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१ भैरव पद्मावती कल्प
सर्पको कुण्डलाकार बनानेका मंत्र बामं सुवर्णरेखाय गडाज्ञापयत्यतः । स्वाहान्तमन्त्रमुच्चार्य कुण्डलीकरणं कुरु ॥ ३२॥ ,
ॐ सुवर्णरेखग्य गरुडाज्ञायति कुण्डलीकरणं कु०२ स्वाहा ।' यह सर्पको कुण्डलाकार बनाने का मत्र है।
सांपको घड़े घुसानेका मंत्र सप्रणवः स्वाहान्तो ठक बल बालेति संयुतं कुरुते । मन्त्रं घटप्रवेश क्षणेन नागेश्वरस्यापि ॥ ३३ ॥
__ 'ॐ ल ल ल ल ला ला कुरु स्वाहा! भा० टी०-यह मन्त्र नागोंके राजाको भी घड़ेमें घुसा देता है।
नागस्तम्भक रेखाका मंत्र 'ॐ ह्रां ह्रीं गरुडझा ठठेति तन्मुद्रया कृतां रेखाम् । मुजगो मरणावस्थो न लाते तां कदाचिदपि ।। ३४ ॥
“ॐ ह्रां ह्रीं गरुड ज्ञा ठ ठः" भा० टी०-इस मत्रसे बनाई हुई रेखाको सांप मरता हुआ भी उलंघन नहीं करता। (८) खटिकाफणिदर्शन विधान
कपिकच्छुकरसभाषितखटिका प्रणवादिनीलपरिजप्ता । लेख्यस्तयोपदेशात्खटिकासर्पः शने रे ।। ३५ ॥ भा० टी०-खड़िया मिट्टाको कौंचके रसमें भावना देकर उसको निम्नलिखित मंत्रसे मंत्रित करके उससे शनिवारको शामके उपदेशक अनुसार एक खडियाका सर्प बनावे ।