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भैरव पद्मावती कल्प
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नामग्लौमुर्तीपुरवपंग्लौं कारवेष्ठितं कृत्वा । ह्रींकारचतुर्वलयं स्वानामयुत्तं ततो लेख्यम् ॥ ११ ॥
भा० टी०- नामको क्रमशः ग्लौं, पृधिनीमण्डल, वं पं और • ग्लौंसे वेष्ठित करके उसके चारों ओर हां के ४ बलय बनावे ।
ॐ उच्छिष्टपदत्याने स्वच्छन्दपदमा लिखेत् । ततश्चाण्डालिनीस्वाहा टान्तयुग्मकवेष्टितम् ॥ १२ ॥ भा० टी०-उसके पश्चात् 'ॐ उच्छिष्टस्वच्छन्दचाण्डालिनी स्वाहा' इस मन्त्रसे बेष्ठित करके दो ठ से वेष्टित करे।
पृथिवीवलयंदत्वां पूर्वोक्तमन्त्रेण वेष्टयेबाटे । , रजनीहरितालाद्यभूले बिधिनान्वितो गिलिखेत् ॥ १३ ॥
मा० टी०-फिर पृथिवीमण्डल बनाकर उसके बाहिर पूर्वोक्त मन्त्री ही वेष्टित कर दे। इस यन्त्रको केशर और हड़ताल आदिसे विधिपूर्वक भोजपत्र पर लिखे ।
तत्कुलालकर मृत्तिकावृतं तोयपूरितवटे बिनि क्षिपेत् । पार्श्वनाथभु गरिस्थमर्चयेत् दिव्यरोधन विधानभुत्तमम् ।।१४।। भा० टी०-इस यंत्रको कुम्हारके हाथकी मिट्टोसे घिरे हुये जलसे भरे हुये घड़ेमें रखकर उसके ऊपर पाश्वनाथ भगवान् की पूजा करे । यह दिव्य वस्तुओंके स्तंभनका उत्तम विधान है।