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ह भैरव पणावती पल्स
(ॐ) लगावे और उनके अन्तराळमें रान्स () वोजको लगावे।
वार्तालीमन्त्रवृतं बाह्येष्टम् दिक्षु विन्यसेत्क्रमशः । ___ मलवरयंकारयुतान् क्षमठसहपरान्तलान्त ॥ ७॥
भा. टी०-उसको वार्तालि मन्त्रसे घेरकर उनके वाहिर भाठों दिशाओं में क्रमशः क्षयू, भम्ल्यू, म्ल्यू, मल्व्यू, मल्ल्यू, पल्ब्यू, जौर म्ल्यू वीजोंको लिखे।
वार्तालि मन्त्रका उद्धार
ॐ वार्तालि बारांहि वाराहमुखि जम्भे जम्भिनि स्तम्भे' स्तंभिनि अन्धे मन्धिनि रुन्धे रुन्धिनि सर्वदुष्टप्रदुष्टानां क्रोधं लिलि गति लि लि सेनां लिलि जिव्हां ठि लि ठः ठः ठः ।
बाझेऽमरपुरपरिवृतमशरुद्धं करोतु नद्वारम् ।
उक्षेशमन्त्रवेष्ट्यपृथिवीपुरसम्पुटं वाझे ।। ८ ।। भा० टी०- उसको चाहिर पसरपुरसे घेरकर उस अमरपुरके चारों द्वारोंको अकुश (क्रों) से रोक दे। उसके चारों ओर उक्षेश मंत्र लिखकर बाहिर पृथिवीमण्डलका सम्पुट बनावे ।
उक्षेश मत्रका उद्धार
"ॐ णमो भगवदो रिसहस्स पंडिणिमित्तण घारणपण्णति. इन्द्रेण भणामइययेण उपाटि माजीहकण्ठोठमुहतालुवरपीलियायेमह भंसइ यो मइ दुट्ठदिद्विए बमसंखगए देवदत्तसामणं हि पयं कोहं जीहा खोलियाभेलखीयाये ल ल ल र ठ ठ ठ ठ।
कोणेष्वष्टसु बिलिखेद्वार्तालीमन्त्रभणितजम्भादीन् । ठद्वितियं धरणीपुरमीदृशमिदमालिखेत्प्राज्ञः ।। ९ ।। भा० टी०-उसके वाहिर भागे दिशाओं में वार्ताली मंत्रमें