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________________ र भैरव पद्मावती कल्प पञ्चनमस्कारपदेः प्रत्येकं प्रणवपूर्वहोमान्स्यैः । पूर्वोक्तपञ्चशून्यैः परमेष्ठिपदाप्रविन्यस्तैः ।। ३ ।। शीष बदनं हृदयं नाभिं पादौ च रक्षन् रक्षेत्येवम् । कुर्यादेतैर्मन्त्री प्रतिदिवसं स्वाङ्गविन्यासम् ।। ४ ॥ भा० टी०-फिर पंचनमस्कार मंत्रके पदोंसे प्रत्येककी आदिमें ॐ और अन्तमें स्वाहा लगाकर, उन नमस्कार मन्त्रके परमेष्ठिपदोंके सामने क्रमसे उपरोक्त पांचों शून्य बीजों (ह्रां ह्नीं हूं ह्रौं ह्रः) को लगाकर उनमें क्रमसे सिर. मुख, हृदय, नाभि और पैरोंसे वाचक पदोंको लगाकर 'रक्ष रक्ष' लगाता हुआ प्रतिदिन अपने अंगोंका न्यास करे। ॐ णमो अरहन्ताणं हां पद्मावतिदेवि मम शीपं रक्ष रक्ष स्वाहा। ॐ णमो सिद्धाणं ह्रीं पद्मावतिदेवि मम वदनं रक्ष रक्ष स्वाहा । ॐ णस्रो आइरियाणं हू पद्मावतिदेवि मम हृदयं रक्ष रक्ष स्वाहा । ॐ णमो उबझायाणं हो पद्मावतिदेवि मम नाभिं रक्ष रक्ष स्वाहा। ॐ भो लोए सव्वसाहूणं ह्नः पद्मावतिदेवी मम पादौ रक्ष रक्ष स्वाहा। द्विचतुःपट्ठचतुर्दशकलाभिरन्त्यस्वरेण विन्दुयुतैः। कूटैर्दिग्विन्यस्तैः दिशासु दिग्बन्धनं कुर्यात् ॥ ५ ॥ भा० टी०-फिर 'ॐ आई ॐौं अक्षांक्षी क्ष क्षौं क्षः पूर्वादि दिशाबन्धनं करोमि' इस मंत्रसे दिशाओंका बन्धन करे। हेममयं प्रकातं चतुरस्रं चिन्तयेत्समुत्तमम् । विंशतिहरतं मंत्री सर्वस्वरसंयुतैः शून्यैः ।। ६ ।।
SR No.009990
Book TitleBhairav Padmavati Kalp
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMallishenacharya, Chandrashekhar Shastri
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year
Total Pages160
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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