________________
, भैरप पन्नावती कम्प
क्षमठसा फलबवर्णाग्मळवरयू कारसयुतान्विलिखत ।
अष्टदलेपु क्रमशो नाम ग्लौं कर्णिकामध्ये ॥ १॥ -- भा० टी०- एक भष्टदल कमलकी कर्णिकामें नाम सहित ग्लौं लिखा पाठों दलोंमें पूर्वादि क्रमसे मल्ल्यू, मल्व्यू, ठम्ल्यू, ग्ल्यू, झल्यू', पम्व्यू, लम्ल्यू, और म्मम्ठy बीजोंको लिखे ।
मन्त्राभ्यामावेष्टय बझे भूमण्डलेन संवेश्य । कुङ्कपन नितालाबैथिलिखेदात्मे प्सितस्तम्भः ।। १ ।।
भा. टो-फिर इपक्षो निम्नलिखित दो मन्त्रोंसे धेरकर बाहिर पृषमण्डल वनावे। इख यन्त्रको केशर और हरीताल आदिके द्वारा लिखनेसे अपने इष्टका स्तम्भन होता है ।
। प्रथम, मन्त्रोद्धार
ॐ नगो भैरवि अग्निस्तम्भिनि पय्यदिव्योत्तारिणि श्रेयस्करि यशस्करि ज्वल२ प्रज्ववर सर्वकामार्थसावनि स्वाहा ।
दूसरे मन्त्रका उद्धारॐ अनलपिनळोर्द्धकेशिनि महादिव्याधिपतये ठः४ स्वाहा । ॥२॥
वाणीस्तम्भन ध्यान त्रींकारं चिन्तयेद्वक्त्रे विवादे प्रतिवादिनाम् ।।
त्रां वा रेफ वसन्त वा स्वेष्टसिद्धिप्रदायकम् ।। ३ ।। भा० टी०-प्रतिपादियोंसे शास्त्रार्थ के समय अपनी इच्छित सिद्धिको देनेवाले त्री या नां या जळते हुये रेफ (२) वीजका ध्यान करे।