ।। १३ ॥
"क्षिप स्वाहा ।" भा० टो०-इन मंत्रसे घड़ेके जळको मंत्रित करके सिरसे पैर तक डालनेसे विष नष्ट होता है।
आठ प्रकारके नागोंका वर्णन अनन्तो वासुकिस्तक्षः कर्कोटः षद्मसंज्ञकः । महासरोजनामा घ शंखपाळस्तथा कुलिः ॥ १४ ॥ भा० टी०-अनन्त, वासुकि, तक्षक, कर्कोट, पद्म, महापद्म, शंखपाल और कुलिक यह नागोंके माठ भेद होते हैं।
क्षत्रियकुलसम्मूतो वासुकिशंखौ धराविषौ रक्कौ । कर्मोटकपद्मावपि शूद्रौ कृष्णौ च पारुणीय गरौ ।। १५ ।। भा० टी०-वासुकि और शंखपाल नाग क्षत्रिय कुलोत्पा,
Page #130
--------------------------------------------------------------------------
________________
११०]
भैरव पद्मावती कल्पी
रत्तवर्ण और पृथ्वीके वडे तेज विषवाले होते हैं। करकोटक
ओर पद्मनाग शूद्रकुलोत्पा, कृष्णवर्ण और जलके हलके विषपाले . होते हैं।
विप्रावनन्तकुलिको वह्निगरौ चन्द्रकांतसकाशौ।
तक्षकमहासरोजौ वैश्यौ पीतौ मरुद्गरलौ ॥ १६ ।। भा० टी०-अनन्त और कुलिक नाग ब्राह्मण कुलोत्पन्न चन्द्रमाके समान उज्वल वर्णवाले और अग्निके विषवाले होते हैं। तक्षक और महापद्म वैश्य कुलोत्पन्न पीतवर्ण और वायुके विषवाले होते हैं। ( जय और विजय नाग देवकुलके होते हैं। यह माशीविश कहलाते हैं। किंतु उनके इस पृथ्वीपर न होनेसे उनका वर्णन यहां नहीं किया गया ।)
विषोंके लक्षण पार्थिव विषेण गुरुता जड़ता देहस्य सन्निपातत्वम् । लालाकण्ठनिरोधो गलिनं दन्तस्यतोयविषात् ।। १७ ॥
भा० टी०-पृथिवी विषसे शरीर भारी, जड़ और समिपातकी अवस्था हो जाती है। जलके विषसे मुखसे लार गिरती है और दांत गलने लगते हैं।
गण्डोद्धमतां दृष्टेरपाटवं भवति बह्निविषदोषात् । विच्छायतास्य शोषणामपि मारुतगरलदोषेण ।। १८ ।। भा० टी०-अग्निके विषसे गण्डस्थल फूलने लगते हैं और नेत्रोंसे भी दिखलाई नहीं देता । वायुके विषसे शरीरमें चचलता, नींद न माना और मुखशोषण होने लगता है।
विषहरण मन्त्र 1. ॐ नमो भगवत्यादि मन्त्रमष्टोत्तरशतं । ..:, पठित्वा क्रोशपटहं ताडयेदृष्ट मणिधौ ॥ १९ ।।- .
Page #131
--------------------------------------------------------------------------
________________
भैरव पन्नापती कल्प
[१११
भा० टी०-विषको दूर करने के लिये निम्न लिखित मंत्रको एकसौ आठ वार पढ़कर दष्ट पुरुषके सामने खूब बाजे बजावे ।
मन्त्रोद्धार ॐ नमो भगवती वृद्धगरुडाय सर्वविषनाशिनि छिन्द२ मिन्दर गृह२ एहि२ भगवतिविद्ये हर२ हुं फट स्वाहा ।
धृत्वार्द्धचन्द्रमुद्रां दक्षिणभागेऽह्निदंशिनः स्थित्वा ।
बदतु तव गौरिदानीं तस्करलोकेन नीतेति ।। २० ।। • भा० टी०-इसके पश्वव मंत्रो सर्पदष्ट पुरुषके दाहिनी भोर बैठकर वायें हाथके अंगूठे और तर्जनो अगलोसे अर्द्धचद्र मुद्रा बनाकर कहे 'तब गौरिदानीं तस्करलोकन नीता' अर्थात तेरी गौको अभीर चोर ले गये हैं।
तं समाहत्यपादेन याहीत्युक्त स धावति । उत्थापयति तं शीघ्रं मन्त्रसामर्थ्यमीदृशम् ।। २१ ॥
भा० टी०-फिर उस दष्ट पुरुषको पैरखे मार कर कहे 'जा भाग जा' इस मंत्रकी सामर्थ्य ऐसी है कि वह यह सुनते ही मागने लगता है।
नागाकर्षण मन्त्र नियुतजपात्संसिध्यति दशंशहोमेन फणिसमाकृष्टिः । प्रणवादिः स्वाहान्तश्चिरिचिरि शब्दादिको मंत्रः ॥२२॥ “ॐ चिरि चिरि इन्द्रवारुणि एहि२ कड२ स्वाहा ।"
भा० टी०-यह नागाकर्षण मंत्र एक लक्ष जप और दशांश होमसे सिद्ध होता है। ..., , , ... .
Page #132
--------------------------------------------------------------------------
________________
११२]
भैरव पद्मावती करूप
CAME
यत्र संख्या ४४ नागप्रेषण मन्त्र
(Akshupa
नागप्रेषणमंत्रोऽशीतिसहस्र देशांशहोमेन ।
सिध्यति जाप्येन पुनः शोणित करवीर पुष्पाणाम् ॥ २३ ॥ “ॐ नमो नागपिंशचि रक्षाक्षी शिभृकुमुखी उच्छिष्ट दीप्त तेजसे एहिर भगवति गृहर हुं फट् स्वाहा । "
यह नामको छोटेर कामोंमें बगानेका मन्त्र अस्सी सहस्र जप और बाल कनेर के फूलोंके दशांश होमसे सिद्ध होता है । बल्मीकनिकटे होम कुर्यात्त्रिमधुगन्वितम् ।
मन्त्रसिद्धौ तमाज्ञाप्य प्रेषयेदुरगेश्वरम् ॥ २४ ॥
भा० टी० - इस अनुष्ठानको धृत, मधु और दुग्ध सहित बल्मीकके पास करे | जब मंत्र सिद्ध होने पर नागं आवे तो उसे इच्छित स्थान पर भेजे ।
Page #133
--------------------------------------------------------------------------
________________
PA भैरव पद्मावती कल्प
[११३
- यंत्र संख्या ४५ सर्प निवारण यन्त्र
३
१
A
JNI
प्रेषितो हवनेनेति मा कस्यापि पुरो वदेद ।
अन्यमन्त्रेण मा गच्छ मानवं भक्षयामुकम् ॥ २५ ॥ भा० टी०-और इससे कहे 'तू इसके अतिरिक्त दूसरे मन्त्रसे मत जा और अमुक व्यक्तिका भक्षण कर।' किन्तु इस प्रकार उसको इनके द्वारा भेजनेका वृतान्त किसीसे न कहे।
दूतको गिराकर रोगीको अच्छा करना फणिदष्टशरीरान्तः स्वाहामन्त्रतो विषम् । हत्या सोमं सबदागरतं मन्त्रेण पातयेत् ॥ २६ ॥
८
Page #134
--------------------------------------------------------------------------
________________
११४]
* भैरव पावती फल्प
भा० टोc-"* स्वाहा" इस मन्त्रसे दृष्ट पुरुषके शरीरसे विषो खींघडर मसकसे अमृत चुवाता हुभा निम्नलिखित दूत मन्त्रले दूतो गिरावे। दूतमन्त्रोद्धार
“ॐ नमो भगश्त्यै पनतुम्हाय स्वाहा रक्ताक्षि कुन खि दूतं पातय २ मर २ दर २ ट ट ट हूं फट् घे घे।"
दष्टपातन और पटाच्छादन मन्त्र ईनामों पट्र मन्त्रोचारणतः पतति भोगिना दष्टः।
ॐ होमादिपदान्तो इष्टपटाच्छादनो मन्त्रः ॥ २७ ॥ भा० टी०-ई गं ॐ फट' इस मन्त्रके उच्चारणसे सर्प दष्ट पुरुप पृथिवी पर गिर जाता है। फिर
'ॐ स्वाहा 6 6 6 6 6 हुष्णां सर्व संहारय २ ॐ य ॐ ॐ गरुडाक्षि फट् ॐ फट ॐ स्वाहा ।"
इस मन्त्रसे उस गिरे हुये सर्पदष्ट पुरुषको चख ओढ़ाना चाहिये।
पवननमोझरमन्त्रेणाकृष्य च धावने ततो वस्त्रम् ।
अनुधावति तत्पृष्ठं यत्र पटः पतति तत्रासौ ।। २८ ।। भा० टो-फिर यह सर्प दष्ट पुरुष 'स्वाहा' इस मन्त्रसे बन उठाफर भागनेवाले पुरुषके पीछे भागता है और जहां कहीं वन गिरता है वहीं यह सर्पदष्ट पुरुष भी गिर जाता है।
निर्विषकरण मन्त्र ।। मन्त्रेमानेन फणिविपमुक्तो भवति जल्पितेन शनैः । अपहरति निमस्थानादशितेऽपि विष न संक्रमते.॥ २९ ॥
Page #135
--------------------------------------------------------------------------
________________
है भैरव पद्मावती कल्प
[ ११५
"ॐ नमो भगवते पार्श्व तीथ कराय हमः महाहंसः पद्महंसः शिवहसः कोहंसः हंसः पक्षि महाविषं भझि हुं फट् ।”
भा० टी०-इस मन्त्रको धोरे २ वोलनेसे सर्पका विष अपने स्थानसे इस प्रकार दूर हो जाता है कि फिर सर्पके काट लेने पर भी विष नहीं चढ़ता।
नागको साथ २ चलाना तेजोनमः सहस्त्रादिमन्त्रं प्रपठतः फणिः ।
अनुयाति ततः पृष्ठ याहोत्युक्ते निवर्तते ॥ ३० ॥ "ॐ नमः सहस्रजिव्हे कुमुदभोजिनि दीर्घकेशिनि उच्छिष्टमक्षिणि स्वाहा ।"
भा० टी०-इस मन्त्रको पढ़नेसे सांप पीछे २ चलता है और “ याहि " अर्थात् जाओ ऐसा कहनेसे चला जाता है।
सर्पक मुखको कोलनका मन्त्र ॐ ह्रीं श्रीं ग्लौं हूं थू टान्त द्वितीयेन फणिमुखस्तम्भः ।
हू vठठेति गमनं दृष्टिं हां क्षां ठठेति बन्नाति ॥३१॥ __भा० टी०-ॐ ह्रीं श्रीं ग्लौं हूं झूठः ठः” इस मन्त्रसे सर्पका मुख कीला जाता है।
___ सर्पकी गतिको कीलने का मंत्र 'हूँ शू ठः ठः" इस मंत्रसे सर्पकी गतियो फीला जाता है।
सर्पकी दृष्टिको कीलनेका मंत्र - "हां क्षां ठः ठः" इस मंत्रसे सर्पकी दृष्टिका स्तम्भन होता है।
Page #136
--------------------------------------------------------------------------
________________
११६]
१ भैरव पद्मावती कल्प
सर्पको कुण्डलाकार बनानेका मंत्र बामं सुवर्णरेखाय गडाज्ञापयत्यतः । स्वाहान्तमन्त्रमुच्चार्य कुण्डलीकरणं कुरु ॥ ३२॥ ,
ॐ सुवर्णरेखग्य गरुडाज्ञायति कुण्डलीकरणं कु०२ स्वाहा ।' यह सर्पको कुण्डलाकार बनाने का मत्र है।
सांपको घड़े घुसानेका मंत्र सप्रणवः स्वाहान्तो ठक बल बालेति संयुतं कुरुते । मन्त्रं घटप्रवेश क्षणेन नागेश्वरस्यापि ॥ ३३ ॥
__ 'ॐ ल ल ल ल ला ला कुरु स्वाहा! भा० टी०-यह मन्त्र नागोंके राजाको भी घड़ेमें घुसा देता है।
नागस्तम्भक रेखाका मंत्र 'ॐ ह्रां ह्रीं गरुडझा ठठेति तन्मुद्रया कृतां रेखाम् । मुजगो मरणावस्थो न लाते तां कदाचिदपि ।। ३४ ॥
“ॐ ह्रां ह्रीं गरुड ज्ञा ठ ठः" भा० टी०-इस मत्रसे बनाई हुई रेखाको सांप मरता हुआ भी उलंघन नहीं करता। (८) खटिकाफणिदर्शन विधान
कपिकच्छुकरसभाषितखटिका प्रणवादिनीलपरिजप्ता । लेख्यस्तयोपदेशात्खटिकासर्पः शने रे ।। ३५ ॥ भा० टी०-खड़िया मिट्टाको कौंचके रसमें भावना देकर उसको निम्नलिखित मंत्रसे मंत्रित करके उससे शनिवारको शामके उपदेशक अनुसार एक खडियाका सर्प बनावे ।
Page #137
--------------------------------------------------------------------------
________________
भैरव पद्मावती कल्प
१५७
मन्त्रोद्धार"ॐ नीलविष महाविष सर्प संक्रामिणि स्वाहा।"
यो हन्यात् तद्वक्त्र त भोगी दशति नाऽत्र सन्देहः । दृष्टा करतलदंश मूर्च्छति विषवेदनाऽऽकुलितः ।। ३६ ।। भा० टी०--जो कोई पुरुष उस खटि का सपके मुखपर मारता है वह खटिका सर्प उसीको डस लेता है । तब वह दष्ट पुरुष हाथमें डसनेके चिह्नको देखकर विषकी वेदनासे पीड़ित होकर मूच्छित हो जाता है।
फिर बुद्धिमान पुस्प उप खटिका रसपके द्वारा डटे हुये युरुषके हृदय, वण्ठ, मुख, सस्तक और शिरको क्रमश: देखे कि स्तम्भन ही है या आंखोको धोखा है। __ स्तम्भनका निश्चय हो जानेपर खटि कामें उतारे हुए सर्प पर "ॐक्षा क्षी" इस मत्रके पढ़नेसे वह दष्ट पुरुप बिषको छोड़कर भोजन कर सकता है अर्थात् निर्विष हो जाता है।
इति खटिका फणि दर्शन विधान
विषमक्षण मंत्र .. ॐ कौं प्रौं त्री ठः मन्त्रेण विष हुंकारमध्यगम् ।
जप्त्वा सूर्य दृशाऽऽलोक्य भक्षयेत्पूरकात्ततः ॥ ३७॥ भा० टी०-हथेली पर ह लिखकर उसके अन्दर स्थावर विषको रखे फिर उस विषको 'ॐ क्रौं प्रौ त्री ठः ठः' इस मंत्रसे मंत्रित करके सूर्यकी ओर देखकर पूरफ योगसे विषको खा जावे ।
विपसे शत्रुनाशन प्रतिपक्षाय दातव्यं ध्यात्वा नीलनिभं विषम् । ग्लौं क्लौं मंत्रयित्वा तु ततो घे घेति मंत्रिणा ॥ ३८ ॥
Page #138
--------------------------------------------------------------------------
________________
भैरव पद्मावती कल्प
११८ ]
H
भा० टी० - मन्त्री " ग्लौं कौं घे घे" इस मन्त्रित करके उसको नील वर्णका ध्यान करके विषनाशन तन्त्र
मन्त्र से विषको शत्रुको देवे ।
मुगन्धा घोषा वन्ध्याकटुतुम्बिका कुमारी च । त्रिकटुकुष्टेन्द्रयवा घ्नन्ति विषं नस्य पानेन ॥ ३९ ॥
भा० टी० - अगस्त्य, असगध, घोषा (तोरई), बन्ध्या (कर्कोटी), कड़वी तुम्वी, घृतकुमारी, त्रिकटु (सोठ, पीपल, काली मिरच), कूठ और इन्द्रजौको संघाने और पिलानेसे स्थावर और जंगम सभी विष नष्ट हो जाता है ।
विच्छु विषनाशन तन्त्र
द्विपमतमूतच्छत्रं रविदुग्धं श्लेष्मतरुफलोपेतम् । वृश्चिकविष सकाम वदरीतरुदण्डसयोगात् ॥ ४० ॥
भा० टी० - हाथी की लीद, छतौना, आकका दूध और बहेडेके फलको पीसकर रक्खे | और पुष्य नक्षत्र में ऊपर और नीचे कांटोवाली बेरकी सलाईको लेकर उससे इस करे, ऊपर के वांटेसे विषको उतारकर नीचे के विषको किसी औरपर चढ़ा दे ।
औषधिका लेप काटेसे विच्छूके
घर से सर्प भगाने का यन्त्र
षट्कोणभवनमध्ये कुरुकुल्लां योतिखेद्गृहे विद्याम् । तत्र न तिष्ठति नागा लिखिते नागारिबन्धेन ॥ ४१ ॥
भा० टी० - घर की देहली में एक षट्कोण यन्त्र बनाकर उसमें निम्नलिखित गरुड बन्ध मन्त्र लिखनेसे सर्प उस घर से भागा जाता है ।
Page #139
--------------------------------------------------------------------------
________________
bate the
रुः॥१
जबिज सरि
भैरव पद्मावती कल्प
इनेलवेली
8080
11:७
यंत्र संख्या ४६
गरुडवन्ध मन्त्र
शिताये: स्वाहाः॥
गार्ड पहाःस्याः शिक्षिकेच्यः स्वाधः ॥
10
MANO:
तू विश्वः स्वाला डिलमायेन्योर सर्वसाथुम्पाखाः
[१९१९
"ॐ कुरुकुल्छे हुं फट् "
शिष्यको विद्या देनेका विधान
चतुरस्रं मण्डलमविरमणीयं पञ्चवर्णचूर्णेन । प्रबिलिस्य चतुः कोणे तोयभृतान्स्मापयेत्प्रशान् ॥ ४२ ॥ भा० टी० - एक चौकोर मण्डलको श्वेत, रक्त, पीत, हरित
Page #140
--------------------------------------------------------------------------
________________
१२० ]
रय पद्मावती कल्प
और कृष्ण इन पांच रगोके चूर्णसे बनाकर उसके चारों कोनोंमें जलसे भरे हुवे कलश रखे ।
तस्योपरिविपुलतरं मण्डलमतिसुरभिपुष्पमाकीर्णम् । चन्द्रोपम तोरणघण्टाबर दर्पणोपेतम् ॥ ४३ ॥
भा० टी० - उम्र के ऊपर अत्यन्त विस्तृत मण्डल बनावे, जो सुगन्धित पुष्पोंसे भरा हुमा हो बौर चन्द्रमा के समान उज्ज्वल, ध्वजा, घण्टों और सुन्दर दर्पणोंसे युक्त हो ।
'परमेष्ठि मन्त्र प्रत्येक प्रणपपूर्व होमान्तम् । अष्टदलाम्बुजमध्ये हिमकुंकुम मजै पिलिखेत् ॥ ४४ ॥
C
भा० टी० – तन कपूर, केशर मौर चन्दनसे एक अष्ट हमल बनाकर उम्रकी वर्णिका में निम्नलिखित मन्त्रोको लिखे ।
कर्णिका के मन्त्र — ॐ अर्हद्भयः स्वाहा ।
ॐ सिद्धेभ्यः स्वाहा |
ॐ सूरिभ्यः स्वाहा ।
ॐ पाठकेभ्यः स्वाहा । ॐ सर्वस्वाधुभ्य स्वाहा ।
पूर्वाग्न्यादिषु दद्याज्जापादि जम्मादिदेवता होता: । तद्दक्षिणदिग्भागे हेममय पादुकां देव्याः || ४५ ||
भा० टी० – इस कमडके पूर्व यादि दिशाबोंके दलोंमें जया आदि देवियों और अभिकोण बादिके दलों में जम्मा आदि देवियोंको लिखकर इस कमटकी दक्षिण दिशाके भागमें देवी की स्वर्णमयी पादुका बनावे |
Page #141
--------------------------------------------------------------------------
________________
है भैरव पदारती कल्प
[ १२१
दौंके मन्त्र-पूर-ॐ जयायै स्वाहा ।
अमि-ॐ जम्भाय स्वाहा। दक्षिण-ॐ पिजयाय स्वाहा । नैऋत्य-ॐ मोहाय स्वाहा। पश्चिम-ॐ अजितायै स्वाहा । यायव्य-ॐ स्तम्भाय स्वाहा । उत्तर-ॐ अपराजितायै स्वाहा ।
ईशान-ॐ स्तंभिन्यै स्वाहा । '. म्य» गन्धनन्दुटकुसुमैनैवेधदीपधूएफलैः ।
परमेष्यन्त्रमन्त्रं भैरपद्मावती पादौ ।। ४६ ।।
'भा० टो-फिर इस परमेष्ठि यन्त्र, मन्त्र और पद्मावतीदेवीके चरणोंकी पन्दन, ममत, पुष्प, नैवेद्य, दीप, धूप, और फलोंसे पूजा करे।
परममयजनविरक्त शिष्यं जिनसमयदेवगुरुभक्तम् । कृतपख लंपारं मंस्नात मराभिमुडम ।। ४७ ।। भ.. टो० -पिर अन्य ज्ञान सौर पुरुषों के विस्त निनदेव और जैन शाल और जैन गुरमें भक्त मनेकाने शिपयको स्नान कराकर, पन तथा अलंकार पहिनाकर मण्डल के सामने लावे।
संस्नाप्य चतुः कलः महिरण्यस्तं ततोऽन्यवादे न् । .. यत्त्वा तत्म मन्वं निवेदयेतगुरुकुलीयासम् ।। ४८ ।।
मा टो-~-म शिष्य पहिले रब हुये चार शोखे
Page #142
--------------------------------------------------------------------------
________________
१२२]
में भैरव पद्मावती कल्प
स्नान कराकर अन्य वन आदि देकर गुरु क्रमसे चला माया हुआ मन्त्र दे और कहे
भवतोऽस्याभिर्दत्तो मत्रोऽय गुरुपरम्परायातः
साक्षीकृत्य हुताशनरविशशिताराम्बरा दिनणान् ।। ४९ ।। भा० टो०-'तुमको मैं यह गुरुपरम्परासे चला आया हुआ मत्र अग्नि, सूर्य, चन्द्र, नक्षत्र और साफाशकी साक्षीपूर्वक देता है।
भक्ताऽपि न दातव्यः सम्यक्तविषार्जिताय पुरुषाय । किन्तु गुरुदेवसमये भक्तिमते गुणसमेताय ॥५०॥
मा० टी०-तुम भी इसको सम्यकत्वसे रहित पुरुषको न देना। किन्तु देव, शास्त्र और गुरुमे भक्ति रखने वाले गुणी पुरुषको ही देना।
लोभादथना स्नेहाहास्यसि चेदन्यसमयभक्ताय । बालस्त्रीमुनिगोवधपापं यत्तद्भविष्यतीति ।। ५१ ।।
भा० टी०-यदि तुम लोभ या प्रेमसे अन्य मतावलम्वीको दोगे तो तुमको बालहत्या, बोहत्या, मुनिहत्या और गोहत्याका पाप लगेगा।
इत्येव श्रावयित्वा तं सनिधौ गुरुदेवयोः । मन्त्री समर्पयेन्मन्त्र सन्त्रासाधनयोगतः ।। ५२ ।।
भा० टी०-मत्री उसको इस प्रकार गुरु और देवताके सामने शपथ देकर मंत्रसाधनके विधानके अनुसार मत्र दे दे।
Page #143
--------------------------------------------------------------------------
________________
भैरव पद्मावती कल्प
[ १२३
ग्रन्थकारकी गुरुपरम्परा
सकलनयमुकुटघटितचरणयुगः, श्रीमदजितसेनगणिः । जयतु दुरितापहरी, भव्यौधभवार्णमोत्तारी ।। ५३ ॥
भा० टो०-जिनके चरण युगल समस्त राजाओंके समूहके मुकुटोंसे छुपे जाते हैं, जो पापको नष्ट करनेवाले हैं, और जो भव्योंके समूहको ससाररूपी मुद्रखे तारनेवाले हैं ऐसे श्री अजितसेलगणि मुनि जयनदन्त हो।
जिनसमयागमवेदी गुरुतरसंसारकाननोच्छेदी । कर्मेन्धनदहनपटुस्तच्छिष्यः कनकसेनगणिः ।। ५४ ।। भा० टी०- जैन शास्त्रोंको जालनेवाले, अत्यत कठिन संसाररूपी बनको नष्ट करनेवाले धर्मरूपी इन्धनके जलानेमें चतुर श्री कनकसेनगणि उनके शिष्य थे।
चारित्रभूषिताको निस्सङ्गो मधितदुर्जनाऽनङ्गः । तच्छिष्योजिनसेनो वसूब भव्याजधर्माशुः ।। ५५ ।। भा० टो-चारित्रसे शोभायमान अंगवाले, परिग्रहरहित, दुर्जय कामदेव को नष्ट करनेवाले और भव्यरूपी कमलोंके लिये सूर्य श्री जिनसेन उन कनकमुनिके शिष्य थे।
नदीय शिष्यो मुनिमल्लिषेणः सरस्वतीलब्धबरप्रसादः । तेनीदितो भैरविदेवतायाः कल्पः समासेन चतुःशतेन ॥५६॥१. भा० टी०-सरस्वतीसे वरदान पाये हुये श्र. मल्लपमके
Page #144
--------------------------------------------------------------------------
________________
१२४]
६ भैरव पद्मावती कल्प
मुनि उनके शिष्य दुये। उन्होंने ही इस भैरव पद्मावती कल्पको चारसौ श्लोकोंमें कहा है।
यानद्वामिहीधरतारागणगगनचन्द्रदिनपतयः । तिष्ठन्ति ताबदास्तां भैरवपद्मावतील्पः ॥ ५७ ।। भा० टी०-जवतफ समुद्र, पर्वत, तारागण, आकाश, चन्द्र, और सूर्य रहें तबतक यह भैरव पद्मावतीकल्प भी बना रहे।
इति उमयभाषा कदिशेखर श्री मलिषेणसूरि विरचित भैरव पद्मावती कल्पकी पंडिता कलायतीदेवी सरस्वती (धर्मपत्नी काव्यसाहित्यतीर्थाचार्य प्राच्यविद्यावारिधि श्री चन्द्रशेखर शस्त्रो) कृत भाषा टीकामें 'गरुडाधिकार' नाम दशम परिच्छेद
समाप्त ॥१०॥
प्रति लेखकचन्द्रशेखर शाली काव्यसाहित्याचार्य प्राच्यविद्यावारिधि । मिति आश्विन शुक्ला दशमी गुरुवार सं० १९८४ विक्रमी, ता० ६ अक्टूबर सन् १९२७ ईस्वी, समय ३॥ बजे दोपहर ।
इति शम्।
Page #145
--------------------------------------------------------------------------
________________
“नमः सिद्धम् ।
पद्मावती सहस्रनाम स्तोत्रम्
eloPA
. अथ पद्मावती शतम् प्रणम्य परया भक्त्या, देव्याः पादांबुजां विधा। ..
नामान्यष्टपदस्राणि, वक्तुं तद्भक्तिहेतवे ॥ १॥ श्री पार्श्वनाथचरणांबुजचंचरीका भव्यांधनेत्र विमलीकरणे शलाका है।
नागेंद्रप्राणधरणीधरधारणाभव , मां पातु सा भगवती नितरा मधेभ्यः ।। २॥ पद्मावती पद्मावर्णा, पद्महस्तातो पानी। पद्मासना पद्मकर्णा, पद्मास्या पद्मनोपना ॥३॥ पद्म पद्मदळाक्षी च, पद्मा पद्मपने स्थिता। पद्मालया पद्मगधा, पद्मरागो परागिका ॥४॥ - पद्मप्रिया पद्मनाभिः, पद्मांगा पद्मशायिनी। पद्मवर्णवती पूता, पवित्रा पापनाशिनी ॥ ५ ॥ प्रभावती प्रसिद्धा च, पावती पुरवासिनी। प्रज्ञा प्राहादिनी प्रीतिः, पीताभा परमेश्वरी ॥ ६॥ . पाताळवासिनी पूर्णा, पद्मयोनिः प्रियवदा । प्रदीप्ता पासहस्तां च, पूरा पारा परंपरा ॥७॥ . . पिंगला परमा पूरा, पिंगा प्राची प्रतीषिका। . परकार्यरा पृथ्मी, पाषषी पृथिवीपति॥८॥
Page #146
--------------------------------------------------------------------------
________________
२२६]
भैरव पद्मावती कन्प
पल्लत्व पानदा पात्रा पवित्रांगी च पूरना । प्रभा पताकिनी पीता, पन्नगाधिपशेखरा ।। ९॥ पनाका पद्मकटिनी पतिमान्य पराक्रमा । पदांवरधरा पुष्टिः परमागम वोधिनी ।। १०॥ परमात्मा परा नदा, परमा पात्रपोषिणो । पचदातगतिः पौत्रि. पाखण्डन्नो पितामही ।। ११ ॥ प्रहेलिकापि प्रत्य च, पृथुपौधनाशिनी । पूर्णचन्द्रमुखो पुण्या, पुलोमा पूर्णिमा यथा ।। १२ ।। पावनी परमानन्दा, पडिता पण्डितेडिता। प्रांसुलभ्या प्रमेया च, प्रमा प्राकारवर्तिनी ।। १३ ॥ प्रधाना प्रार्थिता प्रार्य, पट्टदा पंक्तिपूर्यनी। पातालास्येश्वरप्राण, प्रेयसी प्रणमामितां ॥ १४ ॥
इति पद्मावतो शत ॥ १।
अथ महाज्योति शतम् महाज्योतिर्मती माता, महामाया महासती । महादीप्तवती मित्रा, महाचंडा च मंगला ॥१॥ महीषी मानुषोमेघा, महालक्ष्मीमनोहरा। मदापहारनिम्नांगा मानिनी मानशालिनी ।। २ ॥ मार्गदा सुमुहूर्ता च माध्वी मधुमती मही। माहेश्वरी महेज्या च, मुक्ताहारविमूषणा ।। ३ ।। महामुद्रा मनोज्ञा च, महाश्वेतातिमोहिनी । मधुप्रियामतिर्माय मोहिनी च मनस्विनी ॥ ४ ॥ माहिष्मती महावेगा, मानदा मानहारिणी । महाप्रभावमदना, मंत्रवश्या मुनिप्रिया ॥५॥
Page #147
--------------------------------------------------------------------------
________________
भैरव पद्मावती कल्प
[१२७
मन्त्ररूपा च मंत्राझा, मंत्रदा मंत्रसाएरा । मधुप्रिया महाकाया, महाशीठा महामुजा ॥६॥ महाशना महारम्या, मनोभेदा मदासभा । महावांति धरामुक्ति, महाव्रतसहायिनी ।। ७॥ . मधुश्रवा मूर्छना च, मृगाक्षी च मृगावती । मृणाग्निी मनः, पुष्टिमहाशक्ति महार्थदा ।। ८॥ मूगधारा मृडानी च, मत्तमातंगगामिनी । मन्दाकिनी महाविद्या, मर्यादा मेघमालिका ।। ९ ।। मन्दवेगा मन्दगतिः, सहाशोका महीधरा । महोत्साहा महादेवी, महिला मानवर्द्धिनी ॥ १०॥ महाग्रह हरा मारी, मोक्षमार्गप्रकाशिनी । मान्या मानवती माति, मणिनू पुरशोभिना ॥ ११ ॥ मणिकांति धरा मीना, महामत प्रकाशिनी। इन्द्रेश्वरी डिपे देखे, पिनीकारस्वरूपिणो ।। १२ ।।
इति महान्योति शतं ॥२॥
अथ जिनमाता शतम् जिनमाता जिनेन्द्रा घ, जयन्ती अगदीश्वरी। जया जयवती नाया जननी जनपालिनी ॥ १ ॥ जगन्माता जगन्माया, जगज्जेत्री जगजिता । जागरा जर्जराजत्रो, यमुनाजलयामिनी ।। २॥ योगिनीयोगमूग च जगद्धात्री जलन्धरा । योगपट्टधरा बाला, न्योतिरूपा व बालिनो ॥ ३ ॥ स्वालामुखी ज्वालमाया, क्षालनी प जगद्विता । . जैनेश्वरी जिनाधारा, जीवनी यशपाढिनी ।। ४ ।।
Page #148
--------------------------------------------------------------------------
________________
(१२८]
से भैरव पद्मावती कल्पी
यशोदा ज्यायसी ज्येष्ठा, ज्योस्ता च ज्वरनाशिनी । क्षार रूपा जरा जीर्णा, जांगुठा मयतर्जिबी ।। ५ ।। । युगभारा जगन्मित्रा, यंत्रिणी जन्मभूषणा। । योगेश्वरी चयोगंगा. योगयुक्ता युगादिजा ।। ६ ॥ यथार्थवादिनो जाबू, नदिकांति पराजया । नारायणी निर्मदा 'व, निमेषे नर्तनी नरी ॥ ७॥ . नीलानन्ता निराकारा, निराधारा निराश्रया। नृपस्या नरमान्या, निषंगा नृपनंदिनी ॥ ८॥ नृपधर्ममयी नीति, तोतिला नरपालिनो । नंद्यानं दिवती निष्टा, नीरदा नागवल्लभा ॥९॥ नृत्यप्रिया नंदिनी च, नित्यानेका निरामिषा। नागपाश धरा नोका, निःकलंका निरागसा ॥ १० ॥ नागवल्ली नागकन्या, नागिनी नागकुण्डली। निद्रा च नागदमनी, नेत्रा नाराघवर्षिणी ।। ११ ॥ निर्विकारा च निर्वैरा, नागनाथेश वल्लभा ।। निर्लोभा च नमस्तुभ्य, नित्यानन्द विधायिनी ।। १२ ।।
___इति जिनमाता शतं ॥ ३ ॥
। अथ वज्रहस्ता शतम् बञहस्ता च बरदा, वज्रशैला वरूवनी । वाचा वज्रायुधा वाणी विजया विश्वव्यापिनी ॥१॥ वसुदा बलदा बीरा, विषया विषवर्द्विनी । बसुन्धरी वराविश्वा, वर्णनी बायुगामिनी ॥२॥ बहुवर्णा निजवती, विद्याबुद्धिमती विभा । विद्या बामबती पामा, निषिद्वा वंशमूषणा ।। ६॥
Page #149
--------------------------------------------------------------------------
________________
र भैरव पद्मावती कल्प
[:१२९
परारोहा विशोका च, वेदरूपा विसूषणा । विशाला बारुणी कल्पा, वालिका बालिनीप्रिया ।। ४ ॥ वर्तनी विषहा बाला, विवक्ता वनवासिनी। वन्द्य विधिस्तुनावल्लो, विश्वयोनिर्बु धप्रिया ।। ५ ।। बलदा वीरमाता 'च, वसुधा वीरनन्दिनी । वरायुध धरावेषो, बारिदा बलशालिनी ।। ६ ।। बुधनाता वैधमाता, बन्धुरा बन्धुरुपिणी । विद्यावता विशालाक्षी, वेदमाता विभावरी ॥७॥ बाताली विषमावस्या, वेदवेदांगधारिणी । वेदमार्गरताव्यता, विलोमा बादशालिनी ॥ ८॥ विश्वमाता चिकंपा च, वंशजा विश्वदीपिका । वसंतरूपिणी वर्षा, विमला विवुधायुधा ॥ ९ ॥ बिज्ञाननी पवित्रा च, विपंची बन्धमोक्षिणी । विषरूपमती बर्दा, विनीता निशिषा विभा ॥ १० ॥ व्यालनी व्यावळीला च, व्याप्ता व्याधिविनाशिनी । विमोहा वाण सन्देशा, बर्द्धनी बर्द्धमानका ॥ ११ ॥ ईसानी तीसरे भेदा, बरदाइ नमोस्तु ते । पालेश्वरी प्रिय प्राण, प्रयेशी बसुदायिनी ।। १२ ।।
इति ननहरता शतं ॥४॥
Page #150
--------------------------------------------------------------------------
________________
१३०]
२ भैरव पनापती कल्प
अथ कामदा शतम्
कामदा कमला काम्या, कामांगा कामशामिनी । कमडावनी कलापूर्णा, कलाधारी कनीयसी ॥१॥ कामिनी कमनीयांगा, फनत्यांचनसग्निभा । कात्यायिनी कांतिदा घ, कमा कामरूपिणी ॥२॥ कामिनी कमलामोदा, कम्राांतिकरी प्रिया । कायस्था कालिका काली, कुमारी कालरूपिणी ॥ ३ ॥ कालाकारा कामधेनुः, काशी कमढळोचना । कुन्तला कनकामा च, कास्मीरा कुंकुमप्रिया ॥४॥ कृपायती कुण्डलनी, कुण्डलाकारशायिनी । कर्कशा कमला कानी, कौलिकी कुलवालिका ॥ ५ ॥ कारबक्रधरा कल्पा, कालिका काव्यकारिका । कविप्रिया च कौशांबी, कारिणी कोशर्धिनी ॥६॥ कुमावती किराला भा, शानिस्मा कांतिबद्धनी । कादंबरी कंठोरस्था, कौशांन्या कोशवासिनी ॥७॥ काळनी कापहननी, कुमारजननी कृतिः । कैवल्यदायिनी केवा, कर्महा कपर्दिनी ।। ८॥ कलंकरहिता कन्या, काठण्याव्यवासिनी । क'रामोदनीधामा, कामगीजवतीकरा ॥९॥
Page #151
--------------------------------------------------------------------------
________________
भैरव पद्मावती कल्प (प्र
कलिना कुन्दपुष्पा भा, कुटारगवाहिनी । कलिप्रिया कामना च, कमठोपरि शायिनी ॥ १० ॥
कमठोरा कठिना क्रूरा, कन्दला कडीप्रिया । क्रोधनीकोधरूपा च क्रूहूचाकार नर्तिनी ॥ ११ ॥
"
कांयोजिनी कांडरूपा, कोदण्डकरधारिणी ।
क्रुद्ध क्रीड़वती क्रीड़ा, कुमारानन्ददायिनी ।। १२ ।।
"
कमलाशना केतकी व केतुरूपा कुतूहला । कोपिनी कोपरूपा च कुसुमावासवासिनो ॥ १३ ॥
इति कामदा शतं ॥ ५ ॥
[ १३१
Page #152
--------------------------------------------------------------------------
________________
१३२]
है भैरव पद्मावती कल्प
अथ सरस्वती शतम् सरस्वती शरण्या ब, सहश्राक्षी खरोजगा। सिवाशती सुधारूपा, शिवमाया सुता शुभा ॥ १ ॥ सुसेधी सुमुखी शांता, सावित्री सायगामिनी । सुरोत्तमा सुवर्णा च, श्रीरूपा शास्त्रशायिनी ।। २ ।। शांता सुलोचना साध्वी, सिद्धा साध्या सुधात्मिका । सारखा सरला सारा, सुयेषा वशवर्द्विनी ।। ३ ।। शङ्करी शमता शुद्धा, शत्रुम.न्या शिवकरी । शुद्धाहाररता श्यामा, सीमा शीलपती सरा ॥ ४ ॥ शीतला सुभगा ली, लुकेशो शैलमालीनी । शलिनी शाक्षिणी सीता, सुभिक्षा शियप्रेयसी ।।५।। सुवर्णा शोणवर्णा च, सुन्दरी सुरसुन्दरी । शक्ति स्तुषा लारिका च, सेव्या श्रीः सुजनार्चिता ।। ६ ।। शिव दूती श्वेतवर्णा, शुभ्रामा शुभ नाशिका । सिंहगा सल्ला शोभा, शमिनी शिवपोषिणी ॥ ७ ॥ श्रेयस्करी श्रेयसी च, शौरिः सौदामिनी शुचिः । सौभागिती शोषिणी च, सुगन्धा सुमनः प्रिया ।। ८॥ सौरभेषीमु सुरसी , श्वेतातपत्र धारिणी। शृङ्गारिणी सत्यवक्री, सिद्धार्थ शीलमूषणा ।। ९ ॥ सत्यार्थिनी च सध्याभा, शची सक्रांति सिद्धिदा। संहार कारिणी सिंही, सप्ताचिः सफलार्थदा ॥ १० ॥ सत्या सिंदूरवर्णाभा, सिंदूर तिलक प्रिया । सारंगा सुतरा तुभ्यं, ते नमोस्तु सु योगिनी ।। ११॥
इति सरस्वती शतं ॥ ६॥
Page #153
--------------------------------------------------------------------------
________________
TA भैरव पद्मावती कल्प।
[१३३ .
अथ भुवनेश्वरी शतम् मुवनेश्वरी भूषणा च, भुबना मूमिफ प्रिया । भूमि गर्भा भूपवद्या मुजंगेश प्रिया भगा ॥१॥ मुजङ्ग भूषणा भोगाः भुजङ्गाकारसायिनी । अवता भिहता भीम, भूमि भीमा ददासिनी ॥ २ ॥ भारती भगति गा, भगनी लोग मन्दिरा । भद्रिका भद्रि रूपा च, भूतात्मा मूत मंजिना ।। ३ ।। भवानी भैरबी भीमा, भामिनी भ्रमनाशिनी । मुजंगिनी भुअंडी च, मेदिनी सूमिभूषणा ।। ४ ॥ भिन्ना भाग्यवती भासा, मोगिनी भोगवल्लभा । मुक्तिदा भक्तिग्राहा च, भवसागरतारिणा !॥ ५ ॥ भारती भास्वरीमूर्ति, भू तिक्षा मूतिबर्द्धिनी। भाग्यदा भोग्यदा भोग्या, भाविनी भवनाशिनी ॥ ६॥ भिन्ना भट्टारका भीरू, भ्रामरी भ्रमरी अना। भट्टिनी भांडदा भांडा, भल्लाकी भूरि भाजिनी ।। ७ ।। भूमिगा भुमिदा भाषा, भक्षिणी भृगुभूगिनी । भाराक्रांता भिनंदा च, मंजिनी भूमिपालिनी ।। ८॥ भद्रा भगवती मार्गा, बत्सला भगशालिनी। खचरी खड्गहस्ता च. खड्गिनी खलमर्दिनी ॥९॥ खड्वांगधारिणी खड्गा, खडगाखगवाहिनी । 'पद् चक्रभेद विख्याता, खगपूजा खगेश्वरी ॥ १० ॥ लांगली ललना लेखा, लेषना ललिता लता। लक्ष्मी लक्ष्मीमति लक्ष्म्या, लाभदा लोभ पर्जिता ॥ ११॥
इति भुवनेश्वरी शतं ॥ ९॥
Page #154
--------------------------------------------------------------------------
________________
१३४ ]
भैरव पद्मावती कल्प
अथ लीलावती शतम्
लीलावती लला माभा, लोहमुद्रा उपिप्रिया । लोकेश्वरी च दोषांगा, लध्वि लरकांतपालिनी ॥ १ ॥ लीला लीटांगदा लोला, लावण्या ललितार्थदा । लोभदा लावनिका, लक्षणा लक्षवर्जिता ॥ २ ॥ उर्मोवशी उदीची च, उद्योत द्योतकारिणी । उद्धारण्य धरोदय, उद्वामोद्गतिवाखिनी ॥ ३ ॥ उदाहारो तमो तंखो, उषपुधितारिणी । उत्तरोत्तर वादिन्यो, धराधरविनाशिनी ॥ ४ ॥ उत्कीलन्सुत्फी लिनी च, उत्कीर्णोकार रूपिणि । ॐ काराकार रूपा च विकार वरचारिणी ॥ ५ ॥ अमोघा खापुरी चान्ता, निरादि सुत संयुता । अनादि निधनानन्ता, चाटुली दाइनाशिनी ॥ ६॥ अपणार्द्ध चिंदुधरा, टोकाळल्पा विवांगना | आनन्दानन्ददा लोका, राष्ट्रसिद्धि प्रदानका ॥ ७ ॥ अजन्या श्रमयि मूर्ति, रजीर्णाजीणहारिणी । अह कृत्य रजा जागा, ॐकार रतिरत्पदा ॥ ८ ॥ अनुरूपार्थ मूतिघ्नी, क्रीडाकैरवपालिनी । ertioहा श्रुगा भेदा, छेद्या चाकाशगामिनी ॥ ९ ॥ अनन्तराखाधिकारा, चांगा अनन्तरनाशिनी । अलका यना लभ्या, सीता शिखरधारिणी ।। १० ॥ अहिनाभ प्रिय प्राणा, नमस्तुभ्यं महेश्वरी । कषणा धरा राग, मन्दा मोदं विधारिणी ॥। ११ ॥ इति लीलावती शतं ॥ ८ ॥
Page #155
--------------------------------------------------------------------------
________________
है भैरव पद्मावती कस्प
[१३५
अथ त्रिनेत्रा शतम् त्रिनेत्रा श्यंकांतः श्री, त्रिपुरा त्रिपुरभैरवी । त्रिपुष्टा त्रिफणा तारा, तोतिला त्वरितातुला ॥१॥ तपत्रिया तपस्सी च, तपो निष्टा तपस्विनी। त्रैलोक्य दीपका त्रेधा, त्रिसंध्या त्रिपदा थया ।। २॥ त्रिसू पात्रि पद त्राणा, ता रात्रि पुरसुन्दरी । त्रिलोचना त्रिपथगा, तारा मानविमर्दनी ।। ३ ।। धर्मप्रिया धर्मदा च, धमिनी धर्मपालिनी । धारा धर धारा धारा, धात्रो धर्मोग पालिनी ।। ४ ॥ धौता घृति धुरा धारा, धूनिनी व धनुर्द्धरा । ब्राह्मणी ब्रह्मगोत्रा च, ब्राह्मणी ब्रह्मपालिनी ॥५॥ ब्रह्मा विद्यत्प्रवीरा ख, वीणाबासिच पूजिता । गीता प्रियाभिधारा गा, गामिनी गज गामिनी ॥ ६॥ गङ्गा गोदावरी गौर्गा, गायत्री गणपालिनी। गोचरी गोमती गुर्धा, गाथा गंधारिणी गुहा ।। ७ ।। गरीयसी गुणोपेता, गरिष्टा गर मर्दिनी। गम्भीरा गुरुरूपा च, गीता गर्षापहारिणी ।। ८॥ प्रहिणी प्राहिणी गौरी, गन्धारी गन्धमासिनी। गारुड़ी गामिनी गूढा, गोहनी गुणहायिनो ॥९॥ चक्रमध्या चक्रधरा, चित्रिणी चित्ररूपिणी । चर्चनी चतुरा चिंता, चित्रमाया चतुर्मुआ।। १० ॥ चन्द्रामा चन्द्रवर्णा च, चक्रणी चक्रधारिणी। चक्रायुध करा चण्टी, चण्डचण्ट पराक्रमा॥ ११ ॥
इति त्रिनेत्रा शतं ॥९॥
Page #156
--------------------------------------------------------------------------
________________
१३६ ]
र भैरव पद्मावती कन्प
अथ चक्रेश्वरो शतम्
चक्रेश्वरी चमूश्चिंता, चापिनी चपलानिका । चन्द्रलेखा चन्द्रभागा, चन्द्रिका चन्द्रमण्डला ॥ १ चन्द्रकांति चन्द्रमश्री, चन्द्र मण्डलचर्तिनी । दतु समुद्र पारांता, चतुराश्रम याखिनी ॥२॥ चतुर्मुखो चन्द्रमुखी, चतुर्वर्ण फळप्रदा । चिस्तस्वरूपा चिदानन्दा, चिरा चिन्तामणिः पहा ॥ ३ ॥ चन्द्रहासा च चामुण्डा, चिंतना चौरवचिनी । चैत्यप्रिया चैत्यलीना, चिंतनार्थ फलप्रदा ॥ ४ ॥ हीरूपा हसगमनी, हाकिनी हिंगुलाहोता । हलाहल धाराहारा, हसनर्णा च इदा ॥ ५ ॥ हिमानी हरिता हीरा, हर्षिगी हरिमदिनी । गौपिनगौरगीता च, दुर्गा दुर्ललिता दरा ॥ ६ ॥ दामिनी दीर्घिका दुःखा, दुर्गमा दुर्लभो दया । द्वारिका दक्षिणा दीक्षा, दक्षा दीक्षा तिपूजिता ॥ ७ ॥ दमयन्ती दानयन्ती, दीतिप्ति दिवागतिः । दरिद्रहा वैरि दूरास, दादुर्गविनाशिनी ॥८॥ दर्पहा दैत्यदासा च, दर्शनी दर्शनप्रिया । वृषप्रिया च वृषभा, वृषारूढा प्रबोधिनी ॥९॥ सूक्ष्मा सूक्ष्म गति लक्ष्णा, धनमाला धनद्यति । छाया छान छवि डीरा श्रीरादा धतरपनी ।। १० ।।
Page #157
--------------------------------------------------------------------------
________________
भैरव पन्नावती कल्प
[१३७
आमरी दूति रात्रीश्च, रंगिनी रतिदा रुषा । स्थूला स्थूलतरा स्थंडिल शेष बासिनी ॥ ११ ॥ स्थिरस्वानवती देवी, घनघधरनादिनी । श्वेमंकी क्षेमवती, क्षेमदा क्षेमवद्धिंना ॥ १२ ।। सेलूष रूपिणो शिष्टा, संसाराणब तारिणी । सदा सहायिनी तुभ्यं, नमस्तुभ्यं महेश्वरी ॥ १३ ।।
इती चक्रेश्वरी शतं ॥ १० ॥
Page #158
--------------------------------------------------------------------------
Page #159
--------------------------------------------------------------------------
Page #160
--------------------------------------------------------------------------
_