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भैरब पद्मावती कल्प
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सेवन करे | वही खर्पर दिव्यके स्तम्भन में सोंठके चूर्णको खाचे । अग्नि तथा तुलास्तम्भन
रिका भेकमा करप्ति सम्भनं करोत्यग्नेः । वाखनिरोधेन तुलादिव्यस्तम्भो भवत्येव ॥ ४० ॥ भा० टी० - उज्जरिका और मेंढ़ककी चर्बी को हाथपर लगा लेनेसे अमिका स्तम्भन और श्वास निरोधसे तुला दिव्यका स्तभन होता है।
अच्छा रोजगार चलाना
निगुण्डिका व सिद्धार्थो गृहे द्वारेऽदबा पणे ।
द्ध पुष्यायोगेन जायते क्रयविक्रयम् ॥ ४१ ॥
भा० टी० – यदि पुष्य नक्षत्र में निर्गुण्डी और सफेद सरसों घरके द्वार अथवा दूकान के द्वारपर रक्खो जावे तो अच्छा क्रय विक्रय होता है ।
गर्भ निवारण
पिवति प्रसूनसमये जबाप्रसून विमर्ध संधिया ।
न विभर्ति सा प्रसूनं घृतेऽपि तस्या न गर्भः स्यात् ||४२ || आ० टी०—जो स्त्री कांचिका (सौमीर) के साथ जवे के फूलको मलकर ऋतुकालमें पीती है वह फिर माविले नहीं होती । यदि वह मासिक से हो भी जावे तो उनको गर्भ नहीं रहता । इति उभयभाषा कविशेखर श्रीमल्लिषेणसूरि पिरचित भैरव - पद्मावती कल्पकी पडिता कलावतीदेवी सरस्वती (धर्मपत्नी काव्यसाहित्यतीर्भाचार्य प्राच्यविद्यावारिधि श्री चन्द्रशेखर शास्त्री) कृत भाषा टीकामें " बश्य तन्त्राधिकार " नाम दशम परिच्छेद समाप्त ॥ ९ ॥