________________
६ भैरव पद्मावती कल्प
१०७
(३) रक्षा विधान
पद्मं चतुर्दलोपेतं भूतान्तं नामसंयुतम् ।
दलेषु शेषभूतानि भायया परिवेष्टितम् ॥ ६॥ भा० टी०-एक चतुर्दल कमलकी कणिकामें नाम सहित 'हा' लिखकर उसके चारों दलोंमें ' क्षिप ॐ स्वा' बीज लिखकर हीसे वेष्ठित और क्रोंखे निरोध करे। इस यन्त्रको चन्दनसे लिखकर दष्ट पुरुषके गलेमें बांध दे।
इति रक्षा निधान । (४) स्तोमन विधान
वहिजलसूमिपवनव्योमाने दह दहपचद्धयं योज्यस् । स्तोभययुगलं स्तोमं मध्यमिकाचालनाद्भभति ।। ७॥ “ॐ पक्षि स्वाहा दह २ पच स्तोभय स्तोभय "
भा० टी०-इस मन्त्रको मध्यमा उगली पर अपनेसे दुष्ट पुरुष कुछ जागने लगता है।
इति स्तोभन विधान । (५) स्तंभन विधान
आद्यन्ते भूवीज मध्ये जलवह्निमारुतं योज्यम् । स्तभय युगल स्तम्भो वामकरांगुष्टचालनतः ॥ ८॥
" क्षिप में स्वा स्तम्भय स्तम्भय क्षि।" भा० टो०-इस मन्त्रको चांये हाथके अंगूठे पर जपनेसे विपका स्तम्भन होता है।
इति स्तम्भन विधान।