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। भैरष पद्मावती कल्प
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वाजिमाहिषकेशैश्च विपरीतमुखस्तयोः ।
आवेश्य स्थापयेम॒म्यां विद्वेषं कुरुते तयोः ॥ ८॥ भा० टी.-फिर उन दोनों यन्त्रोंको घोड़े और भैसके बागेसे लपेटकर स्मशानभूमिमें परस्परमें पीठ मिलाकर गाइनेसे दोनों व्यक्तियों में विद्वेप हो जाता है।
यन्त्र संख्या ८ शत्रु उच्चाटनमें यः रञ्जिका यन्त्र
लिना
विलयेखा
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अलाहोतिलाह/
साहा।
अपरा
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SUNE
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