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में भैरव पद्मावती कल्प
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तेजोऽहं सोमसुबहसःस्वाहेतिदिग्दलेषु लिखेल ।
आग्नेयादिदलेष्वपि पिण्डं यत्कर्णिकालिखितम् ।।२।। भा० टी०-उस कमलकी पूर्वादि दिशाओंके दलोंमें 'ॐ अहं इनी देवी हसः स्वाहा' मन्त्र लिखकर विदिशाओं में म्यूँ पिण्डको लिखे।
मूर्जे सुरभिद्रव्यविलिख्य तरिसक्थकेन परिवेष्ट्य ।
नूतनघटेऽम्बुपूर्णे तद्यन्त्र स्थापयेद्धीमान् ।। ३ ।। भा० टी०-बुद्धिमान इस यन्त्रको कुंकुम कपूर आदिसे सुगन्धित द्रव्योंसे भोजपत्र पर लिखे। फिर इसको मोममें लपेटकर जलसे भरे हुये नये घड़ेमें रखदे।
तन्डुरपूर्ण मृन्मयभाजनमप्युपरि तस्य संस्थाप्य । श्री पाव नाथसहितं करोति दाहज्वरोपशमम् ॥ ४॥
भा० टी०-उसके ऊपर चांवलोंसे भरे हुये मिट्टीके बर्तनकी स्थापना करके उसके ऊपर श्री पार्श्वनाथ भगवानको स्थापना करनेसे यह यन्त्र दाईज्वरको शान्त करता है।
श्रीखण्डेन तद लिख्य पाययेत्कांस्यभाजने । महादाइज्वरग्रस्तं तत्क्षणेनोपशाम्यति ।। ५ ॥
भा० टो-अथवा इस यन्त्रको कांसे के बर्तनपर श्रीखण्डसे लिखकर पिला देनेसे महा दाहज्बर भो उसो क्षण-शांत हो जाता है।
मन्त्रोद्धार
"ॐ नमो भगवते पावचन्द्रायं ध्यू वीक्ष्मी हंसः अंसि मा उ सा स्वोहा ।”