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________________ है भैरव पद्मावती कल्प [ ११५ "ॐ नमो भगवते पार्श्व तीथ कराय हमः महाहंसः पद्महंसः शिवहसः कोहंसः हंसः पक्षि महाविषं भझि हुं फट् ।” भा० टी०-इस मन्त्रको धोरे २ वोलनेसे सर्पका विष अपने स्थानसे इस प्रकार दूर हो जाता है कि फिर सर्पके काट लेने पर भी विष नहीं चढ़ता। नागको साथ २ चलाना तेजोनमः सहस्त्रादिमन्त्रं प्रपठतः फणिः । अनुयाति ततः पृष्ठ याहोत्युक्ते निवर्तते ॥ ३० ॥ "ॐ नमः सहस्रजिव्हे कुमुदभोजिनि दीर्घकेशिनि उच्छिष्टमक्षिणि स्वाहा ।" भा० टी०-इस मन्त्रको पढ़नेसे सांप पीछे २ चलता है और “ याहि " अर्थात् जाओ ऐसा कहनेसे चला जाता है। सर्पक मुखको कोलनका मन्त्र ॐ ह्रीं श्रीं ग्लौं हूं थू टान्त द्वितीयेन फणिमुखस्तम्भः । हू vठठेति गमनं दृष्टिं हां क्षां ठठेति बन्नाति ॥३१॥ __भा० टी०-ॐ ह्रीं श्रीं ग्लौं हूं झूठः ठः” इस मन्त्रसे सर्पका मुख कीला जाता है। ___ सर्पकी गतिको कीलने का मंत्र 'हूँ शू ठः ठः" इस मंत्रसे सर्पकी गतियो फीला जाता है। सर्पकी दृष्टिको कीलनेका मंत्र - "हां क्षां ठः ठः" इस मंत्रसे सर्पकी दृष्टिका स्तम्भन होता है।
SR No.009990
Book TitleBhairav Padmavati Kalp
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMallishenacharya, Chandrashekhar Shastri
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year
Total Pages160
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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