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[११] इस विषयपर अन्य किसी प्रन्धमें भी और कुछ वर्णन नहीं, पाया जाता। हमने अभी २ इस विषयमें अपने तुलनात्मक अध्ययनके बलपर दीजकोषके दोनों भागों तथा मन्त्र व्याकरणकी रचना की है; जो प्रेसमें जा चुके हैं और शीघ्र ही पाठकोंके सम्मुख उपस्थित किये जायेंगे।
ग्रन्थकी आस्यन्तर परीक्षा
मल्लिषेण मुनिने इस प्रन्थकी रचना कुल चारसौ श्लोकों में ही है। फिर भी उन्होंने इसका विभाजन निम्नलिखित दशः परिच्छेदों में किया है
१. मन्त्री लक्षण, २. सकलीकरण क्रिया, ३. देवीकी आराधना विधि, ४. द्वादश रंजिका यन्त्र विधान, ५. स्तम्सन यन्त्र, ६. स्त्रीभाषण यन्त्र, ७. वश्य यन्त्र, ८. निमित्ताधिकार, ९ तन्त्राधिकार तथा १०. गारुडाधिकार; इनमेंखे तृतीय परिच्छेद पूरेका पूरा पद्मावतीदेनीले सम्बन्ध है। शेष परिच्छेदोंमें अन्य सन्त्रों यन्त्रों को भी दिया गया है।
इस प्रन्ध में यन्त्रोंकी संख्या ४६ है उन सभी इस ग्रन्धमें पृथक् २ ब्लॉक बनाकर बना दिया गया है।
इस ग्रन्थकी पाभ्यन्तर परीक्षा करनेपर शुद्ध आम्नायवालोंको एक शंका हो सकती है, वह यह है कि इस ग्रन्धमें यन्त्रों तथा तन्त्रोंकी प्रयोग निधिः माही२ रक्त, हड्डो खादि अशुद्ध पदार्थों के छनेका विधान है। वैसे उसमें हिंसाका वर्णल लेशमान भी नहीं है। किन्तु अशुद्ध पदार्थों के स्पर्श तथा उनके प्रयोगका वर्णन इतनी स्पष्टतासे किया गया है कि उन्हया अन्य अर्थ नहीं किया जा सकता । इस सम्बन्धमें स्पष्टीकरणके लिए केवल बड़ी कहा जा सकता है कि अशुद्ध पदार्थों के स्पर्शसे कोई भी तन्त्र प्रशदचा