________________
एवं भैरव पद्मावती कल्प
[.२३
भा० टी०-वों का अंतिम अक्षर '' पार्श्वनाथ भगवानका है। नीचे लगनेवाला 'र' धरणेन्द्रका है और 'ई' पद्मावतीदेवीका है।
त्रिभुवनजनमोहकरी, विद्येयं प्रणवपूर्वनमनान्ता ।
एकाक्षरीति संज्ञा जपतः फलदायिनी नित्यम् ॥ ३५ ॥ भा० टी०-यह 'ॐ ह्रीं नमः' एकाक्षर मन्त्र तीन लोकको मोहित करनेवाली और तुरन्त फल देनेवाली विद्या है।
होमविधि तत्त्वावृतं नाम विलिख्य पत्रे तद्धोमकुण्डे निखनेत्रिकोणे । स्मरेषुभिः पञ्चभिराभिवेष्ट्य. बाह्ये पुनर्लोकपति प्रवेष्यम् ॥ ३६॥ ____ भा० टो०-एक ताम्रपत्रपर नामको होंसे. वेष्टित करके उसके चारों ओर कामदेवके पांच पाण 'द्रां द्रीं क्लीं ब्लू सः' को लिखकर बाहिर ह्रींसे वेष्ठित करे। इस्त्र यंत्रको उक्त त्रिकोण कुण्डमें गाड़ दे।
मधुरत्रिकसम्मिश्रितगुग्गुळकृतचणकमात्रानटिकानाम् । " त्रिंशत्सहस्रहोमात्मिध्यति पद्मावती देवी ।। ३७ ॥ भा० टो० मधुरत्रिक (घी, दूध, शकर) में गूगलको मिलाकर बनाई हुई चनेके बराबर गोलियों के तीस सहल होमसे पद्मावतीदेवी सिद्ध होती है।
मन्त्रस्यान्ते नमश्शब्दं देवताऽऽराधनाविधौ । तदन्ते होमकाले तु स्वाहा शब्दं नियोजयेत् ॥ ३८॥ भा० टी०-पहिले मंत्रके अन्तमें 'नमः' लगाकर देवीका जप करे। जपकी समाप्तिपर मन्त्रके भन्तमें 'स्वाहा' लगाकर होम करे । यह सिद्धिकी विधि हैं। -