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2 भैरव पद्मावती कल्प
मडलय इछिये तुहरणमंते पहरणदुत्थे आयामंडि पायालमडि सिद्धमंडि जोहणिमंडि सब मुहम डि कन्जलं पडउ स्वाहा। , इस काजलको ईशानकोणको ओर मुख करके पाड़े।
अदृश्य गुटिका चितवह्निदग्धभूतद्रुमयमशाखामर्षि सभाहृत्य । '
अकोलतैलसूतकृष्णपिडाली जरायुश्च ।। २३ ।। भा० टी०-चिताकी अग्निसे जले हुये बहेड़ेके वृक्षकी दक्षिण दिशाकी स्याहीको लेकर उसको अझोलके तेल, पारदरस और काली विल्लोकी जरायु सहित,
धूकनयनाम्बुमर्दितगुटिकां धृत्वा त्रिलोह संमठिताम् । कृत्वा तामात्ममुखे पुरुषोऽदृशत्वमायाति ॥ २४ ॥ भा० टी०-उल्लूकी आंखोंके पानी में मळफर गोली बनावे। उसको त्रिलोहके साथ सोलह अग्नि देकर अपने मुखमें रक्खे तो अदृश्य हो जावे।
वीर्यस्तंभक गुटिका सितशरपु ख मूल हत्वा सितकोकिलाक्षवीजञ्च ।
बनवसलारसपिष्टं वीर्यस्तम्भे मुखे संस्थाम् ।। २५ ॥ भा० टी०-सफेद सरफोंकेकी जड़ और सफेद कोकिलाक्षके वीजोंको जंगली पोदीनेके रसमें पीसकर गोली बनाकर मुखमें रखे तो बीर्य स्तम्भन होता है।
वीर्यस्तम्भक अस्थि कृष्णवषदंशजंघायाः शल्यखण्डमादाय । - पद कटिप्रदेशे वीर्यस्तम्भं नृणां कुरुते ।। २६ ।। -