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भैरव पनापती कल्प
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दशम परिच्छेद
(गारुडाधिकार) __गारुड़ विधाके आठ अंग सग्रहमङ्गन्यासं रक्षा स्तोभं च वक्ष्य संस्तम्भम् । विषनाशनं सघोचं खटिहाफणिदशन दशश्च ॥१॥ गारुड़ विद्याके बाठ अग होते हैं।
भा० टी-(१) संग्रह (२) बंगन्यास (३) रक्षा (४) स्तोभ (५) स्तंभन (६) विषनाशन (७) सचोद्य (८) खटिकाफणिदशन ।
भा० टो०-ड हुये को जीवित या मृत जाननेके उपायको संग्रह कहते हैं। शरीरके अययनोंमें बीजों की स्थापना करनेको अंगन्यास करते हैं। शरीर की रक्षा करनेको रक्षा कहते हैं। दुष्ट पुरुषके जग नेको स्तोभ और विष न बढ़ने देने को स्तंभन कहते है। विष दूर करनेको विषनाशन कहते हैं। सर्पले क्रीड़ा करनेको सचोध और खटिकाके नागमें काटने की शक्ति भरनेको खटिकाफणि दशन कहते हैं। (१) संग्रह विधान
ममविषमाक्षरभाषिणि शशिदिनौ घ लामानौ । दष्टस्य जीवितव्य तद्विपरीते मृति विद्य त् ।। २ ।। भा० टी०-यदि सपके काटनेली' खबर लानेवाला दूत चद्रस्वरमें सम अक्षर कहे तो समझना चाहिये कि सर्पदष्ट पुरुष बच जावेगा। अथवा यदि दृत सूर्यस्वर में विषम अक्षर कहे तो उसकी मृत्यु समझनी चाहिये ।