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भैरव पद्मावती कल्प
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वषटवर्णयुतं कूटं लिखेदीकारधामनि ।
मूर्जपत्रे सितेऽत्यन्ते रोचनाकुङ्कमादिभिः ।। १९ ।। भा० टी०-उपरोक्त यंत्रमें 'ई' के स्थानमें 'क्ष वषट' बीजको अत्यन्त सफेद भोजपत्रपर गोरोचन कुकुम मादिसे लिखे ।
त्रिलोह वेष्टितं कृत्वा बाहौ कण्ठे च धारयेत् । स्त्रीसौभाग्यपरं यात्रं स्त्रीणां चेतोऽभिरञ्जनम् ॥ २०॥
भा० टी-फिर इस यन्त्रको त्रिलोहमें जड़वाकर दाहिनी मुजा और चण्ठमें धारण करनेसे यह यन्त्र स्त्रियोंके सौभाग्यको करता और उनके मनको प्रसन्न रखता है।
(त्रिलोह-सोलह भागोमें बारह भाग तांबा एक भाग लोहा और तीन भाग सोना मिलाकर त्रिलोह बनाया जाता है)