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________________ [१२ 'हुमा नहीं। विधानुशासन, ज्वालामालिनी कल्प, पद्मावती कल्प तथा अम्बिका बल्ल सभी में इस प्रकार के प्रयोगों को दिया गया है। सो इसमें भी उनके स्पर्शका ही विधान है, उनके भक्षण विधान नहीं है। फिर यह भी आवश्यक नहीं है कि साधक इस ग्रंथमें बतलाए हुये सभी प्रयोगोंमें हाथ डाले। __ मन्त्रशास्त्र तो एक विद्या है, यह धर्मशास्त्र नहीं है । धर्मशास्त्रमें इस प्रकार के विधानोंका अस्तित्व दोषयुक्त होता, किन्तु मंत्र विद्यामें तो इसप्रकार के विधानोंका वर्णन करना ही पड़ता है। __ अन्समें हमको यह निवेदन करना है कि इस ग्रन्धकी भाषा टीकाको विक्रम सं० १९८४ ईसवी सन् १९२७ में तैयार करके इमने १९२८ के अन्तमें उसे सेठ मूलचन्द किसनदास कापड़िया सूरतको प्रकाशनार्थ दिया था। किन्तु कहीं कहीं हिंसाका प्रकरण देखकर उन्होंने इन ग्रन्धके मुद्रणकार्यको बीच में ही रोक दिया था। 'किन्तु बादमें जब उनको पता चला कि पल्प ग्रन्थोंने इस प्रकारके वर्णन अवश्य होते हैं तो उन्होंने इस प्रथको फिर छपवाया है। इस प्रन्धको मुद्रित करानेमें उन्होंने हमको इसके प्रफ नहीं दिखाये, जिससे उनमें अनेक अशुद्धियां रह गयीं अतः पाठकों की सुविधाके लिए प्रथमें विस्तृत शुद्धिपत्र बनाकर लगा दिया गया है। यदि पाठक इस सम्बन्धमें किसी अन्य त्रुटि की ओर ध्यान अाकर्षित करेंगे तो उसे प्रन्धके अगले सस्करणमें सुधार दिया "जायगा। ४५६६ बाजार पहाडगन नई दिल्ही ) भाद्रपद शुक्ला ११, स. २००९ । चन्द्रशेखर शास्त्री ता. ३१ अगस्त १९५२ ) (आचार्य)
SR No.009990
Book TitleBhairav Padmavati Kalp
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMallishenacharya, Chandrashekhar Shastri
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year
Total Pages160
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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