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________________ १२] ॐ भैरव पद्मावती कल्प भा० टी०- वशीकरण वर्मको उत्तराभिमुख होकर, आकर्षण कर्मको दक्षिणाभिमुख होकर, स्तम्भन कर्मको पूर्वाभिमुख होकर, निषेधर्मको ईशानाभिमुख होकर, विद्वेषण कर्मको अग्निकणकी ओर मुख करके, उच्चाटन कर्मको वायव्यकोणकी ओर मुख करके, शांतिकर्मको पश्चिमकी ओर मुख करके, तथा पुष्टिकर्मको नैऋत्यकोणकी ओर मुख करके करे। पूर्वाह्ने वश्यकर्माणि मध्य ह्ने प्रीतिन शनम् । उच्चाटनमपराह्ने च सन्ध्यायां प्रतिषेधनम् ॥ ६॥ भा० टी०-वशीकरण, आकर्पण और स्तम्भन कर्मों को दिनके बारह बजेसे पहिले ( वसन्तऋतुमें), विद्वेषण कर्मको मध्याह्न (प्रीष्मऋतु) में, उच्चाटनको दोपहर बाद अपराह्न (वर्षाऋतु) में, और प्रतिपेध कर्मको सध्या समय (शरदऋतु) में करे । शान्तिकौर्द्धरात्रौ च प्रभाते पौष्टिक तथा । वश्य मुक्त ऽन्यकर्माणि सव्यहस्तेन योजयेत् ।। ७ ।। भा० टी०- शांति कर्मो आधी रात (हेमन्तऋतु) में, और पौष्टिक धर्मको प्रातःकाल (शिशिरऋतु) में करे, वशीकरणके अतिरिक्त अन्य कार्योंको दाहिने हायसे करे । अकुशसरोजबोधप्रबालशङ्कबज्रमुद्रा स्युः । आकृष्टिय श्यशांतिकविद्वेषणरोधवधसमये ॥ ८॥ भा० टी०-आकर्षण फर्ममें अंकुशमुद्रा, वशीकरणमें सरोज (कमल) मुद्रा, शांतिक पौष्टिक कर्ममें ज्ञान मुद्रा, विद्वेषण उच्चाटन
SR No.009990
Book TitleBhairav Padmavati Kalp
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMallishenacharya, Chandrashekhar Shastri
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year
Total Pages160
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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