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भैरव पद्मावती कल्प
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ग्रन्थकारकी गुरुपरम्परा
सकलनयमुकुटघटितचरणयुगः, श्रीमदजितसेनगणिः । जयतु दुरितापहरी, भव्यौधभवार्णमोत्तारी ।। ५३ ॥
भा० टो०-जिनके चरण युगल समस्त राजाओंके समूहके मुकुटोंसे छुपे जाते हैं, जो पापको नष्ट करनेवाले हैं, और जो भव्योंके समूहको ससाररूपी मुद्रखे तारनेवाले हैं ऐसे श्री अजितसेलगणि मुनि जयनदन्त हो।
जिनसमयागमवेदी गुरुतरसंसारकाननोच्छेदी । कर्मेन्धनदहनपटुस्तच्छिष्यः कनकसेनगणिः ।। ५४ ।। भा० टी०- जैन शास्त्रोंको जालनेवाले, अत्यत कठिन संसाररूपी बनको नष्ट करनेवाले धर्मरूपी इन्धनके जलानेमें चतुर श्री कनकसेनगणि उनके शिष्य थे।
चारित्रभूषिताको निस्सङ्गो मधितदुर्जनाऽनङ्गः । तच्छिष्योजिनसेनो वसूब भव्याजधर्माशुः ।। ५५ ।। भा० टो-चारित्रसे शोभायमान अंगवाले, परिग्रहरहित, दुर्जय कामदेव को नष्ट करनेवाले और भव्यरूपी कमलोंके लिये सूर्य श्री जिनसेन उन कनकमुनिके शिष्य थे।
नदीय शिष्यो मुनिमल्लिषेणः सरस्वतीलब्धबरप्रसादः । तेनीदितो भैरविदेवतायाः कल्पः समासेन चतुःशतेन ॥५६॥१. भा० टी०-सरस्वतीसे वरदान पाये हुये श्र. मल्लपमके