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ॐ भैरव पद्मावती कल्प
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स्त्रीवश्यमदनक्रमुक क्रमुकं फणिमुखनिहितं तस्मादिवसत्रयेण संगृह्य। कनकविषमुष्टिहलिनी चूर्णः प्रत्येकशः क्षिप्त्या ॥ १३ ॥
भा. टी.-सर्पके मुख में तीन दिन तक रखी हुई सुपारीको काले धंतूरेकी जड़के चूर्ण, विषमुष्टि (विषडोडिका ) के चूर्ण और हलिनी (विशल्या कन्द ) के चूर्णके साथ पृथक् २ पोलकर,
खरसुरगशुनिक्षीरैः क्रमशः परिभान्य योजयेत्वाद्ये ।
अवलाजनयशकरणं मदनक्रमुक समुदिष्टम् ॥ १४ ॥ भा० टी०-उसको क्रमशः गधी, घोड़ी और कुतियाके दूधमें भावित करे। यह मदन क्रमुक स्त्रियोंको वशमें करता है।
वश्य काजल पुत्रञ्जारी कुंकुमशरपुवामोहिनीशमीकुष्ठम् ।
गोरोचनाहिकेशरतगरउदन्ती च कपूरम् ।। १५ ।। भा० टी०-पुत्रजारो, केशर, सरफोंका, मोहिनी, शमी, कूठ, गोरोचन, नागकेशर, तगर, रुदन्तो और कपूर,
कृत्वैतेषां चूर्ण पावकमध्ये ततः परिक्षिप्य । पङ्कअभपतन्तुवृता बर्तिः कार्या पुनस्तेन ॥ १६ ॥
भा० टी०-इन सबका चूर्ण करके इनको अरुक्तश्के पटलमें सिर और कमर सूत्रसे उपेटकर इनकी बत्ती बनावें।
भातकिकृषभवपयवा त्रिवर्णयोषास्तनक्षीरैः। परिभान्य ततः कपिठातेन परिभाषयेदीपम् ॥ १७ ॥