________________
९८]
भैरव पक्षापती कल्प।
भा० टी०-फिर उस बत्तीको क्रमशः पांच कारुकी, ब्राह्मणो, क्षत्रियाणी और वैश्य लोके दूधमें भावित करके कपिला गौ के पीसे दीपक जगावे।
उभयग्रहणे दीपोत्सवे च नमखर्परेऽञ्जनं दार्यम् । गोमयपिलिप्तभूम्यां स्थित्वा मन्त्राभिषिक्तायाम् ॥ १८ ।। भा० टी०-फिर सूर्यप्रहण, चन्द्रप्रहण या दीपमालिकाको गोवरसे लिपी हुई तथा निम्नलिखित मन्त्रसे अभिषेक की हुई पृथिवी पर बैठकर नवीन वरपर स्याही बनावे ।
पृथिवीको साफ करनेका मन्त्र
ॐ भूमू मिदेवते सिष्ठतिष्ठ ठः ठः । निम्नलिखित मन्त्रसे स्वपरको अभिमन्त्रित करे । ॐ ऐन्द्रदेवते कजल गृण्ह २ स्वाहा ।
निम्नलिखित मन्त्रसे काजल पाडे ॐ नमो भगवते चन्द्रप्रभाय चन्द्रेन्द्रमहिताय नयन मनोहराय हारिणि २ सर्वजनवश्यं कुरु २ स्वाहा ।
निम्नलिखित मन्त्रसे काजल मांखों में लगावे
ॐ नमो भूतभावनाय समाहिताय कामाय रामाय ॐ चुल २ गुल २ नील भ्रमरि २ नयन मोहिनी नमः ।
कजबरश्चितनयनां दृष्ट्वा तां शयतीति मदनोऽपि ।
नरमप्यधितनेत्रं भूपाथा यान्ति तस्य वशम् ।। १९ ।। मा० 'टी.-इस काजरको नेत्रोंमें लगाई हुई स्त्रीको देखकर