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भैरब पद्मावती कल्प
प्रकार
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भा० टी० - इस यन्त्रको आकके दूब, थूहरके दूध, त्रिकटु ( खोंठ पीपल, काली मिरच), अमगंध और गृहधूमसे बनाकर इसे पकड़े हुयेके मस्तक पर रखने से ग्रह दूर हो जाते हैं । धनदर्शक दीपक
कुनटीगन्धताळकचूर्ण कृत्वा खितार्कतूलेन ।
संवेष्ट्य पद्मनालकसूत्रेग च बर्तिरि कार्या ।। २६ ।। भा० टी० - मनःशिला, गन्धक और हरितालके चूर्ण को सफेद खाकी रुई और कमल दण्डोके सूतसे लपेटकर बत्ती बनावे | खा कद्भुर्तेलभाव्या तया प्रदीप विबोधयेन्मन्त्री | यत्राधोमुखमगमद्दशे पस्तत्रास्ति वसुराशिः ॥ २७ ॥
भा० टी० - मन्त्रो उस सत्तीको कगनी के तेल में भिगोकर दीपक जलावे | वह दीपक जहा नीचेको मुखबाला हो जावे वहीं धनकी राशि जाननी चाहिये ।
पिनयादिप्रज्वलितज्योतिदिशायां महाभोऽन्तपदम् । प्रपठन्मनसा मन्त्रं प्रदोषमालोकयेन्मन्त्रो ॥ २८ ॥ भा० टी० - मत्री 'ॐ प्रस्य द्वितज्योति दिशायां स्वाहा' इस मन्त्रको मनमें पढ़ता हुआ दोपकड़ी बत्तीको घोड़ेके सुम या छुरी पर रखकर देखे |
गणितका निमित्त प्रायोर्वीशन दीनवप्रहनचव्याधिप्रसूनाक्षरा
येकीकृत्य नखान्वितं विगुणित तिथ्यापुनर्भाजितम् । ब्रूयादुद्धरिताच्छुभाशुभफल वैषम्यसाम्ये सुधीरेतत्तथ्यमिहोदितं मुनिवरैर्भव्याजधर्माशुभिः ॥ २९ ॥ भा० टोट- प्रायः चक्रवर्तियों, महानदियों, नवग्रहों, पर्वतों, रोगों और पुष्पों में से एकर के अक्षरोंको गिनकर जोड़े। उस
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