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से भैरव पद्मावती कल्प
दूतमुखोस्थितवर्णान्द्विगुणो कृत्व विभिहरेद्भागम् ।
शून्येनोद्धरितेन च मृतजीवितमादिशेत्प्राज्ञः ॥ ३॥ भा० टी०-बुद्धिमान पुरुष दूतके मुक्से निकले हुये अक्षरोंको गिनकर उनको दुगना करके तीनका भाग दे। यदि शेष शून्य हो तो मृत्यु अन्यथा जीवित समझना चाहिये।
हां वं क्षः मन्त्र मंत्रिततोयेनोद्दषति यस्य गात्रं चेत् । स च जीवत्यथवाझिम्पन्दनतोनान्यथा दष्टः ॥ १॥ भा० टी०-'हां वं क्षः इस मंत्रसे जल पढ़कर दृष्ट पुरुषके ऊपर डालनेसे यदि वह कांपने लगे अथवा नेत्र हिलाने लगे तो उसको जीसित अन्यथा मृतक समझना चाहिये।
इति संग्रह परिच्छेद । (२) अंगन्यास विधान
झिप ॐ स्थाहा पोजानि चिन्यसेत्पादना िहन्मुखशोर्षे ।
पीतसितकाञ्चनासित मुरचापनिभानि परिपाट्या ॥५॥ भा० टी०-'क्षिप ॐ स्वाहा' इन पांच बीजोंको क्रमसे निम्न प्रकारसे अंगोंमें स्थापन करे
'क्षि' वीजको पीतवर्णका दोनों पैरोंमें।
'' वीजको श्वेतवर्णका नाभिमें । 'ॐ' वीजो कांचन वर्णका हृदयमें । 'स्वा' बोजको कृष्ण वर्गका मुखमें । 'हा' वीजको इन्द्र धनुषके वर्णका शिरमें स्भापित करे।
यह अंग न्यास क्रम है।