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भैरव पद्मावती कस्प।
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कामदेव भी वशमें हो जाता है। इस काजलके नेत्रवाले पुरुषके भी राजा आदि वशमें हो जाते हैं।
पिशाची पान विषमुष्टिकनकमूल रालाक्षतबारिणा ततः पिष्टम् ।
तद्रसभाक्तिपत्रं पिशाचयत्युदरमध्यगतम् ।। २० ।। भा० टी०-महानिम्ब (विषदौड़ी) और धतूरेकी जड़को कंगुनीके चावलोंके पानीके साथ पीसकर उस रसमें भावित किया हुआ पान पेट में जाने पर पुरुष या स्त्रीको पिशाच बना देता है।
शत्रुभयकरण काजल चिक्कणिकेप्सितरूपा पिशाचिका साचितामषिमथिते ।
नृकपाले मातृप्रहे काननकार्पासकृतवा ॥ २१ ॥ भा० टी०- चिक्कणिका (सुपारी) मोम और कोंचको पीसकर उनको जगली कपासमें मिलाकर वत्ती बनावे। उस बत्तीसे सप्त मातृकाके ग्रहोंमें गीली चिताकी स्याहीसे मथे हुये मनुष्यके कपालपर,
दार्य कृष्णाष्टम्यामञ्जनमेतन नहाधृतोद्धनम् । तेन त्रिशूलमञ्जनमपि कुर्यादङ्कभीत्यर्थम् ।। २२ ।। भा० टी०-इस महाधृतसे कृष्णपक्षकी अष्टमी अथवा चतुदशोको मञ्जन बनावे । इस अजनको आंखोंमें डालकर उसके शत्रुको भय उत्पन्न करने के लिये मस्तक पर त्रिशूलका चिह्न बनावे ।
काजल पाड़नेका मन्त्र "ॐ नमो भगवति हिडिम्बवासिनि 'अल्लमांसप्रिये नहयल