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भैरव पद्मावती कल्प
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भा० टी० - उसके पश्चात् सोलह दल कमल बनाकर उसके दलों में कों को सुगंधित द्रव्योंसे दिखे, और फिर उस यन्त्रको चारों और "क्ला क्लीं क्कू कौं " घेर देवे ।
तबाह्येऽर्कशशीभ्यां जपतः शून्यैश्च पञ्चभिर्नित्यम् । नागनरामरलोक: क्षुभ्यति वश्यत्वमायाति ॥ १६ ॥
भा० टो०- उ रके बाहिर सूर्य और चन्द्रमासे वेष्टित करके पद्म शून्यों 'ह्रां ह्रीं ह्र ं ह्रौं ह्नः' जप करने से नागलोक, मनुष्यलोक और देवलोक सभी वशमें हो जाते हैं ।
अरिष्टनेमि मन्त्र
अष्टघुपाषाणात् दिशासु परिजाप्य निक्षिपेद्धीमान् | चौरादिरौद्रजीवैरभयं सम्पद्यतेऽटव्याम् ।। १७ ।।
भा०टी० - यदि बुद्धिमान मनुष्य निम्नलिखित मन्त्रको बनमें आठ पत्थरकी ककरों पर जपकर उन्हें आठों दिशाओं में फेंक दें, तो चोर आदि भयकर जीवोंसे भय नहीं रहता ।
मन्त्रोद्धार
"ॐ नमो भगवदो अरिट्टनेमिस्स अरिद्वेण बघेण बधामि रक्खमाण भूयाणं खेचराण चोराण दाढोण सायणोण महोरगाः अण्णे जे के बिदुट्ठा सम्भवन्ति तेखि सव्वेसि मण मुह गहं दिहिं बंधामि धणुर महाधणुरे जः जः जः ठः ठः ठः हुं फट् ।”