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से भैरव पद्मावती कल्प
पार्श्वनाथ भगवानके यक्षकी साधनविधि ।
दशलक्ष जाप्य होमात्प्रत्यक्षो भवति पार्श्वयक्षोऽसौ । न्यग्रोधमूलबासी श्यामाङ्ग खनयनो नूनम् ॥ ३९ ।। भा० टी०-निम्नलिखित मन्त्रके दश लक्ष जाप और दशांश होमसे घटवृक्षके नीचे रहनेबाला, कृष्णवर्ण, तीन नेत्रवाला पार्श्वनाथ भगवानका यक्ष सिद्ध हो जाता है।
मंत्रोद्धार 'ॐ ह्वीं पाश्र्वयक्ष दिव्यरूपमहर्षण एहि एहि मां कों ही नमः।
निजसैन्यैर्मायामयसमुत्थितैरिलोकमग्रस्थम् । विमुखीकरोति यक्षः संग्रामे निमिषमात्रेण ।। ४० ।।
भा० टी०-यह यक्ष शत्रुकी बड़ी भारी सेनाको भी अपनी मायामय सेनाके द्वार। युद्धसे क्षणमात्रमें ही भगा देता है।
वशीकरण चिन्तामणि यन्त्र
सान्त विन्दुर्द्धरेफ पहिरपि विलिखेदायताष्ठ जपत्रम् । दिवं श्रीं स्मरेशो द्विपरशकरणं झौं तथा ब्लें पुनयूं ॥ वाझे ह्रीं नमोहं दिशिलिखितचतुर्बीजक होमयुक्तं । मुक्तिश्रीवल्लभोऽसौ भुषनमपिषशं जायते पूजयेद्यः ।। ४१ ।। भा० टी०-एक अष्टदल कमलकी कर्णिकामें हैं लिखकर उसके पूर्व आदि दिशाओंके दलोंमें क्रमशः ऐं श्रीं ह्रीं और ली