________________
में भैरव पद्मावती कस्प
[८५'
गौरि महागौरि ॐ नमः छालि महाकालि ॐ नमो इन्दे महाइन्दे ॐ नमो लये महाजये ॐ नमो विजये महाविजये ॐ णमो पणसमणी महापणसमणी अवतर२ देवि अवतर२ मम चिन्तितं कार्य सत्य ब्रूहि स्वाहा ।"
दत्त्वा दर्शान्तरण दुग्धाहारं पुरा कुमारिफयोः ।
संस्नाप्य ततः प्रातर्धषलाम्परमूषणादानि ।। ९ ।। भा० टी०-पहली रात्रिमें उन दोनों कुमारियोंको दाभकी शय्या और दुग्धका आहार देकर प्रातःकाल उलको स्नान करा कर श्वेत वस्त्र और आभूषण आदि देवे ।
कलशादर्शकुमारीस्थानेष्वच विन्यसेदिम मन्त्रम् । विनयं गजनशकरणं क्षां क्षों झूकारहोमान्तम् ॥ १० ॥ भा० टो०-इसके पश्चात् कलशके स्थान, दर्पणके स्थान और कुमारियोके खड़े रहने के स्थानोंमें 'ॐ क्रों क्षांक्षी भू स्वाहा' इस मन्त्रका न्यास करे।
प्रणबादिपञ्चशून्यैरभिमन्त्र्य कुमारिकाकुचस्थाने ।
अशितुं तयोश्च दद्यादृतेन सम्मिश्रितान्यूपान् ।। ११ ।। भा० टी०-उन कुमारियोंके कुचस्थानमें 'ॐ ह्रां ह्रीं ह्र. ह्रौं हः' इस मन्त्रसे अभिमन्त्रित करके उन्हें भोजन के लिये घोके पूड़े देवे।
अंगुष्ठ निमित्तकी सिद्धि मालक्तकाभिरञ्जितहस्ताङ्गुष्ठे निरोक्षयेद्रपम् । करनिर्वतिततैलेनांगुष्ठस्नानकरणेन ।। १२ ।। भा० टी०-हाथों पर तिलका तेल लगाकर अंगुष्ठ निमित्तके द्वारा अलक्तकसे रगे हुये अपने अंगूठेमें मन्त्री रूपको देखे ।