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हैं भैरव पद्मावती कल्प
भा० टो०-चौकोर मण्डलमें रक्खे हुये, सुगन्धित जलसे भरे हुये फलशके ऊपर एक दर्पण पश्चिमकी ओर मुख करके रख दे,
तदभिमुखं प्राक्कल्पितकुमारिकायुगलमथ निवेश्य ततः। तद्धदये ब्लू कारं विचिन्तयेत्प्रणवसम्पुटितम् ।। ५ ।। भा० टी०-उस दर्पणके सामने पहिले संकल्प की हुई दोनों कन्याओंकी स्थापना करके उनके हृदयमें 'ॐ ब्लू ॐ इस मंत्रका ध्यान करे।
शशिमण्डलवत्सौम्यं तन्मंत्रमनुस्मरन् स्वय तिष्ठेत् ।
आदर्शवीक्ष्यमाण कुमारिकायुगलकं पृच्छेत् ॥ ६ ॥ मा० टी०-चन्द्र मण्डलके समान सोम्य रूपवाले उपरोक्त मन्त्रका ध्यान करता हुमा स्वयं बैठकर दर्पणमें देखती हुई उन दोनो कुमारियोंसे पूछे।
यदृष्टं यच्छुत ताभ्यां तत्र रूप चचो यथा ।
खड्गाङ्गुष्ठे जलादशै तत्सत्य नान्यथा भवेत् ॥ ७ ॥ भा० टी०-वह दोनों कन्याएं शस्त्र, अगुष्ट, जल या दर्पणके निमित्तमें इस प्रकारले देखे हुये जिस रूपो या सुने हुये जिस वचनको फहेंगी वह अन्यथा नहीं हो सकता।
दर्पण निमित्तकी द्वितीय सिद्धि दर्पणाङ्गष्ठदोपादिनिमित्तमवलोकयेत् । सिध्यत्यष्टसहस्रेण मन्त्रो जाप्येन मन्त्रिणा ॥ ८॥ भा० टी०-मन्त्रो इसी प्रकरणमें दर्पण, अंगूठे और दीपक आदिके निमित्तको भो देखे। निम्नलिखित मन्त्र आठ सहस्र जपसे सिद्ध होता है"ॐ नमो मेरु, महामेरु ॐ नमो धरणि महाधरणि ॐ नमो