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________________ एवं भैरव पद्मावती कल्प निजोत्तमाङ्गामरभूधराने संस्नापितः पार्श्वजिनेन्द्रचन्द्रः । क्षीराब्धिदुग्धेन सुरेन्द्रवृन्दैः संचिन्तयेत्तज्जलशुद्धगात्रम् ।।९।। भा० टी०-फिर अपने शिरको उत्तम सुमेरुपर्वतके पाण्डुक वनकी पांडुरुशिला कल्पना करे और उसपर देवताओं के समूहके द्वारा क्षीरसागरके दुग्धके समान जलसे स्नान कराये हुये श्री पार्श्वनाथ भगवान के स्नान के जलसे (गंधोदकसे ) अपनेको शुद्ध शरीरवाला कल्पना करे। मूतग्रहशाकिन्यो ध्यानेनानेन नोपसर्पन्ति । अपहरति पूर्वसञ्चितमपि दुरितं त्वरितमेवेह ।। १० ।। भा० टी०-इस ध्यानके करनेसे भूत, प्रह और शाकिनियां कभी भी उपसर्ग नहीं करती। बल्कि इसके ध्यानसे पूर्व संचित पाप भी उसो समय नष्ट हो जाते हैं। पर्यकासनसंस्थः समीपतरवर्तिपूजनद्रव्यः । दिग्वनितानां तिलक स्वस्य च कुर्यास्सुचन्दनतः ॥ ११ ।। भा० टी०-पर्यशासनसे बैठा हुआ अपने समीप पूजनके आठों द्रव्योंको रखकर चन्दनसे दिशारूपी बाहुओंके और अपने तिलक करे। परमाधिपशेखरां विपुलारुणाम्बुजविष्ठिरां। कुछटोरगवाहनामरुणप्रमां कमलाननाम् ।। त्र्यम्बकां वरदांकुशायतपाशदिव्यफलादितां । चिन्तयेत्कमलावती जपतां सतां फलदायिनीम् ।। १२ ।।
SR No.009990
Book TitleBhairav Padmavati Kalp
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMallishenacharya, Chandrashekhar Shastri
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year
Total Pages160
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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