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६ भैरव पद्मावती कल्प
मुनि उनके शिष्य दुये। उन्होंने ही इस भैरव पद्मावती कल्पको चारसौ श्लोकोंमें कहा है।
यानद्वामिहीधरतारागणगगनचन्द्रदिनपतयः । तिष्ठन्ति ताबदास्तां भैरवपद्मावतील्पः ॥ ५७ ।। भा० टी०-जवतफ समुद्र, पर्वत, तारागण, आकाश, चन्द्र, और सूर्य रहें तबतक यह भैरव पद्मावतीकल्प भी बना रहे।
इति उमयभाषा कदिशेखर श्री मलिषेणसूरि विरचित भैरव पद्मावती कल्पकी पंडिता कलायतीदेवी सरस्वती (धर्मपत्नी काव्यसाहित्यतीर्थाचार्य प्राच्यविद्यावारिधि श्री चन्द्रशेखर शस्त्रो) कृत भाषा टीकामें 'गरुडाधिकार' नाम दशम परिच्छेद
समाप्त ॥१०॥
प्रति लेखकचन्द्रशेखर शाली काव्यसाहित्याचार्य प्राच्यविद्यावारिधि । मिति आश्विन शुक्ला दशमी गुरुवार सं० १९८४ विक्रमी, ता० ६ अक्टूबर सन् १९२७ ईस्वी, समय ३॥ बजे दोपहर ।
इति शम्।